विदेशी नागरिकता लेने वाले भारतीय धनाढ्यों की संख्या बढ़ी
विदेशों की नागरिकता लेने वाले भारतीय धनाढ्यों (एचएनआई और यूएचएनआई) की संख्या में साल-दर-साल बढ़ोत्तरी हो रही है. भारतीय के धनवानों ने बसने के लिए ग्रीस, पुर्तगाल और थाइलैंड(2019), कनाडा, पुर्तगाल और हांगकांग(2018) में मुख्य रूप से आवेदन किया है जबकि नागरिकता लेने के लिए उनकी पहली पसंद माल्टा, साइप्रस, एंटीगुआ और बारबुडा और ग्रीनलैंड(2018 और 2019) हैं.
जिनके पास 10 लाख डॉलर की संपत्ति होती है उन्हें हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल(एचएनआई) और 500 लाख डॉलर की संपत्ति के मालिक को अल्ट्रा हाई नेट वर्थ इंडिविजुअल(यूएचएनआई) की श्रेणी में रखा जाता है.
धनाढ्यों को विदेशों में नागरिकता दिलवाने में मदद करने वाली संस्था हेन्ली एंड पार्टनर्स के मैनेजिंग पार्टनर और दक्षिण पूर्व एशिया के प्रमुख डोमिनिक वोलेक ने कहा कि साल 2019 में धनाढ्य लोगों के द्वारा दूसरे देशों के पासपोर्ट की मांग में तेजी आई है.
उन्होंने कहा कि साल 2017 में धनाढ्य लोगों का दूसरे देशों में बसने और वहां की नागरिकता लेने के मामले चीन, भारत, टर्की और ब्रिटेन में सबसे अधिक देखने को मिले हैं.
उन्होंने कहा कि धनवान नागरिकों के विदेशों में बसने की मुख्य वजह सुरक्षा, उच्च टैक्स और धार्मिक या राजनीतिक तनाव है.
अंग्रेजी अखबार द हिन्दू के मुताबिक नागरिकता हासिल करने के लिहाज से अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा धनी भारतीयों की पहली पसंद है. पिछले कुछ साल में पुर्तगाल, साइप्रस, ग्रीस, माल्टा जैसे देशों और यूरोपीयन गोल्डन वीजा प्राप्त करने की प्रवृति भारतीयों में देखने को मिली है.
वोलेक ने कहा कि सेंट लूसिया, डोमिनिका, सेंट किट्ट्स और नेविस, ग्रेनेडा, एंटीगुआ और बारबुडा में सिटिजनशिप इंन्वेस्टमेंट प्रोग्राम (सीआईपी) के तहत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है क्योंकि भारत का कानून लोगों को दोहरे नागरिकता की छूट नहीं देता है.
हेन्ली और पार्टनर्स के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 की तुलना में साल 2019 में भारत के नागरिकों के द्वारा रेजिडेंस प्रोग्राम के लिए आवेदन की संख्या में 33 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. वोलेक ने कहा कि सिर्फ भारत में रहने वाले ही नहीं विदेशों खासकर ब्रिटेन, स्वीट्जरलैंड और यूएई में रहने वाले भारतीय भी हमारे हमारे प्रोग्राम के लिए आवेदन कर रहे हैं.
क्रेडिट सुइ्से ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 3,43,000 एनएचआई और 3,400 यूएनएचआई रहते हैं. साल 2000 के बाद से भारत के यूएस डॉलर मिलेनियर्स की संख्या नौ गुनी बढ़कर 39,000 से 343,000 हो गई है. साल 2008 से 2018 के बीच भारत की संपत्ति में पांच गुनी बढ़ोत्तरी हुई है और यह छह लाख करोड़ डॉलर पहुंच गया है.
बांग्लादेश, वियतनाम, चीन और फिलिपीन्स सहित भारत दुनिया के 10 देश हैं जहां पर सबसे तेजी से संपत्ति बढ़ रही है.
वोलेक ने कहा कि ज्यादातर भारत के एचएनआई लंदन, सिंगापुर, कुआलालंपुर, न्यूयॉर्क और दुबई की संपत्तियों में निवेश कर रहे हैं. इनमें ईबी-5 वीजा प्रोग्राम के तहत अमेरिका में निवेश करने वालों की बड़ी संख्या है.
अमेरिका में चीन और वियतनाम के बाद सबसे अधिक एफडीआई भारत के द्वारा हुआ है. वित्त वर्ष 2016 के यूएस सिटिजनशिप और इमिग्रेशन सर्विस डेटा के हवाले से वोलेक ने कहा कि भारत की ओर 1770 लाख डॉलर एफडीआई के तहत निवेश हुआ है.
हेन्ली पासपोर्ट इंडेक्स के मुताबिक पासपोर्ट की मजबूती से वैकल्पिक नागरिकता की प्रवृति का पता चलता है. हाल में जारी इंडेक्स रैंकिंग के मुताबिक भारतीय पासपोर्ट 86वें नंबर पर है.
यूएचएनआई और एचएनआई विदेशों में बिना रोकटोक यात्रा चाहते हैं. इस वजह से धनाढ्यों में वीजा मुक्त पासपोर्ट की मांग बढ़ी है.