विंस्टन चर्चिल की गलत नीतियों का नतीजा था बंगाल का अकाल: अध्ययन
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बंगाल में 1943 में पड़ा भयावह अकाल प्राकृतिक घटना नहीं थी, बल्कि विंस्टन चर्चिल की नीतियां इसके लिए जिम्मेदार थीं. इस आपदा की वजहों का पता लगाने के लिए हुए एक हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई है. अध्ययन में पहली बार मिट्टी में मौजूद नमी का विश्लेषण कर यह निष्कर्ष दिया गया है.
मानव इतिहास की भयावह त्रासदियों में गिने जाने वाले इस अकाल में 30 लाख भारतीयों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. भारत और अमेरिका के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए इस अध्ययन में स्पष्ट कहा गया है कि आधुनिक भारतीय इतिहास की यह भयावह त्रासदी सूखे के कारण नहीं आई थी.
इस अध्ययन से जुड़े भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर के प्रमुख शोधकर्ता और सहायक प्रोफेसर, विमल मिश्रा ने सीएनएन को बताया, “यह एक अनूठा अकाल था और उसके लिए सूखा नहीं नीतिगत विफलता जिम्मेदार थी.”
शोधकर्ताओं ने 1870 और 1943 के बीच उपमहाद्वीप में पड़े छह प्रमुख अकालों के दौरान मिट्टी में नमी की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए मौसम के आंकड़ों का विश्लेषण किया.
पत्रिका ‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, साल 1943 से पहले के पांच अकाल काफी हद तक सूखे की वजह से पड़े थे, लेकिन 1943 में पड़ा बंगाल का अकाल सूखे का नतीजा नहीं था. इस वर्ष बंगाल में वर्षा औसत से अधिक हुई थी, इसलिए इस अकाल को सूखे का नतीजा नहीं माना जा सकता.
मिश्रा ने कहा कि 1943 के बंगाल का अकाल पूरी तरह से नीतिगत विफलताओं की वजह से पड़ा था.
उन्होंने कहा कि तत्कालीन ब्रिटिश इंडिया ने बंगाल में चावल के आयात को रोक दिया था. उसने इस आपदा को अकाल घोषित करने से भी इनकार कर दिया था. इसी के चलते अकाल में इतनी बड़ी संख्या में मौतें हुई.
मिश्रा ने कहा, 1943 से पहले पड़े अकालों की जांच से पता चलता है कि इन अकालों से लगभग 25 करोड़ लोग प्रभावित तो हुए. लेकिन प्रभावी नीतियों के कारण मरने वालों की संख्या नगण्य रही.
मिश्रा के अनुसार, निम्न मृत्यु दर का कारण बर्मा (अब म्यांमार के रूप में जाना जाता है) से खाद्य आपूर्ति का होना था. इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार ने राहत सहायता भी प्रदान की थी. बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने खाद्य सामग्री का आयात और वितरण कर बहुत सारे लोगों की जान बचाई थी.
हालांकि बाद में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय लोगों की जान बचाने के लिए रिचर्ड टेम्पल की नीतियों की आलोचना की. इस तरह 19 वीं शताब्दी में पड़े सूखे के दौरान उनकी नीतियां बदल दी गईं. इससे लाखों लोगों की मौत हुई.
नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने 1981 में कहा था कि 1943 में बंगाल में पर्याप्त खाद्य आपूर्ति होनी चाहिए थी.
वहीं, लेखिका मधुश्री मुकर्जी ने अपनी किताब में लिखा है कि बंगाल का अकाल चर्चिल के गलत फैसले की देन था. उन्होंने लिखा है कि भारत से बड़े पैमाने पर अनाज के निर्यात के कारण अकाल पड़ा. भारत ने जनवरी और जुलाई 1943 के बीच 70,000 टन से अधिक चावल का निर्यात किया था.
(इनपुट सीएनएन से)