रोजगार पर शब्दों का मकड़जाल


Einstein discovered the theory of gravity, that too without the help of mathematics: Piyush Goyal

 

अंतरिम बजट से पहले मोदी सरकार देश में गहराती बेरोजगारी के आंकड़ों पर घिरी हुई थी. साल 2017-18 में देश में बेरोजगारी बीते साढ़े चार दशकों में सबसे ज्यादा बताने वाली नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की रिपोर्ट पर उसने लीपापोती शुरू कर दी थी.

अंतरिम बजट में भी उसने महज शब्दों का मकड़जाल बुनकर बेरोजगारी की सही तस्वीर छिपानी की कोशिश की. अपनी ढाई घंटे से भी अधिक चले बजट भाषण में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने रोजगार सृजन से जुड़ी कोई भी बड़ी घोषणा नहीं की. हालांकि ‘नौकरी’ और ‘रोजगार’ जैसे शब्दों का जिक्र उनके भाषण में बार-बार हुआ. इसके उलट वे याद दिलाना नहीं भूले कि मोदी सरकार की योजनाएं रोजगार बढ़ाने के मामले में सहायक साबित हुई हैं. उन्होंने कहा कि दुनिया भर में ‘रोजगार की अवधारणा’ में बदलाव हो रहा है.

इस तरह गोयल ने दावा किया कि इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) से सरकार ने नौकरियों और कारोबारों को बचाया. उनके अनुसार, रेलवे के स्वदेशीकरण से मोदी सरकार के मेक इन इंडिया अभियान को बल मिला और नौकरियां पैदा हुईं. लगभग इसी अंदाज में उन्होंने अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण और सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में नौकरियों के लगातार पैदा होने का दावा किया. गोयल ने अपने बजट भाषण में यहां तक कह दिया कि लघु और मझोले उद्योगों ने भी मोदी सरकार के कार्यकाल में रोजगार पैदा किए. जबकि तमाम अध्ययनों में ये जाहिर हो चुका है कि नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार इन उद्योगों पर पड़ी.

दरअसल गोयल रोजगार को लेकर अपने बजट भाषण में उसी सोच को दोहरा भर रहे थे जिसके आधार पर मोदी सरकार देश में रोजगार की उजली तस्वीर पेश करती है. वह मानती है कि देश में अर्थव्यवस्था के सांगठनिक (Formalization) हो जाने और जीडीपी के तेज होने से कर्मचारी प्रोविडेंट फंड (ईपीएफ) की सदस्य संख्या बढ़ी है जो अपने आप में देश में रोजगार के बढ़ते अवसरों का प्रमाण है.

हालांकि जानकारों ने समय-समय इस दावे का खंडन करते हुए कहा है कि देश में रोजगार की सही स्थिति ईपीएफ की आंकड़ों से नहीं पता चलती. रोजगार की विश्वसनीय तस्वीर एनएसएसओ (NSSO) और इसके श्रम ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलती है. अब ये रहस्य नहीं है कि सरकार एनएसएसओ के आंकड़ों को जान-बूझकर सार्वजनिक करना नहीं चाहती थी. उसे डर था कि इससे देश में बेरोजगारी की सही तस्वीर सामने आ जाएगी.

जाहिर है कि बजट में सरकार के पास रोजगार के मुद्दे पर कोई ठोस आश्वासन करने की गुंजाइश ही नहीं थी. बावजूद इसके, इस मुद्दे पर उसके धूर्त रवैए में कोई फर्क नहीं आया है. यही वजह है कि पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कल ट्वीट कर कहा है कि अगर देश में बेरोजगारी होती तो देश में सामाजिक अशांति फ़ैल गई होती. वे ये याद नहीं रखते कि उन्हीं की सरकार ने प्रति वर्ष 2 करोड़ रोजगार पैदा करने का वादा किया था.


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