राम नहीं रामायण भरोसे!


weekly satire column by rajendra sharma on govt decision to air ramayana

 

भाई वाह, मोदी जी वाह. अपने आलोचकों को क्या मुंह तोड़ जवाब दिया है! अब कहकर तो दिखाएं कि मोदी जी ने लॉकडाउन में गरीब-गुरबा को राम भरोसे छोड़ दिया है. सारी दुनिया हंसेगी इन विरोध के अंधों पर. लॉकडाउन में दूसरी कोई खुराक पहुंचे न पहुंचे, मोदी जी ने चौबीस घंटे में पूरे दो घंटे की ”रामायण” की खुराक पहुंचाने का अचूक इंतजाम करा दिया है. वह भी हर रोज. वह भी पूरे भारतवर्ष में. सिर्फ गरीब-गुरबा के लिए नहीं, अक्खी पब्लिक के लिए. अगर यह पब्लिक को राम भरोसे छोडऩा है, तो रामायण भरोसे छोड़ना किसे कहेंगे?

बेशक, रामायण भरोसे मेें भी, कुछ-कुछ राम भरोसे भी शामिल है. लेकिन, कुछ-कुछ ही. रामायण में भरोसे और भी हैं, राम जी के सिवा. खैर जो भी हो, दोनों अलग-अलग हैं. रामायण भरोसे, राम भरोसे नहीं होता है. सिर्फ राम भरोसे होता तो लॉकडॉउन में योगी जी के अयोध्या में रामलला को टेंपरेरी से एक और टेंपरेरी मंदिर में शिफ्ट करने से भी, काम चल जाता. पर नहीं चला. टीवी पर दिखाया, पर काम नहीं चला. उल्टे भूख-भूख का शोर शुरू हो गया. पर मोदी जी ने तो सब पहले ही भांप लिया था. तभी तो उनके मंत्री ने तेतीस साल बाद रामानंद सागर की रामायण को बुला भेजा है. रामायण भरोसे को राम भरोसे कहकर, विरोधी जनता को गुमराह क्यों कर रहे हैं? रामायण भरोसे की धर्मनिरपेक्षता पर तो कोई सवाल नहीं उठा सकता है.

हुआ क्या कि नोटबंदी, सॉरी कोरोना लॉकडॉउन से, गरीब-गुरबा का काम और खाना-रहना वगैरह जरा से छूट क्या गए, पट्ठे मुंह उठाकर गांवों की ओर चल पड़े और वह भी ठट्ठ के ठट्ठ . हजारों-हजार एक साथ. बीवी-बच्चों समेत. छोटे-बड़े, हर शहर से. चले तो अलग-अलग थे पर, लोग साथ आते गए और कारवां बनते गए. और यह सब तब जबकि मोदी जी ने तो सिर्फ तीन हफ्ते मांगे थे.

सच पूछिए तो इसे मांगे थे कहना भी महाराज के साथ ज्यादती है. मांगना तो वह था जब शोले में गब्बर ने ठाकुर साहब से हाथ मांगे थे: ”ये हाथ मुझे दे दे ठाकुर!” माना कि मजूर-वजूर तो काम को ही हाथ मानते हैं यानी काम नहीं तो हाथ नहीं. मगर गब्बर ने सिर्फ इक्कीस दिन के लिए हाथ थोड़े ही मांगे थे. फिर मोदी जी ने इक्कीस दिन भी मांगे कहां थे, सिर्फ विनती की थी. वह भी हाथ जोडक़र. हां! भक्तों में इस पर कुछ मतभेद जरूर है (मनभेद नहीं, सिर्फ मतभेद) कि महाराज ने इन नाशुक्रे मजूरों-वजूरों के आगे कितनी बार हाथ जोड़े थे.

खुद को भक्त कम चैनल ज्यादा मानने वालों ने तीन बार गिने थे, तो खुद को भक्त ज्यादा चैनल कम मानने वालों ने पांच. ”भक्त ज्यादा” ने प्रसारण के शुरू और आखिर का नमस्कार भी, हाथजोड़ी विनती में जोड़ दिया था. खैर, तीन बार भी हाथ जोडऩा मानें तो, मामला विनती का ही बनता है, मांगने का नहीं.

पर निकम्मे मजदूरों ने महाराज की विनती तक नहीं सुनी. बस चल दिए. यह तक नहीं सोचा कि हवाई जहाज, रेल, बस सब बंद है, तो जाएंगे कैसे? बस एक ही रट, लॉकडॉउन में पेट की आग कैसे बुझाएंगे? कोरोना तो बाद  में मारेगा, हम भूख से पहले ही मर जाएंगे. यह भी नहीं सोचा कि सवाल उनकी जान बचाने का नहीं है. वर्ना उन्हें तो पहले भूख से ही बचाते. सवाल तो भूखों से उन्हें बचाने का है, जिन्हें सिर्फ कोरोना का डर है, भूख का नहीं. पर उन्होंने तो भूख का अपना डर कोरोना से बड़ा मानकर लॉकडॉउन का शटर ही उड़ा दिया और सिर्फ कोरोना से डरने वालों का डर और बढ़ा दिया. कोई जुगाड़ नहीं बना तो पैदल ही निकल लिए.

कोई सवा सौ किलोमीटर तो कोई ढाई सौ और कोई सात सौ किलोमीटर. लॉकडॉउन की चौकीदारी कर रही पुलिस के डंडों तक की नहीं सुनी. रास्ते में खाने-पानी की भी उम्मीद नहीं की. बस निकल लिए, सोशल डिस्टेंसिंग का मजाक उड़ाने.

मोदी जी ने फिर भी उन्हें राम भरोसे नहीं छोड़ा. बेशक, हमारी पब्लिक है तो इसी माजने की कि उसे राम भरोसे छोड़ दिया जाता. मोदी जी तो वैसे भी रामभक्त पार्टी में हैं. अयोध्या में मंदिर वहीं बनाएंगे का हाईवे अभी-अभी तैयार कराया है. फिर पब्लिक को राम भरोसे छोडऩा तो वैसे भी हमारी परंपरा में है. योगी जी से प्रामाणिक परंपरावादी कौन होगा बल्कि वह तो साक्षात राम राज्य ही उतार लाए हैं. उनके राम राज्य में लॉकडाउन में लोग पेट भरने के लिए घास खाने के भरोसे हैं तो घास ही सही.

रामजी के भरोसे, खाने को कुछ तो है. हां! नए राम राज्य में घास को एक प्रकार का गेहूं जरूर घोषित कर दिया गया है और खबर देने वाले पत्रकार को सरकारी नोटिस दे दिया गया है. इसे कहते हैं, पब्लिक का राम भरोसे होना! योगी की ही पार्टी के हैं, महाराज मोदी भी चाहते तो पब्लिक को राम भरोसे छोड़ सकते थे. वैसे भी पब्लिक को राम भरोसे छोड़ देेते तो हाथ पकडऩे वाला भी कोई नहीं था, न विपक्ष, न संसद, न मीडिया, न न्यायपालिका. फिर भी उन्होंने पब्लिक को राम भरोसे नहीं छोड़ा. पब्लिक के लिए बाकायदा रामानंद सागर वाली रामायण का बंदोबस्त किया है. उसके ऊपर से निर्मला जी का दवा-खाना का पैकेज भी. सुना है कि चार दिन पैदल चलने के बाद, अब तो गरीबों को बस भी मिल रही है. यह भी कोई पब्लिक को राम भरोसे छोडऩा है, लल्लू!


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