रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों ने रॉयटर्स से की ANI की शिकायत


veterans write to Thomson Reuters about ani fake report

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सेना के रिटायर्ड अधिकारियों ने बहुराष्ट्रीय समाचार एजेंसी थॉमसन रॉयटर्स से एशियन न्यूज इंटरनेशनल (एएनआई) की शिकायत की है. ये शिकायत उस पत्र के बारे में की गई है जो इन अधिकारियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को लिखा था. रॉयटर्स की साझीदार समाचार एजेंसी एएनआई ने इस पत्र को फर्जी बताते हुए खबरें प्रकाशित की थी.

रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों की इस शिकायत में कहा गया है कि एएनआई ने सशस्त्र सेनाओं का राजनीति इस्तेमाल करने के विरोध में की गई अपील को ‘बदनाम’ किया है.

रिटायर्ड मेजर प्रियदर्शी चौधरी ने रॉयटर्स को लिखे पत्र में कहा, “हम समझते हैं कि एएनआई ने सत्ताधारी पार्टी के आदेश पर कथनों के साथ छेड़छाड़ की है और हमारे नेक इरादों को बदनाम किया है.”

दरअसल सेना के रिटायर्ड अधिकारियों ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर सेना के राजनीतिक इस्तेमाल पर विरोध जताया था. इसके बाद एएनआई ने दावा किया था कि इस पत्र में उल्लेख किए गए कई अधिकारियों ने पत्र के बारे में जानकारी होने से मना किया है.

एएनआई ने जिन रिटायर्ड अधिकारियों के बारे में ऐसा कहा था, लेफ्टिनेंट जनरल एमएल नायडू उनमें से एक हैं. एएनआई ने नायडू के नाम पर लिखा, “ऐसे किसी पत्र के लिए मेरी सहमति नहीं ली गई और ना ही मैंने ऐसा कोई पत्र लिखा है.”

इसके ठीक दो दिन बाद लेफ्टिनेंट जनरल नायडू का बयान सामने आया था. जिसमें उन्होंने एएनआई पर अपने बयान का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया था. इसके अलावा दूसरे अधिकारियों ने भी कहा कि नायडू ने एक ईमेल के जरिए पत्र का समर्थन किया था.

इसके अलावा एएनआई ने जनरल एसएफ रोड्रिग्स और एयर चीफ मार्शल एनसी सूरी के बारे में इसी तरह का बयान जारी किया था. एएनआई ने इन दोनों के हवाले से कहा था कि इन अधिकारियों को भी पत्र के बारे में जानकारी नहीं थी.

जिसके जवाब में अधिकारियों के नाम पर राष्ट्रपति को पत्र लिखने वाले मेजर चौधरी ने उन ईमेल को जारी किया था, जिनमें अधिकारियों ने पत्र में लिखी बातों को लेकर अपनी सहमति जताई थी.

इसके बाद इस पत्र के समर्थन में कई और अधिकारी उतर आए. जिससे इस पर हस्ताक्षर करने वालों की संख्या 156 से बढ़कर 422 हो गई थी.

इस अपडेटेड लिस्ट में जनरल नायडू के साथ जनरल रोड्रिग्स और एयर चीफ मार्शल सूरी के नाम भी मौजूद थे. हालांकि रोड्रिगेज और सूरी ने एएनआई की रिपोर्ट के बारे में कुछ नहीं कहा था, लेकिन उनके ईमेल वाले सबूतों की वजह से उनके नाम नहीं हटाए गए.

टेलीग्राफ लिखता है कि जब उसने इस बारे में एनएनआई की एडिटर स्मिता प्रकाश से संपर्क किया तो उन्होंने कुछ भी बोलने से मना कर दिया. स्मिता ने कहा, “हमें इस बारे में कुछ नहीं कहना.”

जब इस गलत हवाले के बारे में खबरें आईं तो स्मिता प्रकाश ने इसको लेकर एक ट्वीट किया था. इसमें उन्होंने कहा, “अगर अधिकारी निहित स्वार्थ के प्रभाव में आकर अपनी बात से मुकरते हैं, जो कि उन्होंने ऑन रिकॉर्ड कही थी, तो वे खुद को शर्मिंदा करेंगे. अगर इस बारे में उनकी सोच बदल गई है तो अलग बात है.”

मेजर चौधरी ने इस बारे में एडिटर गिल्ड और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को भी लिखा है. इसमें उन्होंने कहा है कि अगर आपको लगता है कि एएनआई ने प्रभाव में आकर गलत प्रचार किया है तो संपादकीय शुद्धता पर अमल किया जाए.

रॉयटर्स को लिखे अपने पत्र में मेजर चौधरी ने कहा, “मैं सशस्त्र सेनाओं के रिटायर्ड अधिकारियों के एक समूह की ओर से एएनआई के इस कृत्य को लेकर अपनी चिंताओं और नाराजगी को रॉयटर्स से इसलिए साझा कर रहा हूं क्योंकि थॉमसन रॉयटर्स संपादकीय कंटेंट में एएनआई का निवेशक और रणनीतिक साझीदार है.”

मेजर चौधरी ने अपने पत्र में रॉयटर्स से कुछ सूचनाएं मांगी है, जिससे कि ये अधिकारी आगे की कार्रवाई के लिए योजना बना सकें.

इसमें पूछा गया है कि क्या रॉयटर्स ने जून 2018 में एएनआई के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को विस्तार देने से पहले एएनआई के कार्यों का परीक्षण किया, क्या इसके राजनीतिक संबंधों और प्रतिष्ठा की पड़ताल की?

पत्र में रॉयटर्स से पूछा गया है कि इस घटनाक्रम के बारे में उसने एएनआई के बारे में क्या पाया? अगर कोई गलती नहीं पाई तो वह किस आधार पर अपने साझेदारों के संपादकीय कार्यों का मूल्यांकन करता है.

इसमें पूछा गया है कि रॉयटर्स मानता है कि जिस प्रकार हमारे कथनों को एएनआई से प्रस्तुत किया वो उसकी संपादकीय नीति के हिसाब से ठीक है?

इस पत्र में कहा गया है कि थॉमसन रॉयटर्स को पूरी दुनिया में सम्मान और भरोसा हासिल है, इस मान्यता की वजह से हमें विश्वास है कि हमारी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए जवाब दिया जाएगा.


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