दो टाइम जोन का विचार अभी व्यवहारिक नहीं


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भारत में फिलहाल दो टाइम जोन बनाने की मांग अभी किताबों तक ही सीमित रहने वाली है. विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री हर्षवर्धन ने संसद में ‘रणनीतिक वजहों’ का हवाला देते हुए कहा है कि भारत इस मांग को हकीकत में नहीं बदल सकता.

पूर्वोत्तर राज्यों द्वारा लंबे समय से की जा रही इस मांग के जवाब में उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर विचार करने के बाद सरकार की उच्च स्तरीय समिति ने रणनीतिक वजहों के आधार पर देश में दो टाइम जोन बनाने की मांग को खारिज कर दिया है.

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने साल 2002 में इस मांग से जुड़े विभिन्न व्यवहारिक और वैज्ञानिक पहलुओं का अध्ययन करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की थी. समिति का निष्कर्ष था कि दो टाइम जोन का विचार भारत के लिए उपयुक्त नहीं है और इससे व्यवहारिक मुश्किलें आ सकती हैं.

विशेषकर, इससे सड़क और रेल यातायात के तालमेल में मुश्किलें आएंगी. सरकार इस समिति के निष्कर्षों के आधार पर समय-समय पर दो टाइम जोन की मांग को खारिज करती रही है.

पूर्वोत्तर राज्य लम्बे समय से देश में दो टाइम जोन बनाने की मांग करते रहे हैं. चूंकि भारत में पूर्वोत्तर राज्यों में सूर्योदय जल्दी होता है, अतः इन राज्यों का तर्क रहा है कि अलग टाइम जोन होने से यहां के लोगों को जल्दी काम पर जाने का लाभ मिल पाएगा.

इससे इन राज्यों की उत्पादकता में इजाफा होगा. कई सरकारी शोध एजेंसियों ने भी देश में दो टाइम जोन होने को आर्थिक नजरिए से लाभप्रद बताया है. नेशनल फिजिकल लैबोरेटरी, नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने हाल में एक शोध में दावा किया है कि दो टाइम जोन बनने से लगभग 20 मिलियन किलोवाट घंटे की बिजली बचाई जा सकती है.

शोध में यह भी कहा गया कि दो टाइम जोन से आने वाली व्यवहारिक मुश्किलों को अब दूर किया जा सकता है, इसलिए इस मुद्दे पर नए नजरिए से अध्ययन करने की आवश्यकता है.


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