छत्तीसगढ़: आभासी विकास के विरुद्ध जनादेश


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पांच राज्यों के हालिया चुनाव में बीजेपी को सबसे करारी हार का सामना छत्तीसगढ़ में करना पड़ा है. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को 43 फीसदी और बीजेपी को 33 फीसदी मत मिले हैं. इस तरह से बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में 10 फीसदी मत कम मिले हैं. जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में यह अंतर महज 0.7 फीसदी का था, तब बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा मत मिले थे.

मध्यप्रदेश में बीजेपी को कांग्रेस से 0.1 फीसदी ज्यादा मत मिले हैं तो राजस्थान में कांग्रेस को बीजेपी से 0.5 फीसदी अधिक मत मिले हैं. छत्तीसगढ़ की 90 सीटों वाले विधानसभा में कांग्रेस को 68, बीजेपी को 15, बसपा को दो और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ को पांच सीटें मिली हैं.

इसका सीधा सा अर्थ है कि बीजेपी का जनसमर्थन कम हुआ है और कांग्रेस का बढ़ा है. जाहिर है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार बड़ी गहरी है इस कारण से हम इसकी गहराई से विवेचना करने की कोशिश करेंगे.

आभासी विकास खारिज़

विधानसभा नतीजों पर छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आनंद मिश्रा का कहना है कि इस बार छत्तीसगढ़ की जनता ने आभासी विकास के खिलाफ वोट दिया है. उन्होंने कहा कि विकास के नाम पर जो कुछ भी किया जा रहा है जनता उसे समझ चुकी है.

उन्होंने कहा, “उदाहरण के तौर पर उज्ज्वला योजना के तहत रसोई गैस के सिलेंडर दिये गये लेकिन जैसे ही पहला सिलेंडर खत्म हुआ तो दूसरी बार सिंलेडर भरवाने के लिये 1,030 रुपये मांगे गये. इससे विकास के नाम पर किये जा रहे सरकारी दावों की हकीकत जनता जान गई.”

उन्होंने कहा कि राज्य में इस चुनाव में जातिगत मुद्दे हावी नहीं हो पाये. लोगों की समझ में आने लगा है कि विकास का दावा तो किया जा रहा है लेकिन बेरोजगारों की संख्या भी बढ़ रही है. ऐसी स्थिति में किसानों को कांग्रेस के धान पर 2,500 रुपयों का न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के वादे ने आकर्षित किया. फिलहाल बोनस मिलाकर प्रति क्विंटल धान पर 2012 के करीब न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता है.

आनंद मिश्रा ने कहा कि जमीनी हकीकत है कि किसानों ने करीब 15 दिनों से धान बेचना बंद कर दिया है. उन्हें अब कांग्रेस सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य 2500 रुपये देने का इंतजार है. ऐसा इससे पहले शायद ही हुआ हो.

जाति से उपर उठकर वोटिंग

पिछले चार दशक से किसान आंदोलन से जुड़े हुए नंदकुमार कश्यप ने कहा कि जनता का गुस्सा इस बार वोट में बदला है. उन्होंने कहा, “जनता ने बेहतर विकल्प के लिये कांग्रेस को वोट दिया. वैसे भी पिछले कुछ समय से बीजेपी सरकार का जनविरोधी चेहरा बेनकाब हो चुका था.”

उन्होंने कहा कि रोजगार देने का दावा किया गया था लेकिन सरकार ने करीब डेढ़ लाख विभिन्न पदों पर संविदा नियुक्तियां की हैं. वह कहते हैं, “संविदा नियुक्ति पाने वालों की हालत दिहाड़ी मजदूर से भी खराब है. दिहाड़ी मजदूर के काम करने का समय नियत होता है लेकिन संविदा नियुक्ति पर बहाल सरकारी कर्मचारियों से ज्यादा समय तक काम कराया जाता है.”

उन्होंने उत्तर और दक्षिण छत्तीसगढ़ की अंदुरूनी हालात के बारे में बताया कि वहां आदिवासी रहते हैं. सरकार उन इलाकों की खदानें जिंदल और अदानी जैसे नैगम घरानों को सौंप रही है.

उन्होंने कहा, “वन अधिकार कानून का उल्लंघन करके आदिवासियों की जमीन उद्योगपतियों को सौंपी जा रही है, विरोध करने पर उसे कुचलने की कोशिश की जाती है. करीब-करीब हर आदिवासी गांव में एक-दो लोग ऐसे मिल जायेंगे जिनके खिलाफ पुलिस में केस दर्ज करवाया गया है. दूसरी तरफ आत्ममुग्धता और अहंकार के कारण सरकार जनता से दूर होती गई. जनता ने सरकार के इस जनविरोधी चेहरे के खिलाफ वोट दिया है.”

नंदकुमार कश्यप ने कहा कि इस बार किसानों और आदिवासियों ने जातियों के बंधन से उपर उठकर राजनीतिक वोट किया है नतीजा बीजेपी छत्तीसगढ़ में सबसे बुरी तरह से हारी है.

