वेनेजुएला: तेल भंडार पर गिद्धदृष्टि


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वेनेजुएला का मुद्दा अमेरिका द्वारा उसी तरह से उछाला जा रहा है जैसे कभी इराक में रासायनिक हथियार की मौजूदगी मुद्दा उठाया गया था. आखिरकार इराक में सैन्य दखलअदांजी की गई और सद्दाम हुसैन को अपदस्थ कर दिया गया. जब अमरीकी सेना इराक से लौटी तो उन्हें वहां कोई रासायनिक हथियार नहीं मिला लेकिन तेल के कुओं पर अमरीका तथा फ्रांस के तेल कंपनियों का कब्जा हो चुका था.

इस बात की पूरी संभावना है कि वेनेजुएला में भी इसी तरह की कार्यवाही की जा सकती है जिसमें निकोलस मदुरै को अपदस्थ कर वहां अमेरिकी हुक्मरानों के पसंदीदा किसी शख्स को सत्तारूढ़ करवा दिया जाए. जाहिर है कि वेनेजुएला के 300,878 मिलियन बैरेल तेल रिजर्व पर अमेरिका सहित कई विकसित देशों की नज़र लगी हुई है. बाकी जो कुछ भी राजनीतिक अस्थिरता है उसे पैदा करने में लैग्लीं, पेंटागन और अमेरिकी विदेश विभाग सिद्धहस्त हैं और पहले भी इसे कई देशों पर आजमाया जा चुका है.

खुद अमरीका के एनर्जी इनफॉरमेशन एडमिनिस्ट्रेशन के साल 2017 के आंकड़ों के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा तेल का भंडार वेनेजुएला में ही है. वेनेजुएला में तेल का भंडार 300,878 मिलियन बैरेल्स है. उसके बाद क्रमशः सऊदी अरब में 266,455 मिलियन बैरेल्स, कनाडा में 169,709 मिलियन बैरेल्स, ईरान में 158,400 मिलियन बैरेल्स, इराक में 142,503 मिलियन बैरेल्स, कुवैत में 101,500 मिलियन बैरेल्स, संयुक्त अरब अमीरात में 97,800 मिलियन बैरेल्स, रूस में 80,000 मिलियन बैरेल्स, लीबिया में 48,363 मिलियन बैरेल्स और अमेरिका में 39,230 मिलियन बैरेल्स है.

जाहिर है कि दुनिया में जिस देश के पास तेल और प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा भंडार हो और वह अपने तेल के कुओं का राष्ट्रीयकरण कर दे तो वह दैत्याकार तेल कंपनियों के आंखों की किरकिरी जरूर बन जाएगा. वेनेजुएला में यह काम किया था वहां के पूर्व राष्ट्रपति ह्यूगो चावेज़ ने.

ह्यूगो चावेज़ 2 फरवरी 1999 से लेकर 5 मार्च तक वेनेजुएला के लोकतांत्रिक तौर पर निर्वाचित राष्ट्रपति रहे हैं. साल 2007 में ह्यूगो चावेज की सरकार ने वहां के तेल के कुओं का राष्ट्रीयकरण कर दिया फलतः विदेशी तेल कंपनी एक्शोन मोबिल कॉर्प और कोनोक्को फिलिप्स को वेनेजुएला छोड़कर जाना पड़ा था. उसके बाद से वेनेजुएला में आजतक जो रहा है वह उन तेल के कुओं पर फिर से इज़ारेदारी कायम करने के लिए ही किया जा रहा है.

इससे एक यक्ष प्रश्न समाज के सामने उपस्थित हो जाता है कि हजारों साल से जमीन के नीचे दबकर पुरातत्व ऊर्जा में परिणीत हुए कोयले, तेल और गैस के भंडार पर किसका हक है? क्या एक चुनी हुई सरकार को इस बात का हक नहीं है कि वह सदियों से संरक्षित इन बहुमूल्य ऊर्जा के स्त्रोतों से प्राप्त धन का उपयोग वहां पर रहने वालों के बेहतरी के लिए खर्च कर सके. अमरीका को किसने यह हक दिया है कि तेल की लूट-खसोंट से वंचित कर दिए जाने के बाद फिर से खोई हुई इज़ारेदारी प्राप्त करने के लिए राजनीतिक और सैन्य हस्तक्षेप करें. 

बेशक, शीतयुद्ध के बाद के दौर में दुनिया का शक्ति संतुलन अमरीका के पक्ष में झुक गया है, वह दुनिया का स्वंयभू दरोगा बन बैठा है. उसके पास बेहतर सैन्य और गुप्तचरी की शक्ति है. लेकिन यह सब तो उसकी सीमाओं की रक्षा के लिए है और यह अमेरिकी करदाताओं के पैसे से किया जाता है. यदि वेनेजुएला के तेल के कुओं पर अधिकार मिल भी जाता है तो वह दैत्याकार तेल कंपनियों को ही मिलने जा रहा है न कि अमेरिकी जनता को, जैसा इराक में हुआ था. 

