एंटीबायोटिक का बेअसर होना दुनिया के लिए बड़ी चुनौती: WHO
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक बार फिर एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) की बढ़ती चुनौती के प्रति आगाह किया है. संगठन ने चेताया है कि साल 2019 में विश्व स्वास्थ्य के लिए एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध सबसे बड़ा खतरा है. एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के चलते रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं पर दवाएं असर करना बंद कर देती हैं. जीवाणु दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं.
इसके साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एचआईवी,इबोला,डेंगू,वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को भी साल 2019 में स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बताया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि यदि जल्द ही एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते इस्तेमाल को नियंत्रित नहीं किया गया तो न्यूमोनिया और ट्यूबरक्लोसिस जैसी बीमारियों का इलाज असंभव हो जाएगा. संगठन ने चेताया कि एंटीबायोटिक दवाओं के जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल के चलते अब ये दवाएं हमारी खाद्य शृंखला और यहां तक कि पानी में भी प्रवेश कर रही हैं.
इस चलते जीवाणु बेहद आसानी से इनके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर रहे हैं. प्रतिरोधक क्षमता के चलते ही ट्यूबरक्लोसिस के लिए सबसे प्रभावी माना जाने वाला एंटीबायोटिक रिफेम्पिसिन (rifampicin) पूरी तरह निष्प्रभावी हो गया है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार, पूरी दुनिया में साल 2017 में ऐसे कुल 6 लाख मामले सामने आए, जिसमें यह एंटीबायोटिक निष्प्रभावी रहा.
फिलहाल केंद्र सरकार ने एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध से निपटने के लिए राष्ट्रीय कार्यबल गठित (2017-21) गठित किया है. माना जा रहा है कि सरकार एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग को नियंत्रित करने के लिए दिशा-निर्देश बनाने और उनकी काउंटरों पर बिक्री को नियंत्रित करने जैसे कदम उठाने की तैयारी में है.
हालांकि जानकार मानते हैं कि भारत की मौजूदा स्थिति को देखते हुए ये प्रयास काफी नहीं हैं. दुनिया में जीवाणुओं से सबसे ज्यादा रोग भारत में होते हैं. डायबटीज, दिल के रोगों और कैंसर के बढ़ते मरीजों के चलते भारत में जीवाणुओं के संक्रमण से प्रभावित होने की संभावना भी सबसे ज्यादा होती है. अक्सर इन रोगों से ग्रसित मरीजों को संक्रमण से बचाने के लिए एंटीबायोटिक लिखे जाते हैं.