मप्र डायरी: बड़ी तैयारी के बाद भी बीजेपी को पिछड़ने का डर
सदस्यता के आधार पर सबसे बड़ी पार्टी कही जा रही बीजेपी के लिए अपने ही लक्ष्य भारी पड़ते जा रहे हैं. प्रदेश बीजेपी को पिछली सदस्यता से 20 प्रतिशत अधिक सदस्य बनाने हैं. इस प्रकार यह आंकड़ा 20 लाख के करीब होता है. लेकिन कई जिलों में अभियान पिछड़ता दिख रहा है.
सबसे बड़ा उदाहरण तो सदस्यता अभियान के राष्ट्रीय प्रभारी शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर का है. रिपोर्ट में पार्टी को पता चला है कि यहां का लक्ष्य अभियान शुरू होने के लगभग एक महीने बाद भी पूरा नहीं हो सका. सीहोर में पार्टी ने 1.25 लाख सदस्य बनाने का टारगेट रखा था लेकिन पार्टी अभी तक 88 हजार सदस्य ही बना पाई है.
पार्टी प्रदेश के 52 जिलों में से केवल 4 जिलों में सदस्यता अभियान के टारगेट को पूरा कर सकी है, जबकि पार्टी 48 जिलों में सदस्यता अभियान के टारगेट से पीछे है. राजधानी भोपाल में भी सदस्यता अभियान का आंकड़ा निर्धारित लक्ष्य से 50 फीसदी तक भी नहीं पहुंच पाया है. ऐसे में लगातार बैठकों का दौर जारी है. अब तय किया गया है कि 9 अगस्त से कार्यकर्ता घर-घर जाकर सदस्य बनाएं.
11 अगस्त तक पूरे प्रदेश में विशेष सदस्यता अभियान चला कर लक्ष्य पूरा किया जाएगा. पार्टी नेता तनाव में हैं कि सरकार जाने के बाद कार्यकर्ताओं का जोश क्यों शिथिल हो गया? इस सवाल का जवाब खुद इसी में छिपा है.
क्या करें कार्यकर्ता ही नहीं, विधायक भी नहीं सुन रहे
बीजेपी नेतृत्व की परेशानी यही नहीं है कि उसे अपने कार्यकर्ताओं को ही मोबलाइज नहीं करना है. उसकी दिक्कत तो अपने विधायकों को साधे रखना भी है. विधानसभा में दो विधायकों की क्रास वोटिंग से छिछालेदारी झेल चुकी पार्टी अब भी कह रही है कि दोनों विधायक उसके साथ ही है लेकिन सक्रिय सदस्यता के लिए गुरुवार को बुलाई गई बीजेपी की बैठक में सूचना मिलने के बाद भी क्रॉस वोटिंग करने वाले बीजेपी विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कौल तो ठीक 13 अन्य विधायक न आए. जबकि इस बैठक में आना सभी के लिए अनिवार्य था.
इन विधायकों को प्रदेश कार्यालय मंत्री सत्येंद्र भूषण ने फोन करके आने की सूचना भी दी थी. लेकिन बहुत सामान्य से कारण बता कर विधायक बैठक से कन्नी काट गए. आश्चर्य तो तब हुआ जब प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष राकेश सिंह ने मीडिया को तर्क दिया कि कई विधायकों ने प्रदेश संगठन से शिकायत की है कि कांग्रेस के लोग संपर्क कर उन्हें प्रलोभन दे रहे हैं. इस बयान से पार्टी की चिंताएं सतह पर आ गई.
संविदा कर्मचारियों को भी कमलनाथ ने साधा
मध्य प्रदेश की राजनीति में कर्मचारियों को अपने साथ रखने का बड़ा महत्व रहा है. बीजेपी सरकार से कर्मचारियों की नाराजगी जग जाहिर है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के पहले कर्मचारी संगठनों से अलग-अलग मुलाकात कर उनकी समस्याओं को सुना था. अब वे मुख्यमंत्री के रूप में उनकी समस्याओं का समाधान कर रहे हैं. पिछड़ा वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण, गरीब सवर्ण को 10 फीसदी आरक्षण तथा पदोन्नति में आरक्षण के मसले को हल करने के लिए उच्च स्तरीय समिति के बाद अब संविदा कर्मचारियों के नियमितिकरण पर काम शुरू हो गया है.
संविदा कर्मचारियों के साथ बैठक में मुख्यमंत्री नाथ ने घोषणा की कि संविदा कर्मचारियों को हटाया नहीं जायेगा, उनको निरंतर रखा जायेगा. विभागों में जो रिक्त पद हैं उन पदों पर संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जायेगा. दो दिन में इस संबंध में आदेश भी जारी हो गए. कर्मचारियों में निर्णय की इस तेजी से खुशी है तो विपक्ष बीजेपी के हाथ से यह मुद्दा भी जाता रहा.