भारतीयों की खुशी पर ‘विकास’ का ग्रहण


why indians are lagging behind in happiness index

 

हमारे देश में पिछले करीब तीन दशक से यानी जब से नव उदारीकृत आर्थिक नीतियां लागू हुई है, तब से सरकारों की ओर से आए दिन आंकड़ों के सहारे देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश की जा रही है. आर्थिक विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले सर्वे भी अक्सर बताते रहते हैं कि भारत तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और देश में अरबपतियों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है. इन सबके आधार पर तो तस्वीर यही बनती है कि भारत के लोग लगातार खुशहाली की ओर बढ़ रहे हैं. लेकिन हकीकत यह नही है.

हाल ही में जारी ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2019’ में भारत को 140वां स्थान मिला है. पिछले वर्ष भारत का स्थान 133वां था और उससे पहले 122 वां था. इस बार सर्वे में शामिल 156 देशों में भारत का स्थान इतना नीचे है, जितना कि अफ्रीका के कुछ बेहद पिछड़े देशों का है. हैरान करने वाली बात यह है कि इस सूचकांक में चीन (93) जैसा सबसे बड़ी आबादी वाला देश ही नहीं बल्कि पाकिस्तान (67), भूटान (95), बांग्लादेश (125), और श्रीलंका (130) जैसे छोटे-छोटे पड़ोसी देश भी खुशहाली के मामले में भारत से ऊपर हैं. यानी इन देशों के नागरिक भारतीयों के मुकाबले ज्यादा खुश हैं.

‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ संयुक्त राष्ट्र का एक संस्थान ‘सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क’ (एसडीएसएन) हर साल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वे करके जारी करता है. इसमें अर्थशास्त्रियों की एक टीम समाज में सुशासन, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, जीवित रहने की उम्र, दीर्घ की जीवन की प्रत्याशा, भरोसेमंदी, सामाजिक सहयोग, स्वतंत्रता, उदारता आदि पैमानों पर दुनिया के सारे देशों के नागरिकों के इस अहसास को नापती है कि वे कितने खुश हैं. इसमें इस बात पर भी गौर किया जाता है कि सारे देशों के नागरिकों में चिंता, उदासी और क्रोध सहित नकारात्मक भावनाओं में कितनी वृद्धि हुई है.

इस साल जो ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ जारी हुई है, उसके मुताबिक भारत उन चंद देशों में से है, जो नीचे की तरफ खिसके हैं. हालांकि भारत की यह स्थिति खुद में कोई चौंकाने वाली नहीं है. लेकिन यह बात जरूर गौरतलब है कि कई बड़े देशों की तरह हमारे देश के नीति-नियामक भी आज तक इस हकीकत को गले नहीं उतार पाए हैं कि देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) या विकास दर बढा लेने भर से हम एक खुशहाल समाज नहीं बन जाएंगे. यह गुत्थी भी कम दिलचस्प नहीं है कि पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान और श्रीलंका जैसे देश इस रिपोर्ट में आखिर हमसे ऊपर क्यों हैं, जिन्हें हम स्थायी तौर आपदाग्रस्त देशों में ही गिनते हैं. यहां तक कि लगातार युद्ध से आक्रांत फिलिस्तीन और अकाल और भुखमरी से पीडित सोमालिया भी इस सूची में भारत से बेहतर स्थिति में हैं. सार्क देशों में सिर्फ अफगानिस्तान ही खुशमिजाजी के मामले में भारत से पीछे है.

दिलचस्प बात है कि छह साल पहले यानी 2013 की रिपोर्ट में भारत 111वें नंबर पर था. तब से अब तक हमारे शेयर बाजार तो लगभग लगातार ही चढ़ते जा रहे हैं, फिर भी इस दौरान हमारी खुशी का स्तर नीचे खिसक आने की वजह क्या हो सकती है?

दरअसल, यह रिपोर्ट इस हकीकत को भी साफ तौर पर रेखांकित करती है कि केवल आर्थिक समृद्धि ही किसी समाज में खुशहाली नहीं ला सकती. इसीलिए आर्थिक समृद्धि के प्रतीक माने जाने वाले अमेरिका (19), ब्रिटेन (15) और संयुक्त अरब अमीरात भी इस साल दुनिया के सबसे खुशहाल 10 देशों में अपनी जगह नहीं बना पाए हैं. अगर इस रिपोर्ट को तैयार करने के तरीकों और पैमानों पर सवाल खड़े किए जाएं, तब भी कुछ सोचने का मसाला तो इस रिपोर्ट से मिलता ही है.