अमेरिका की कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस के अनुसार इराक में अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप पर 815 बिलियन डॉलर का खर्च आया था. लेकिन अन्य अर्थवेत्ताओं के अनुमान के अनुसार इराक में सैन्य कार्यवाही के बाद तथा साल 2010 तक वहां पर सेना के रखरखाव का खर्च 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का भी हो सकता है. लेकिन इसके बदले में वहां की जनता को क्या मिला? मिला बड़ी-बड़ी तेल कंपनियों को इराकी तेल के कुओं पर अधिकार. शायद इसी लिये साल 2000 में एक्कशोन, चेवरॉन, बीपी और शेल कंपनियों ने बुश के चुनाव में दिल खोलकर खर्चा किया था. इसके बाद ही साल 2003 में इराक पर सैन्य चढ़ाई कर दी गई थी. इन तेल कंपनियों ने नवंबर 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव के समय तथा बाद में भी चुनावी चंदा दिया था.

द गॉर्डियन (3 मार्च’2016) की खबर के मुताबिक तेल कंपनियों ने मिलकर डोनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति चुनाव के लिये 100 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा का खर्च किया था. ओपेनसीक्रेट डॉट ओआरजी के अनुसार 2017-18 में चेवरॉन कार्प ने रिपब्लिकन पार्टी को 1,157,312 डॉलर, एक्कशोन मोबिल ने 1,443,407 डॉलर, मैगनोलिया ऑइल एँड गैस ने 493,114 डॉलर, ओसीडेंटल पेट्रोलियम ने 540,217 डॉलर, कोनोक्को फिलिप ने 285,020 डॉलर दिया था. इऩ कंपनियों ने डेमोक्रएट्स को भी चंदा दिया पर रिपब्लिकन की तुलना में कम दिया था. तेल कंपनियों ने चुनाव के अलावा भी लाबिंग के लिये दिल खोलकर खर्च किया. साल 2018 में एक्कशोन मोबिल ने लाबिंग पर 11,150,000 डॉलर, चेवरान कार्प ने 9,600,000 डॉलर तथा अमेरिकन पेट्रोलियम ने 6,970,000 डॉलर खर्च किए.

गौरतलब है कि 2013 में ह्यूगो की अकाल मृत्यु ने अमरीकी हुक्मरानों को आशा की एक किरण दिखाई दी थी. उन्हे लगने लगा कि अब बोलीवोरियन क्रांति का भी अंत हो जायेगा. तेल घरानों की जीभ फिर से वेनेजुएला के तेल कुओं पर कब्जा करने के लिए लपलपाने लगी. उन्हें लगा कि तेल के विशाल भंडार उन्हें फिर से पुकार रहे हैं. परंतु ह्यूगो चावेज़ के उत्तराधिकारी निकोलस मदुरै की वेनेजुएला के राष्ट्रपति के चुनाव में जीत से उनके तमाम उम्मीदो पर पानी फेर दिया था. हालांकि, तेल घरानों ने जी तोड़ कोशिश की थी कि हेनरिक केप्रीलस सत्तारुढ़ हो जाए लेकिन यह संभव नहीं हो सका था.

उसके बाद से ही अमरीका वेनेजुएला में अंदरूनी विद्रोह को बढ़ावा दे रहा है और खुलेआम इन विद्रोहियों के साथ हो गया है. पिछले साल निकोलस मदुरै को फिर से वेनेजुएला की जनता ने दो-तिहाई बहुमत से निर्वाचित किया है. इस चुनाव में अंतरराष्ट्रीय प्रेक्षक भी उपस्थित थे, जिन्होंने चुनाव को निष्पक्ष करार दिया था. वेनेजुएला में पिछले हफ़्ते सियासी संकट तब गहरा गया जब विपक्ष के नेता जुआन ग्वाइदो ने ख़ुद को देश का जायज़ राष्ट्रपति बताते हुए राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को चुनौती दी थी. अमेरिका समेत कई देशों ने ग्वाइदो का समर्थन किया है. दूसरी तरफ रूस और चीन के साथ कई दूसरे देशों ने निकोलस मदुरै का समर्थन किया है.

वेनेजुएला के सियासी संकट पर पूरे दुनिया की नज़र लगी हुई है. लेकिन तथ्यों के आधार पर जो अकाट्य सत्य है, वह है वेनेजुएला के तेल के कुओं पर तेल घरानों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है. हां, इसे सियासी जामा पहनाकर अमलीजामा पहनाने का पुनीत काम डोनल्ड ट्रंप संभाले हुए हैं.


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