सोवियत संघ के विघटन पर क्यों अफसोस जताते हैं रूसी?


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सोवियत संघ के विघटन पर अफसोस जताने के मामले में रूसी नागरिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है. गैर सरकारी संगठन लेवांडा सेंटर के सर्वे के मुताबिक साल 2004 के बाद से यह सबसे अधिक है. फिलहाल रूस कई संकट से गुजर रहा है. जिनमें यूक्रेन के साथ विवाद एक वैश्विक मुद्दा बन गया है.

मिखाइल गोर्बाचोव के हस्ताक्षर के साथ  27 साल पहले 26 दिसंबर 1991 को सोवियत संघ का विघटन हुआ था. सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस सहित 15 देश अस्तित्व में आए थे. विघटन के साथ ही सोवियत यूनियन का दबदबा भी खत्म हो गया था. शीत-युद्ध खत्म हुआ. अमेरिका सुपरपावर बनकर उभरा और समाजवाद के बढ़ते कदम रुक गए.

आज करीब 66 फ़ीसदी रूस की जनता सोवियत संघ के विघटन और कम्युनिस्ट शासन के ख़त्म होने पर अफसोस जताते हैं.

लवांडा सेंटर सोवियत संघ के टूटने के बाद से सोवियत संघ को लेकर रूस की जनता से उनकी राय पूछती रही है. पिछले 27 साल में हर साल आधे से अधिक रूस के लोगों ने सोवियत संघ के समर्थन में अपने मत दिए हैं. केवल साल 2012 में यह दर 50 फ़ीसदी से नीचे रहा है. इसी साल व्लादिमीर पुतिन को दोबारा प्रधानमंत्री के लिए चुना गया था.

लवांडा सेंटर ने दावा किया है कि बीते दशक में वैचारिक स्तर पर रूस के लोगों में दूरियां बढ़ी है.

ज्यादातर रूस के लोगों ने सोवियत संघ के सिंगल इकोनोमिकल सिस्टम के खत्म होने की वजह से दु:ख जताया है. जबकि एक बड़े तबके को दुनिया के सुपरपावर की हैसियत खत्म होने का मलाल है. सोवियत यूनियन के दौर को देखने वाले लोग सबसे अधिक पुराने दिनों को याद करते हैं.

रूस के प्रधानमंत्री व्लादिमीर पुतिन भी सोवियत यूनियन के विघटन को सबसे बड़ा भू-राजनैतिक परिघटना मानते हैं. उन्होंने साल 2005 में अपने यूनियन स्पीच में इस बात को स्वीकार किया था. इसमें कोई शक़ नहीं है कि बीते 13 साल में वह रूस को ‘सुपरपावर’ बनाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे हैं.

अपने पड़ोसी देश जार्जिया और यूक्रेन पर हमला को रूस के खोए वर्चस्व को दोबारा पाने की कोशिश के तौर पर देखा जाता रहा है. रूस पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद सीरिया के प्रधानमंत्री बसर-अल-असद का लगातार समर्थन करता रहा है. 30 नवंबर 2015 को रूस ने सीधी मिलिट्री कार्रवाई की. सोवियत यूनियन के विघटन के बाद यह पहला मौका है जब रूस ने सीमा के बाहर सेना को कार्रवाई के लिए भेजा.

बीते हफ्ते रूस और यूक्रेन के बीच टकराव बढ़ा है. 25 नवंबर को रूस ने यूक्रेन की नौ सेना के तीन जलपोतों को कब्जे में ले लिया था. घटना के बाद से यूक्रेन के 10 इलाकों में मार्सल लॉ लागू है. यूक्रेन से साल 2014 में अलग हुए क्रीमियन प्रायद्वीप में रूस लगातार हथियार भेजता रहा है.

रूस ने अपनी सैन्य कार्रवाई को ‘यूक्रेन का उकसाने’ के खिलाफ प्रतिक्रिया बताया है. लेकिन जानकारों का कहना है कि रूस ने यूक्रेन पर दबाव बनाने के लिए सीमा पर सैन्य टुकड़ियां भेजीं. यूक्रेन के राष्ट्रपति पेट्रो पेरोशेंको के मुताबिक 80,000 रूसी सैनिक रूस अधिकृत यूक्रेन में जमा हैं.

यूक्रेन पर रूस की दादागरी को ‘सुपरपावर’ बनने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है.

विघटन के बाद रूस की ताकत आर्थिक मोर्चे पर भी घटी है. रूस की जीडीपी चीन, यूरोपीय यूनियन और अमेरिका की तुलना में काफी कम है. रूस की जीडीपी 1.6 डॉलर ट्रिलियन है. जबकि इस मुकाबले में चीन की जीडीपी 12.2 ट्रिलियन डॉलर, यूरोपीय यूनियन का 18.8 ट्रिलियन डॉलर और अमेरिका की जीडीपी 19.3 ट्रिलियन डॉलर है.

हाल में वैश्विक स्तर पर लगी आर्थिक पाबंदी की वजह से भी रूस की हालत खराब हुई है.

पिछले साल लेवांडा सेंटर की ओर से किए गए सर्वे में 34 फ़ीसदी लोगों ने कम्युनिस्ट नेता स्टालिन को ‘मोस्ट आउटस्टेंडिंग पर्सन’ बताया था. जबकि लेनिन थोड़े पीछे रह गए थे. गौरतलब है कि स्टालिन पर विरोधियों का जनसंहार करवाने के दाग भी लगे हैं. हालांकि उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी के हिंसक कदम को भी रोका था.

(www.newsweek.com से साभार)


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