यूनिवर्सल बेसिक इनकम तोड़ेगी सरकारी स्वास्थ्य और शिक्षा तंत्र की कमर: अमर्त्य सेन
अर्थशास्त्रियों और जानकारों में प्रस्तावित यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) योजना के फायदे और नुकसान पर बहस जारी है. अब इस बहस में अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने हस्तक्षेप करते हुए कहा है कि भारत में इस योजना के लागू होने के बाद निजीकरण की रफ्तार बढ़ेगी. ऐसी स्थिति में लोग निजी शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च करेंगे.
अपनी इस समझ को सेन ने प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री अशोक रुद्रा की याद में विश्व भारती विश्वविद्यालय, कोलकाता में आयोजित किए गए अशोक रुद्रा मेमोरियल लेक्चर में जाहिर किया. इस लेक्चर का उद्देश्य न्यूनतम आर्थिक सुरक्षा के अधिकार के तौर पर यूनिवर्सल बेसिक इंकम योजना के फायदे और नुकसान पर चर्चा करना था.
सेन का मानना था कि बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था में यूनिवर्सल बेसिक इनकम (यूबीआई) लागू होने पर लोग निजी शिक्षा और स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च करना शुरू कर देते हैं.
हालांकि लेक्चर में भाग लेने वाले कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री प्रणब वर्धन ने सेन की बात से असहमति जताई. वर्धन ने कहा कि एक राज्य को अपने सभी नागरिकों को बेसिक इनकम वितरित करनी चाहिए, भले ही उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो. उनका तर्क था कि इस योजना को गरीबी-उन्मूलन कार्यक्रमों की तरह नहीं, बल्कि नागरिक अधिकार के रूप में लागू किया जाना चाहिए. गरीबी-उन्मूलन कार्यक्रमों पर हुए अध्ययन ये बताते हैं कि अक्सर ऐसी योजनाओं का लाभ वास्तविक लाभार्थियों (गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों) को नहीं मिल पाता.
अमर्त्य सेन ने वर्धन के इस तर्क का जवाब देते हुए कहा कि ये आवश्यक नहीं कि बेसिक इनकम देने से लोग स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च करने लगें. स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च सुनिश्चित करना विकास के किसी भी मॉडल का उद्देश्य होता है, लेकिन ये उद्देश्य बेसिक इंकम देने से पूरे नहीं हो सकते. सेन की यह भी मान्यता थी कि यूआईबी को लागू करने से देश के सरकारी स्वास्थ्य, शिक्षा और खाद्य वितरण तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. उनका मानना था कि यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना को लागू करने के लिए धनराशि स्वास्थ्य, शिक्षा और खाद्य वितरण के सरकारी तंत्र को कमजोर करके ही जुटाई जाएगी.
वहीं, अर्थशास्त्री प्रणब वर्धन का एक तर्क ये भी था कि बेसिक इनकम देने से न सिर्फ गरीब तबकों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी, बल्कि प्राकृतिक आपदाओं के शिकार लोगों को भी इसका फायदा मिल सकेगा.
उन्होंने कहा कि पिछले साल केरल की बाढ़ की चपेट में सभी तरह के लोग आए. इससे फर्क नहीं पड़ता कि उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि क्या थी.
उनके अनुसार, महिलाओं को भी इस योजना का लाभ मिलेगा जो संख्या के लिहाज से इस समय देश के वयस्क कामकाजी वर्ग का एक तिहाई हैं. साथ-साथ, अक्सर नजरअंदाज किए जाने वाले तबकों जैसे सेक्स वर्करों, मैला ढोने वाले तबकों आदि को भी इस योजना का लाभ मिल सकेगा. उनके अनुसार, इस योजना को लागू करने के लिए धनराशि संपत्ति कर बढ़ाकर और विशेषाधिकार वर्ग की सब्सिडी घटाकर जुटाई जा सकती है.