पार्टियों ने केवल हमारा सियासी इस्तेमाल किया: सिंगूर के किसान


maharashtra's agriculture growth will slow down by eight percent

 

किसानों के आंदोलन के चलते टाटा द्वारा ‘‘नैनो’’ कार संयंत्र पश्चिम बंगाल से बाहर ले जाए जाने के कई साल बाद सिंगूर के किसान ठगे हुए महसूस कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लौटाए गए भूखंड कृषि योग्य नहीं हैं और कस्बे में उनके लिए पर्याप्त नौकरियां भी नहीं हैं.

इलाके में उद्योग लगाने की मांग के साथ पिछले साल कोलकाता मार्च करने वाले किसानों ने कहा कि राजनीतिक दलों के नेताओं ने उनका इस्तेमाल किया.

उन्होंने कहा कि यदि उन्हें अपनी गलती सुधारने का मौका मिला तो वे सिंगूर में अपनी जमीन उद्योग लगाने के लिए देने को तैयार हैं. उल्लेखनीय है कि सिंगूर कभी बहुफसली कृषि के लिए जाना जाता था.

हुगली लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाला सिंगूर 2006-07 में उस वक्त सुर्खियों में रहा था जब राज्य की वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन चला था.

पश्चिम बंगाल में 34 साल के वाम शासन को खत्म करने में इस आंदोलन ने भी एक अहम भूमिका निभाई थी और आंदोलन में अग्रिम मोर्चे पर रही ममता बनर्जी नीत तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई थी.

अशोक मैती नाम के किसान ने कहा, ‘‘इस आंदोलन से हमें क्या मिला? कुछ नहीं. राजनीतिक दलों द्वारा अपने हित साधने के लिए हमारा इस्तेमाल किया गया. ना तो उद्योग लगे ना ही हमें 2016 में जो जमीन लौटाई गई, वह कृषि योग्य है. हम गरीबी में जी रहे हैं.’’

मैती और उनके भाई को उनकी 60 कट्ठा जमीन वापस मिली.

उनकी तरह ही कई अन्य किसानों को भी लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उनकी जमीनें वापस मिलीं. हालांकि, यह (जमीन) या तो कंक्रीट में तब्दील हो गई हैं या मलबे से ढंकी हुई हैं.

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक जमीन पर कंक्रीट के खंभों और सीमेंट के स्लैब की मौजूदगी के चलते जमीन को कृषि योग्य बनाने के लिए कम से कम सात से आठ इंच मोटी (जमीन की) ऊपरी परत को हटाना होगा.

उन्होंने कहा कि यह बहुत खर्चीली प्रक्रिया है और किसान इसकी लागत वहन नहीं कर सकते.

किसानों ने कहा कि ऐसा नहीं किए जाने पर जमीन को कृषि योग्य बनाने के लिए कम से कम 10 साल लगेंगे.

सुकांत मंडल नाम के किसान ने भी कहा कि आंदोलन से कृषक समुदाय को कुछ नहीं मिला.

उन्होंने कहा, ‘‘भूमि अधिग्रहण को लेकर राजनीतिक उन्माद में आकर हमने गलती कर दी. यदि हमने इच्छुक किसानों की तरह ही अपनी जमीन दे दी होती तो सिंगूर औद्योगिक केंद्र बन गया होता और नौकरियों का सृजन होता. हमारे बच्चे नौकरी के लिए अन्य राज्यों का रूख करने के बजाय यहीं पर रहते.’’

सिंगूर में किसानों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया था – इच्छुक (जमीने देना चाह रहे) और अनिच्छुक (जमीन नहीं देना चाह रहे).

माकपा और किसान सभा के वरिष्ठ नेता अमल हलधर ने आरोप लगाया कि तृणमूल कांग्रेस ने किसानों के एक वर्ग को प्रभावित किया जिससे राज्य ने एक बड़ा मौका गंवा दिया.

उन्होंने कहा कि ‘अनिच्छुक’ शब्द सही नहीं है क्योंकि कुछ ही किसान अपनी जमीन देने को तैयार नहीं थे, लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए उन्हें गुमराह किया.

उच्चतम न्यायालय के एक फैसले के बाद तृणमूल कांग्रेस सरकार ने 2016 में किसानों को जमीन लौटाई.

अनिच्छुक किसानों को मुआवजे के तौर पर ममता सरकार ने मासिक 2,000 रूपये और दो रूपये प्रति किलोग्राम की दर पर 16 किग्रा चावल दिए.

एक किसान ने कहा, ‘‘शुरूआत में हम खुश थे लेकिन बाद में हमने महसूस किया कि इसका हमारे लिए कोई उपयोग नहीं है. हर महीने 2000 रूपये और 16 किग्रा चावल से क्या हो सकता है?

हुगली से भाजपा की उम्मीदवार लॉकेट चटर्जी ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस ने राजनीतिक फायदे के लिए किसानों का इस्तेमाल किया.

इस सीट से माकपा उम्मीदवार प्रदीप साहा ने दावा किया कि तृणमूल कांग्रेस की हुगली में हार आसन्न है क्योंकि लोगों ने अपनी गलती महसूस कर ली है.

वहीं, 2006 के अंदोलन में प्रमुख चेहरा रहे तृणमूल के स्थानीय विधायक बेचराम मन्ना ने अपनी पार्टी का बचाव करते हुए कहा कि उनकी पार्टी ने किसानों के लिए काफी कुछ किया है.

तृणमूल के एक स्थानीय नेता ने कहा कि किसान यहां अब उद्योग चाहते हैं और हमने भी स्थानीय युवाओं को नौकरी मुहैया करने के लिए उद्योग वापस लाने का वादा किया है.

इस लोकसभा सीट से मौजूदा तृणमूल सांसद रत्ना डे नाग तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं. उन्होंने कहा कि जमीन को यथाशीघ्र कृषि योग्य बनाने के लिए कदम उठाए जाएंगे.


Big News