सफाईकर्मियों के पांव धोने का दिखावा!
सफाईकर्मियों को लेकर गैर-जिम्मेदाराना रवैया हमेशा से चला आ रहा है. वर्तमान सरकार में यह बढ़ा है. एक तरफ नरेन्द्र मोदी सरकार के बजट में उनके पुनर्वास फंड को आधे से भी कम कर दिया जाता है. दूसरी तरफ ऐसी तस्वीरें जारी होती हैं जिसमें प्रधानमंत्री सफाईकर्मियों के पैर धो रहे हैं. जीविका और सम्मानजनक जीवन के सवाल को प्रतीक की राजनीति के जरिए किनारे कर दिया जाता है. सफाई कर्मचारी आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बेजवाड़ा विल्सन ने इसे नरेन्द्र मोदी की दिखावे की राजनीति करार दिया है.
मोदी सरकार संसद अपनी पीठ ठोकते हुए अंतरिम बजट पेश करती है. बजट को लोक कल्याणकारी करार देते हुए काफी हंगामा खड़ा किया गया. लेकिन जमीनी स्तर पर यह बजट सफाई कर्मचारियों के साथ किए गए छल से एक इंच भी ज्यादा नहीं है. पिछले साल के बजट में सफाई कर्मियों के पुनर्वास लिए महज 70 करोड़ रखा गया था. जिसे इस साल मजाक की हद तक घटाकर सिर्फ 30 करोड़ कर दिया गया है.
इस फंड का मकसद सफाई कर्मियों को स्वरोजगार के मौके देना और आत्मनिर्भर बनाना है. लेकिन जारी फंड इसके लिए नाकाफी है.
पुनर्वास कानून के अनुसार सफाईकर्मियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 40 हजार की राशि तत्काल सहायता के तौर पर दी जानी है. इसके साथ ही कम ब्याज दर पर 15 लाख तक का कर्ज देने का प्रावधान है.
1993 के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 30 हजार ऐसे सफाईकर्मी हैं जो अमानवीय तरीके से अपना काम करने को मजबूर हैं. अब यह संख्या करीब 45 हजार तक पहुंच चुकी है. ऐसे में इतनी बड़ी संख्या के लिए 30 करोड़ का सरकारी फंड एक रस्म अदायगी भर है.
बेजवाड़ा विल्सन द टेलीग्राफ को दिए एक इंटरव्यू में बताते हैं, “मोदी सरकार इनके लिए कुछ करना नहीं चाहती है. पुनर्वास फंड से 300 सफाईकर्मियों का भी पुनर्वास हो पाना संभव नहीं है. मोदी का सफाई कर्मियों के पैर धोना बस दिखावे की राजनीति है.”
विल्सन कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने लाल किले से 15 अगस्त 2014 को सफाईकर्मियों के लिए बड़े-बड़े वादे किए थे लेकिन अब हालात और भी बदतर हैं. प्रति सफाईकर्मी पुनर्वास के लिए एक हजार रुपये से भी कम रखा गया है.”
पुनर्वास फंड में कटौती के बाद प्रधानमंत्री इलाहाबाद जाकर सफाईकर्मियों के पैर धोते हैं. वहीं पिछले चार महीनें के भीतर दर्जनों सफाईकर्मी की मौत अमानवीय अवस्था में काम करते हुए हुई है.