उत्तर प्रदेश में दरक गई है बीजेपी की जमीन: शोध


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12 मई को पूर्वी उत्तर प्रदेश में मतदान हुआ. 2014 में बीजेपी ने आजमगढ़ छोड़कर यहां की सभी सीटें जीत ली थीं. इस बार गठबंधन के तहत इस क्षेत्र की ज्यादातर सीटों पर बीएसपी के उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा. इस आधार पर 12 मई का दिन कई पहलुओं पर जरूरी था. इनमें सबसे जरूरूी सवाल यह था कि क्या एसपी का वोट बैंक बीएसपी को ट्रांसफर हो पाएगा? वेबसाइट एंथ्रो डॉट एआई के अनुसार वोट ट्रांसफर बहुत आसानी से हुआ.

वेबसाइट कहती है कि पिछले चरणों में पश्चिमी और मध्य उत्तर प्रदेश में एसपी के वोटरों ने बीएसपी के वोटरों को उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट करते देखा है. इसके अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वोटरों को अखिलेश यादव और मायावती का साथ भी खासा पसंद आ रहा है. उन्होंने मायावती को आजमगढ़ में यह कहते सुना कि अखिलेश को दिया गया एक-एक वोट उन्हें मिले वोट के बराबर होगा. इस आधार पर उन्होंने बीएसपी के मतदाओं के समर्थन में भारी मात्रा में वोटिंग की है.

वेबसाइट कहती है कि उत्तर प्रदेश के छठे चरण में हुए चुनाव में सबसे चौकाने वाली बात ब्राह्मण वोटबैंक के एक हिस्से का बीजेपी से छिटक जाना है. वेबसाइट का कहना है कि यह हिस्सा कांग्रेस और गठबंधन दोनों के पास गया है और इसका मुख्य कारण योगी आदित्यनाथ हैं.

वेबसाइट का कहना है कि योगी आदित्यनाथ ठाकुर जाति से हैं और उनके शासन में ऐसा नजरिया बना है कि ठाकुरों को कुछ भी करने की छूट मिली हुई है. इसी से नाराज होकर ब्राह्मण वोटबैंक का एक हिस्सा बीजेपी से दूर चला गया है. इसके अलावा प्रियंका गांधी ने भी पूर्वी उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार करके ब्राह्मणों को अपनी ओर खींचा है.

इस आधार पर वेबसाइट ने अनुमान लगाया है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के वोट प्रतिशत में सेंध पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुकाबले ज्यादा लगी है. वेबसाइट के अनुसार छठे चरण की समाप्ति पर उत्तर प्रदेश में गठबंधन को 53 के आसपास सीटें मिल सकती हैं, वहीं बीजेपी को 22 और कांग्रेस को 5 सीटें मिल सकती हैं.

इससे पहले बेवसाइट ने पांचवां चरण समाप्त होने के बाद भी अपना अनुमान पेश किया था.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में एनडीए को 41 फीसदी वोट शेयर के साथ 73 सीटें मिली थीं. साल 2017 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी नेतृत्व के एनडीए गठबंधन को 325 सीटें जीतने में कामयाबी मिली. यह कहा गया कि मोदी लहर अभी भी बनी हुई है.

लेकिन वेबसाइट एंथ्रो डॉट एआई के मुताबिक इस बार बीजेपी उत्तर प्रदेश में पिछले चुनाव की तरह प्रदर्शन करने नहीं जा रही है.

वेबसाइट के द्वारा अनुमान लगाया गया है कि एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन को 40 से 55 सीटें मिलेंगी. वहीं वेबसाइट के अनुसार बीजेपी को 15 से 25 सीटों पर जीत मिल सकती है. अगर बीजेपी के पक्ष में स्थिति काफी अनुकूल रही तो पार्टी को अधिकतम 30 सीटें मिल सकती हैं. कांग्रेस को पांच से नौ सीटों पर जीत का अनुमान लगाया गया है. वेबसाइट के अनुमान में कहा गया है कि बीजेपी के वोट शेयर में तीन से पांच फीसदी की कमी आ सकती है.

विचारधारा, सत्ता संरचना में जगह, पहचान, मुद्दे, पार्टी की स्थिति और नेताओं के व्यक्तिगत प्रभाव के आधार पर यह आकलन किया गया है.

बीजेपी अपनी मूल विचारधारा ‘देश के लिए विजन’ और नरेंद्र मोदी को देश का सबसे बेहतरीन नेता मानने वालों को अपने साथ जोड़े रख पाने में कामयाब होती दिख रही है. पहली बार वोट करने वाले मतदाता नरेंद्र मोदी से प्रभावित दिखते हैं. लेकिन आम चुनाव में फायदे से ज्यादा नुकसान होता दिखाई दे रहा है.

साल 2014 के चुनाव में गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को बीजेपी ने पार्टी का पदाधिकारी बनाया था. उन्हें लगा था कि सत्ता में आने के बाद यादव और जाटव की तरह सम्मान और सुविधाएं मिलेंगी.

वेबसाइट के विश्वलेषण में कहा गया है कि नरेंद्र मोदी के सत्ता के केन्द्र में रहने से सांसदों की शक्ति घटी है. इसके साथ ही ठाकुर समाज से आने वाले योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनाए जाने से ओबीसी वोटर को धक्का लगा है. इसके साथ ही कुछ हद तक ब्रह्मण वोट बैंक भी प्रभावित हुआ है.

वोट प्रतिशत को देखते हुए कहा जा सकता है कि कुर्मी और कुशवाहा वोटर ने एसपी-बीएसपी गठबंधन को वोट किया है. वहीं निषाद समुदाय में भी विद्रोह के स्वर उभरे हैं.

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को राम मंदिर निर्माण पर भी सवालों का सामना करना पड़ रहा है.

पिछले लोकसभा चुनाव में महिलाओं ने जाति और धर्म उपर उठकर नरेन्द्र मोदी के पक्ष में वोट किया था. पिछली सरकार अच्छे दिनों के वादों के साथ आई थी. हालांकि, नोटबंदी ने उनके विश्वास को तोड़ दिया. नोटबंदी की वजह से उनकी सभी छोटी-छोटी बचतें खराब हो गई हैं. आवारा जानवरों ने उनके गुस्से को और बढ़ाया है. ऐसा प्रतीत हो रहा है कि औरतें इस चुनाव में नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी को सबक सिखाने जा रही हैं.

कुल मिलाकर अंडरकरेंट एक भूकंप के सदृश्य है. यह भूकंप मुुख्यत: निराशा और उदासी का ही नहीं बल्कि गुस्से और धोखा दिए जाने के भाव का भी परिणाम है. मुसलमानों के बीच तो इस सरकार को लेकर अभूतपूर्व रोष है. वे बीजेपी के खिलाफ जमकर वोट कर रहे हैं. यादव और दलित वोटर भी एक दूसरे के खिलाफ जाने की बजाए साथ-साथ लड़ाई लड़ रहे हैं. इन सब बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बीजेपी को उत्तर प्रदेश में एक बड़ा झटका लगने वाला है.

इसके अलावा यह भी नजर आ रहा है कि वोट केवल मोदी को हराने के लिए ही नहीं पड़ रहे हैं, बल्कि मायावती के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के निर्माण के लिए भी पड़ रहे हैं.


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