किसी भी देश की तरक्की को मापने का सबसे प्रचलित पैमाना जीडीपी या विकास दर है. लेकिन इसे लेकर कई सवाल उठते रहे हैं. एक तो यह कि यह किसी देश की कुल अर्थव्यवस्था की गति को तो सूचित करता है, पर इससे यह पता नहीं चलता कि आम लोगों तक उसका लाभ पहुंच रहा है या नहीं. दूसरे, जीडीपी का पैमाना केवल उत्पादन-वृद्धि के लिहाज से किसी देश की तस्वीर पेश करता है.

ताजा ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ में फिनलैंड दुनिया का सबसे खुशहाल मुल्क है. पिछले साल भी वह पहले स्थान पर था और उससे पहले 2017 में वह पांचवें स्थान पर था. फिनलैंड को दुनिया में सबसे स्थिर, सबसे सुरक्षित और सबसे सुशासन वाले देश का दर्जा दिया गया है. वह कम से कम भ्रष्ट और सामाजिक तौर पर प्रगतिशील है. उसकी पुलिस दुनिया में सबसे ज्यादा साफ-सुथरी और भरोसेमंद है. वहां हर नागरिक को मुफ्त इलाज की सुविधा प्राप्त है, जो देश के लोगों की खुशहाली की बड़ी वजह है.

वर्ष 2019 की रिपोर्ट में सबसे खुशहाल मुल्कों में फिनलैंड के बाद क्रमश: डेनमार्क, नार्वे, आइसलैंड, नीदरलैंड, स्विट्जरलैंड, स्वीडन, न्यूजीलैंड, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया का नंबर है. इन सभी देशों में प्रति व्यक्ति आय काफी ज्यादा है. यानी भौतिक समृद्धि, आर्थिक सुरक्षा और व्यक्ति की प्रसन्नता का सीधा रिश्ता है. इन देशों में भ्रष्टाचार भी कम है और सरकार की ओर से सामाजिक सुरक्षा काफी है. लोगों पर आर्थिक सुरक्षा का दबाव कम है, इसलिए जीवन के फैसले करने की आजादी भी ज्यादा है.

जबकि भारत की स्थिति इन सभी पैमानों पर बहुत अच्छी नहीं है. फिर भी हम पाकिस्तान, बांग्लादेश और ईरान से भी बदतर स्थिति में हैं, यह बात हैरान करने वाली है. लेकिन इस हकीकत की वजह शायद यह है कि भारत में विकल्प तो बहुतायत में हैं लेकिन सभी लोगों की उन तक पहुंच नहीं है, जिसकी वजह से लोगों में असंतोष है. इस स्थिति के बरक्स कई देशों में जो सीमित विकल्प उपलब्ध है उनके बारे में भी लोगों को ठीक से जानकारी ही नहीं है, इसलिए वे अपने सीमित दायरे में ही खुश और संतुष्ट हैं. फिर भारत में तो जितनी आर्थिक असमानता है, वह भी लोगों में असंतोष या मायूसी पैदा करती है.

मसलन, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च ज्यादा होता है, पर स्वास्थ्य के मानकों के आधार पर पाकिस्तान और बांग्लादेश हमसे बेहतर स्थिति में है. दरअसल किसी देश की समृद्धि तब मायने रखती है जब वह नागरिकों के स्तर पर हो. जबकि भारत और चीन का जोर आम लोगों की खुशहाली के बजाय राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ाने पर रहता है. इसलिए आश्चर्य की बात नही कि लंबे समय से जीडीपी के लिहाज से दुनिया में अव्वल रहने के बावजूद चीन ‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट’ में 93वें स्थान पर है.

ताजा ‘हैपिनेस रिपोर्ट’ में बताई गई भारत की स्थिति चौंकाती भी है और चिंतित भी करती है. चौंकाती इसलिए है कि हम भारतीयों का जीवन दर्शन रहा है- ‘संतोषी सदा सुखी.’ हालात के मुताबिक खुद को ढाल लेने और अभाव में भी खुश रहने वाले समाज के तौर पर हमारी विश्वव्यापी पहचान रही है.

यह अकारण नही है कि देश के उन्हीं इलाकों में अपराधों का ग्राफ सबसे नीचे है, जिन्हें बाजारवाद ज्यादा स्पर्श नहीं कर पाया है. यह सब कहने का आशय विपन्नता का महिमा-मंडन करना नहीं है, बल्कि यह आवारा पूंजीवाद के सहारे पैदा हुई अनैतिक समृद्धि और उसके सह-उत्पादों की रचनात्मक आलोचना है.

कुल मिलाकर संयुक्त राष्ट्र की ताजा ‘हैपिनेस रिपोर्ट’ में भारत की साल दर साल गिरती स्थिति इस हकीकत की ओर इशारा करती है कि विपन्नता और बदहाली के महासागर में समृद्धि के चंद टापू खड़े हो जाने से पूरा महासागर समृद्ध नहीं हो जाता.


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