विधि आयोग के दोबारा गठन पर सरकार सुस्त क्यों?


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भारत विधि आयोग का दोबारा गठन में लगातार देरी हो रही है. 21वें विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 को खत्म होने के बाद पांच महीना बीत चुका है. जबकि केन्द्र सरकार की ओर से अब तक नए विधि आयोग के गठन को लेकर कोई कदम नहीं उठाया गया है. एक सितंबर 2015 को राष्ट्रपति के शक्ति के अधीन 21वें विधि आयोग का गठन किया गया था.

द लिफलेट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक कानून और न्याय मंत्रालय की ओर से 22वें विधि आयोग के गठन के लिए सितम्बर 2018 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल को प्रस्ताव भेजा जा चुका है. लेकिन सरकार ने प्रस्ताव पर कोई ध्यान नहीं दिया है.

विधि आयोग कानून और न्याय मंत्रालय की परामर्शदात्री संस्था है. भारत में कानून सुधार में इस संस्था का अहम योगदान रहा है. विधि आयोग की ओर से जारी रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट और विशेषज्ञ भी एक अहम दस्तावेज मानते हैं.

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीएस चौहान 21वें विधि आयोग के प्रमुख थे. अपने कार्यकाल में 21वें विधि आयोग की ओर से 15 रिपोर्ट जारी की गई है. इसके साथ ही ‘द्वेषपूर्ण भाषण’ सहित दो पत्र भी प्रकाशित किए गए हैं.

21वें विधि आयोग की ओर से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ करवाने को लेकर एक ड्राफ्ट रिपोर्ट भी जारी की गई थी.

इसके साथ ही आयोग ने जेंडर असमानता दूर करने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड पर एक पत्र जारी किया था. आयोग की ओर से कहा गया था कि वर्तमान स्थिति में यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत नहीं है. लेकिन आयोग ने पत्र में जेंडर समानता के लिए पारिवारिक कानूनों में संशोधन की वकालत की थी.

जानकारों के मुताबिक, मोदी सरकार का यह अंतिम साल है और उनके शासनकाल में कानूनों में बदलाव को लेकर बहस छिड़ी हुई है. ऐसे में विधि आयोग की प्रासंगिकता बढ़ जाती है. लेकिन इसके उलट केन्द्र सरकार की ओर से अबतक नए आयोग का गठन नहीं किया गया है. आयोग के पुर्नगठन में अबतक इतनी देरी किसी सरकार ने नहीं की है.

सार्वजनिक नीति बनाने में विधि आयोग का अहम स्थान रहा है. विधि आयोग का संविधान में जिक्र नहीं है. हालांकि अनुच्छेद 39ए में कहा गया है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधि तंत्र के माध्यम से जनता को न्याय मिले.

लेकिन सरकार की ओर से आयोग के गठन पर टालमटोल रवैया से लगता है कि केन्द्र सरकार एक मजबूत कानून लाने के पक्ष में नहीं है.


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