कृषि क्षेत्र में तीन करोड़ मजदूरों का रोजगार छिना


three crore Casual farm labour lost their job

 

अर्थव्यवस्था के लगभग हर क्षेत्र में रोजगार की हालत बुरी है. कृषि क्षेत्र भी रोजगार के मामले में बुरे दौर से गुजर रहा है. इंडियन एक्सप्रेस सरकारी आंकड़ों के हवाले से लिखता है कि साल 2011-12 से 2017-18 के बीच 3.2 करोड़ कृषि मजदूरों ने अपना रोजगार खोया है. इनमें से तीन करोड़ मजदूर ऐसे हैं जो खेतों में काम करते थे.

नेशनल सैम्पल सर्वे यानी कि एनएसएसओ के आंकड़ों से साफ होता है कि 2011-12 से अब तक ये क्षेत्र 40 फीसदी सिकुड़ चुका है. पिछले सर्वे से तुलना करने पर ये 29.2 फीसदी नीचे चला गया है.

इस सर्वे में ऐसे मजदूर वर्ग को शामिल किया गया है, जिसे कृषि क्षेत्र में अलग-अलग मौकों पर ही काम मिल पाता है.

इस दौरान ग्रामीण परिवारों की आय में भी इस तरह की मजदूरी से होने वाली रकम में 10 फीसदी की कमी आई है. इस दौरान 41 फीसदी लोगों ने इस तरह के रोजगार पर आश्रित होना छोड़ दिया है. मतलब कि इन परिवारों ने आय के दूसरे साधनों को अपनाना उचित समझा.

आंकड़ों के मुताबिक खेतों और अन्य कृषि संबंधी कार्यों में पुरुष मजदूरी में 7.3 फीसदी और महिलाओं के मामले में 3.3 फीसदी की कमी आई है. इस तरह से कुल मिलाकर 3.2 करोड़ रोजगार खत्म हो गए हैं.

इस रिपोर्ट को जारी ना करने को लेकर सरकार की काफी आलोचना भी हुई.

एनएसएसओ की इस रिपोर्ट को दिसंबर 2018 में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग ने अपनी मंजूरी दी थी. लेकिन ये रिपोर्ट अभी तक सरकार ने जारी नहीं की है. इसी के चलते आयोग के दो सदस्य इस्तीफा भी दे चुके हैं. जिनमें इसके चेयरमैन पीएन मोहानन भी शामिल हैं.

इससे पहले लेबर रिपोर्ट 2017-18 में सामने आया था कि कृषि क्षेत्र में स्वरोजगार में चार फीसदी की वृद्धि हुई है.

इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा, “इस क्षेत्र के मजदूरों को रातों-रात जमीन तो मिल नहीं गई कि वे स्वरोजगार अपना लें. इसका मतलब है कि इस क्षेत्र में सुस्ती के चलते किसान की मजदूरी देने की क्षमता में कमी आई है. जिससे किसान मजदूरों की जगह खुद इस तरह के काम करने लगे हैं.”


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