अमेरिका ने कश्मीर में हो रहे मानव अधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट को माना


a top jaish commander among two gunned down in kashmir

 

ओएचसीएचआर की मानव अधिकार पर वार्षिक वैश्विक रिपोर्ट को अमेरिका के स्टेट डिपार्टमेंट ने संज्ञान में लिया है. भारत सरकार ने ओएचसीएचआर की रिपोर्ट को ‘भ्रामक, पक्षपातपूर्ण और प्रेरित’ बताया था.

14 जून, 2018 को ओएचसीएचआर की रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी. ओएचसीएचआर ने अपनी रिपोर्ट में मानव अधिकार के उल्लंघन की जांच और कश्मीर के लोगों के निर्णय के अधिकार की वकालत की थी. भारत सरकार ने इसपर अपनी आपत्ति दर्ज की थी.

भारत सरकार ने इसे भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन कहा था. सरकार की ओर से कहा गया था कि ओएचसीएचआर की रिपोर्ट में बड़ी संख्या में ली गई अपुष्ट सूचनाओं में से कुछ खास को शामिल किया गया है, इतना ही नहीं यह पूर्वाग्रह से ग्रसित है और इसका उदेश्य गलत संदेश देना है.

स्टेट डिपार्टमेंट की ओर से जारी मानव अधिकार रिपोर्ट में ओएचसीएचआर की कश्मीर में मानव अधिकार की स्थिति के रेफरेंस से कहा गया है, “दस्तावेज में आरोप लगाया गया है कि जून 2016 से अप्रैल 2018 के बीच सुरक्षा बलों के द्वारा मानव अधिकारों का उल्लंघन किया गया है.”

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि सुरक्षाबलों के द्वारा करीब 145 नागरिकों की मौत हुईं जबकि आतंकियों ने करीब 20 लोगों की जान ली हैं.

अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में छपी खबर के मुताबिक अमेरिकी की इस रिपोर्ट में भारत के सभी राज्यों से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम को खत्म करने की अनुशंसा को संज्ञान में लिया गया है.

स्टेट डिपार्टमेंट की रिपोर्ट में कश्मीरी अलगाववादी और माओवादी हिंसा का जिक्र भी है.

रिपोर्ट में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के उस बयान का भी जिक्र है जिसमें नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर(एनआरसी) के मद्देनजर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने असम में रह रहे लोगों के लिए ‘दीमक’ शब्द का प्रयोग किया था.

दलित कार्यकर्ता और भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर आजाद की राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत हुई गिरफ्तारी का भी जिक्र है.

रिपोर्ट में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम के तहत मानव अधिकार कार्यकर्ताओं और अकादमिकों गौतम नवलखा और सुधा भारद्वाज की गिरफ्तारी, कश्मीरी पंडितों के विस्थापन, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने के लिए देशद्रोह कानून का इस्तेमाल, सरकार पर टिप्पणी करने वाले संगठनों को सार्वजनिक क्षेत्र से मिलने वाले विज्ञापनों को रोकने सहित मीडिया कर्मियों पर हमले को भी शामिल किया गया है.


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