उत्तर प्रदेश में बीजेपी पर भारी महागठबंधन


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चुनाव के पहले चरण में पश्चिम उत्तर प्रदेश के आठ सीटों के लिए मतदान हुआ है. यहां आठ में से छह सीटों पर बीजेपी पर सीधा हार का खतरा मंडरा रहा है. मुस्लिम और दलित मतदाताओं का महागठबंधन के पक्ष में लामबंद होना इसकी प्रमुख वजह है. पिछले चुनाव में दंगों के कारण बीजेपी के साथ आया जाट समाज भी बीजेपी से छिटक चुका है. एक नजर इन आठ लोकसभा क्षेत्रों के समीकरण पर डालते हैं.

मुजफ्फरनगर लोकसभा

साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी. जिसका मुख्य कारण मुजफ्फरनगर दंगा था. लेकिन 2019 आते-आते सारे राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं. हाल ही में हुए चुनाव में मुस्लिम और दलित मतदाताओं ने एकमुश्त महागठबंधन को वोट किया है. इसके अलावा जाट समाज भी महागठबंधन के पक्ष में कुछ हद तक लामबंद दिखा. लोग चौधरी अजित सिंह का आखिरी चुनाव मान रहे हैं. 1971 में चौधरी चरण सिंह इस लोकसभा सीट पर चुनाव हार गए थे जिसकी टीस आज तक जाट मतदाताओं के दिल में है.

बिजनौर लोकसभा

बीजेपी सांसद कुंवर भारतेन्दु को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. पिछले पांच साल तक लोगों के बीच में नहीं आना इसकी बड़ी वजह है. यहां पर महागठबंधन (बसपा) की तरफ से मलुक नागर को उतारा गया है. वह गुज्जर समुदाय से आते हैं. कांग्रेस की तरफ से मुस्लिम उम्मीदवार होने के बावजूद भी मुस्लिम मतदाताओं का रुझान महागठबंधन की तरफ जाता हुआ दिखाई दे रहा है. यहां पर दलित मतदाताओं की जनसंख्या भी अच्छी खासी है जिनका रुझान भी महागठबंधन की तरफ ही जाता दिख रहा है.

इस लोकसभा सीट पर गुज्जर उम्मीदवार होने के कारण गुज्जर समाज का रुख भी महागठबंधन के पक्ष में जाता दिख रहा है. राष्ट्रीय लोकदल का जाटों पर प्रभाव रहा है. जिसकी वजह से बीजेपी से जाट उम्मीदवार होने के बाद भी पार्टी को फायदा मिलता नहीं दिख रहा है.

सहारनपुर लोकसभा

सहारनपुर लोकसभा की बात करें तो अबकी बार यहां राजनीतिक समीकरण काफी हद तक उलझे हुए हैं. यहां पर महागठबंधन, कांग्रेस और बीजेपी तीनों ही पार्टियों ने मजबूती के साथ चुनाव लड़ा है. अगर देखा जाए तो दलित मतदाता यहां पर भी बसपा के साथ लामबंद दिखाई दिए और दूसरी जातियां बीजेपी के साथ खड़ी दिखाई दी.

यहां पर मुस्लिम मतदाताओं का रुख महागठबंधन और कांग्रेस दोनों की तरफ जा रहा है. जिस कारण यहां पर वोट बंटने का फायदा बीजेपी को हो सकता है. त्रिकोणीय मुकाबला होने के कारण यहां तीनों पार्टियों में से कोई भी जीत कर परचम लहरा सकता है.

कैराना लोकसभा

पलायन के कारण पूरे देश में कैराना की चर्चा होती रही है. हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में यहां पर बीजेपी की जमीन खिसकती हुई दिखाई दे रही है. जिसका मुख्य कारण बीजेपी के कद्दावर नेता रहे हुक्म सिंह की बेटी मृगांका सिंह का टिकट काटकर प्रदीप चौधरी को देना माना जा रहा है.

इस कारण यहां पर गुर्जर मतदाताओं में वोट डालने का उत्साह नहीं दिखा. कांग्रेस की तरफ से यहां जाट उम्मीदवार हरेंद्र मलिक मैदान में हैं. वह जाट वोट लामबंद करते दिखाई दिए. जिसका सीधा नुकसान बीजेपी को होता दिखाई दे रहा है. इस लोकसभा सीट पर मुस्लिम और दलितों का अच्छा वोट बैंक है जो महागठबंधन के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है. राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन में शामिल होने के कारण कुछ हद तक जाट मतदाता भी महागठबंधन के पक्ष में जाते दिखाई दे रहे हैं.

बागपत लोकसभा

बागपत लोकसभा सीट भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि मानी जाती है. 1998 और 2014 लोकसभा चुनाव के अपवाद को छोड़ दे तो लगातार यहां से चौधरी परिवार ही जीतता आ रहा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर दंगे के कारण हुए धुव्रीकरण के कारण यहां पर चौधरी अजित सिंह को हार को मुंह देखना पड़ा था. लेकिन 2019 आते-आते यहां के सभी राजनीतिक समीकरण बदल चुके है. गन्ना भुगतान नहीं होने के कारण यहां किसानों में बीजेपी के खिलाफ नाराजगी है. दंगे के कारण लोकदल का जो कोर वोटबैंक 2014 में छिटक कर बीजेपी में चला गया था वो अब वापस लोकदल के साथ खड़ा होता दिखाई दे रहा है. राष्ट्रीय लोकदल के महागठबंधन में होने के कारण मुस्लिम और दलित मतदाताओं के वोटबैंक का फायदा भी सीधा लोकदल को मिलता दिख रहा है.

मेरठ लोकसभा

मेरठ लोकसभा पर बीजेपी का अच्छा प्रभाव है. 2009 और 2014 लोकसभा चुनाव बीजेपी के जीतने की वजह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में वोटों का विभाजन रहा है. अबकी बार समाजवादी, बसपा और लोकदल गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे हैं. इसलिए इस सीट पर बीजेपी की राह अब की बार आसान नहीं है.

गौतमबुद्धनगर लोकसभा

इस सीट पर सीधा मुकाबला बीजेपी और महागठबंधन के बीच ही है. कांग्रेस से राजपूत उम्मीदवार अरविंद कुमार सिंह के आने से मुकाबला और भी रोचक हो गया है. क्योंकि अरविंद कुमार सिंह अगर ज्यादा वोट ले गए तो उसका सीधा नुक़सान बीजेपी को होगा. देहात क्षेत्र में बीजेपी उम्मीदवार का विरोध था जिस कारण बीजेपी की राह इस सीट पर आसान नहीं है.

गाजियाबाद लोकसभा

गाजियाबाद लोकसभा में बीजेपी की स्थिति अच्छी है जिसका मुख्य कारण शहरी मतदाताओं का वोट बीजेपी के पक्ष में जाना माना जा रहा है. लेकिन देहात क्षेत्र में बजेपी 2014 की तुलना में कमजोर दिख रही है. अगर बीजेपी उम्मीदवार देहात क्षेत्र से ठीक-ठाक वोट ले गया तो महागठबंधन के लिए चुनौती खड़ी कर देगा.


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