अहंकार ले डूबा

बीजेपी के छत्तीसगढ़ मीडिया सेल के राजीव चक्रवर्ती ने भी माना कि किसानों के कर्ज माफ, बिजली हाफ और 2500 रुपये धान का समर्थन मूल्य देने के कांग्रेस के वादे पर भरोसा करके किसानों ने उन्हें वोट दिया है.

दूसरी तरफ लंबे समय से संघ के सामाजिक संगठन में कार्य करने वाले बिलासपुर के एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां करते हुए लिखा है, “बीजेपी के हार के कारण:- कार्यकर्ताओं की उपेक्षा स्थानीय नेताओं द्वारा की गई. उन्हें केवल कोल्हू का बैल समझा गया. रायपुर स्थित बीजेपी कार्यालय करोड़ों खर्च करके बनाया गया लेकिन कार्यकर्ता वहीं का वहीं खड़ा रह गया, संघ और उनके कार्यकर्ताओं से नेताओं का समन्वय नहीं हो पाया सत्ताधारी हमेशा संघ को सत्ता प्राप्त करने के साधन के रूप में देखते थे, पुराने चेहरे पे विश्वास करना बीजेपी को भारी पड़ गया. चेहरे पर बदलाव नहीं किया गया, नेताओं का अंहकार एवं अकडूपन उन्हें ले डूबा. उन्हें अंहकार रहा कि हमें कोई नहीं हरा सकता, जनता के साथ हमेशा छलावा किया गया. नेता ये मानते रहे कि समस्त समाज में घूस देकर उन्हें समाज का समर्थन मिलेगा पर जनता ने उन्हें दूध से मक्खी की तरह निकाल दिया.”

वादे पर किसानों का भरोसा

जब किसान नेता और छत्तीसगढ़ के भारतीय मार्क्सवादी पार्टी के राज्य सचिव संजय पराते से सवाल किया गया कि इस चुनाव में बीजेपी हारी है या कांग्रेस जीती है तो उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर बीजेपी हारी है, बीजेपी को उसके कुकर्मों ने हराया है. बीजेपी शासनकाल में लोकतांत्रिक वातावरण को दूषित किया जा रहा था. मांगों को सुनने के बजाये आंदोलनकारियों पर लाठियां बरसाई गई जाहिर है कि इसका फायदा कांग्रेस को ही मिलना था.

संजय पराते ने भी कहा कि कांग्रेस द्वारा धान पर 2500 रुपये प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य दिये जाने पर किसानों ने भरोसा किया है. किसान धान की कीमत बढ़ने का इंतजार कर रहें हैं. उन्होंने टिप्पणी की कि किसान बोना भी जानता है और काटना भी.

जब संजय पराते से पूछा गया कि छत्तीसगढ़ में किसानों की संख्या कितनी है तो उन्होंने जवाब दिया कि खुद सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 33 लाख किसान परिवार हैं. इस तरह से इनकी संख्या एक से सवा करोड़ की हो जाती है. उन्होंने कहा कि जबकि इसमें खेत-मजदूर शामिल नहीं हैं. आदिवासी क्षेत्र कुनकुरी में आदिवासियों द्वारा चलाये गये पत्थलगढ़ी आंदोलन को जिस तरह से कुचला गया उससे भी आक्रोश बढ़ा है.
संजय पराते ने भी कहा कि इस बार जातिगत मुद्दे गौण रहें और लोगों ने राजनीतिक आधार पर वोट दिया है.

केन्द्र सरकार की हार

हाल ही में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ संपादक रुचिर गर्ग ने कहा कि जनता ने कांग्रेस को चुना है. उन्होंने कहा कि यूपीए के शासनकान में रोजगार गारंटी योजना शुरू की गई थी लेकिन बीजेपी ने तो बेरोजगारी को बढ़ाया है.

उन्होंने कहा कि यह केवल रमन सरकार की नहीं केन्द्र सरकार की भी हार है. इस चुनाव ने साबित कर दिया कि चुनाव कोई व्यापार या प्रबंधन नहीं है, यह अमित शाह की भी हार है. छत्तीसगढ़ की जनता ने सांप्रदायिकता के खिलाफ धर्म-निरपेक्षता को वोट दिया है. छत्तीसगढ़ की जनता ने मंदिर मुद्दे पर ध्यान न देकर अपने सामने उत्पन्न समस्याओं पर ध्यान केन्द्रित किया और वोट दिया है.

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अब यह साफ हो चुका है इस चुनाव में किसानों ने बदलाव के लिये वोट दिया है. वे केवल राजनीतिक सत्ता भर नहीं बदलना चाहते हैं वरन् किसानी की समस्या को दूर करना चाहते हैं. हालांकि, कांग्रेस नेतृत्व ने जीत के बाद दुहराया है कि सरकार बनने के 10 दिनों के अंदर किसानों का कर्जा माफ कर दिया जायेगा लेकिन देखना यह है कि किसान कर्ज माफी को कितनी ईमानदारी से अमलीजामा पहनाया जाता है. कांग्रेस नेतृत्व को याद रखना चाहिये कि जो किसान बोना जानते हैं वे काटना भी जानते हैं.


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