अटकी ब्रेग्जिट डील से नाराज ब्रिटिश लोगों ने दोनों बड़ी पार्टियों को सिखाया सबक
ब्रेग्जिट समस्या ब्रिटेन में बड़े दलों के लिए सिरदर्द बनी हुई है. संसद में लगातार हुई एक के बाद एक बहसों के बाद भी राजनेता किसी समझौते पर नहीं पहुंचे हैं. हाल में हुए स्थानीय चुनावों में दोनों प्रमुख दलों कंजर्वेटिव और लेबर को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा है.
कंजर्वेटिव पार्टी को 2015 में हुए पिछले चुनाव के मुकाबले 1,300 सीटें कम मिली हैं. प्रधानमंत्री जॉन मेजर के कार्यकाल के बाद ये पार्टी की सबसे बड़ी हार है.
समर्थकों का पार्टी से इस कदर मोहभंग हो चुका है कि चेम्सफोर्ड और सरे हीथ जैसे इलाके जो पारंपरिक रूप से टोरी बहुमत वाले माने जाते हैं, वहां भी पार्टी को बहुत नुकसान हुआ है.
उधर लेबर पार्टी का हाल भी कुछ बेहतर नहीं है. चुनाव से पहले उम्मीद की जा रही थी कि लेबर पार्टी फायदे में रहेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. बर्नले, डार्लिंगटन और विर्राल जैसी कुछ कौंसिल बचाकर उसने अपने नुकसान को कम जरूर किया.
लिबरल डेमोक्रेट्स इन चुनावों में सबसे ज्यादा फायदे में रहे. इन्हें कॉट्सवोल्ड और विंसमिंस्टर समेत कुल 10 कौंसिल में जीत मिली. जबकि ग्रीन्स और निर्दलीय उम्मीदवारों को उम्मीद से कहीं अधिक सफलता मिली.
ग्रीन पार्टी के सिआन बेरी कहते हैं, “लोग बड़े दलों की पुरानी राजनीति से ऊब चुके हैं. खासकर उन्होंने देश को जिस तरह से ब्रेग्जिट जैसी समस्या में लाकर फंसा दिया उससे लोग उकता चुके हैं.”
विंस केबल लिबरल डेमोक्रेट के नेता हैं. वे इसे “पूरे देश की कहानी” बताते हैं. वे कहते हैं, “लिबरल डेमोक्रेट्स को कुछ समय के लिए भुला दिया गया था, लेकिन हम पूरी ताकत के साथ वापस आ रहे हैं. हम इस बार पूरे देश में बड़े विजेता के रूप में उभरे हैं.”
जेरेमी कार्बिन इसे सांसदों के लिए जनता का संदेश मानते हैं. वे कहते हैं, “अब समय आ गया है कि समझौता हो जाना चाहिए. संसद को बेग्जिट के किस्से को अंजाम तक पहुंचाना ही होगा, मेरे हिसाब से अब ये एकदम साफ हो चुका है.”
उधर प्रधानमंत्री टेरिजा मे ने हारे हुए कौंसिलर्स से माफी मांगी है. उन्होंने कहा कि कौंसिलर्स पर आरोप नहीं लगाना चाहिए. मे ने कहा, “इन चुनावों से कंजर्वेटिव और लेबर पार्टी को साफ संदेश मिला है कि अधूरी ब्रेग्जिट डील को पूरा करो.”