UN महासभा ने प्रस्ताव पास कर म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के मानवाधिकार हनन की निंदा की
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों और देश के दूसरे अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार हनन की निंदा करते हुए प्रस्ताव पारित कर दिया है. 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में यह प्रस्ताव 9 के मुकाबले 139 मतों से पास हुआ, जबकि 28 देशों ने वोट नहीं किया. इस प्रस्ताव में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों की मनचाही गिरफ्तारी, शारीरिक प्रताड़ना, हिरासत में बलात्कार और हत्या की कड़ी निंदी की गई है.
प्रस्ताव में म्यांमार सरकार से राखाइन, काचिन और शान प्रांतों में रहने वाले रोहिंग्या मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार हनन को तुरंत रोकने के लिए कहा है. हालांकि, संयुक्त राष्ट्र महासभा का प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्य नहीं होता है लेकिन यह विश्व के मत के दर्शाता है.
बौद्ध बहुसंख्यक म्यांमार बहुत लंबे समय से रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश का मानता है. हालांकि, रोहिंग्या मुसलमानों की कई पीढ़ियां म्यांमार में रहती आई हैं. 1982 के बाद से रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार की नागरिकता नहीं दी गई है. उन्हें उनके मूल अधिकारों से भी वंचित रखा गया है.
रोहिंग्या समस्या तब अपने वीभत्स रूप में सामने आई, जब 25 अगस्त 2017 को रोहिंग्या सशस्त्र समूह के एक कथित हमले के जवाब में म्यांमार की सेना ने राखाइन प्रांत में उनका सफाया करने के उद्देश्य से अभियान चालू किया.
इस अभियान ने लाखों रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश भागने के लिए मजबूर कर दिया. इसके साथ ही म्यांमार की सेना पर आरोप लगे कि अभियान के दौरान सशस्त्र सैनिकों ने सामूहिक बलात्कारों और हत्याओं को अंजाम दिया और हजारों घर जला दिए.
संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए संयुक्त राष्ट्र में म्यांमार के एम्बेसडर हो डो सुअन ने कहा, ‘यह प्रस्ताव मानवाधिकारों के पालन को लेकर चयनात्मक, भेदभावपूर्ण और दोहरे रवैये का एक और उदाहरण है.’
उन्होंने कहा कि प्रस्ताव में रखाइन प्रांत की जटिल परिस्थितियों का हल खोजने का कोई प्रयास नहीं किया गया है, साथ ही चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों को भी कोई तवज्जो नहीं दी गई है.
एम्बेसडर ने आगे कहा, ‘यह प्रस्ताव अविश्वास के नए बीज बोएगा और क्षेत्र में विभिन्न समुदायों के बीच और अधिक ध्रुवीकरण पैदा करेगा.’
महासभा ने अपने प्रस्ताव में उन अंतरराष्ट्रीय फैक्ट फाइंडिंग मिशनों को तवज्जो दी है, जिनमें म्यांमार की सेना द्वारा रोहिंग्या मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार हनन की बात कही गई है. प्रस्ताव में इसे अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत वीभत्स अपराधों की श्रेणी में रखा गया है.
इससे पहले म्यांमार की नेता आंग सान सू की ने हेग स्थित अंतराराष्ट्रीय कोर्ट में रखाइन प्रांत मे म्यांमार की सेना की कार्रवाई का बचाव किया. उन्होंने रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार को लेकर म्यांमार सरकार के किसी भी प्रकार के इरादे को पूरी तरह से नकार दिया.