महिला-कल्याण योजनाओं को केंद्र से मिलने वाली मदद में गिरावट
महिलाओं के कल्याण के लिए चलने वाली योजनाओं को साल 2018-19 में केंद्र सरकार की ओर मिलने वाली मदद में भारी कमी आई है. बीते 14 दिसंबर को यह जानकारी महिला और बाल कल्याण विकास मंत्रालय ने संसद को दी है.
इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहुचर्चित ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना ही अपवाद रही है. योजना के लिए इस साल आवंटित होने वाला बजट पिछले साल की तुलना में लगभग दोगुना हो गया है.
वहीं, इसके अलावा, ‘उज्ज्वला’ और ‘स्वाधार गृह’ जैसी अन्य योजनाओं के लिए आवंटित बजट में बड़ी कटौती हुई है. हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, चूंकि विभिन्न राज्य सरकारें इन योजनाओं के लिए पिछले साल आवंटित धन का ही उपयोग नहीं कर सकीं हैं, इसलिए इस साल इन योजनाओं को आगे का बजट जारी नहीं किया गया है.
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के लिए पिछले साल लगभग 3 ,300 लाख रुपए का बजट आवंटित किया गया था, जबकि इस साल यह बजट बढ़कर 6, 800 लाख रुपए हो गया है.
दूसरी तरफ, स्वाधार गृह योजना के लिए इस साल अब तक केवल 755 लाख का बजट जारी किया गया है. पिछले साल यह आंकड़ा लगभग 5 ,700 लाख रुपए था.
इस योजना का उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में रहने वाली बेसहारा महिलाओं के लिए आश्रय, खाद्य, कपड़ा और स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ-साथ आर्थिक एवं सामाजिक सुरक्षा भी सुनिश्चित करना है.
यह तस्वीर इसलिए भी चिंताजनक है क्योंकि राष्ट्रीय महिला आयोग की जांच समिति ने हाल में पाया कि उत्तर प्रदेश, ओडीसा और पश्चिम बंगाल के 26 स्वाधार गृहों में महिलाओं को शारीरिक तौर पर प्रताड़ित किया जाता है. साथ ही, यहां मानसिक रूप से चुनौतीपूर्ण महिलाओं के इलाज की सुविधाएं भी मौजूद नहीं हैं.
महिलाओं और बच्चों के यौन उत्पीड़न के मकसद से की जाने वाली मानव तस्करी और उसकी रोकथाम के लिए चलने वाली योजना ‘उज्ज्वला’ के भी बजट में इस बार काफी गिरावट आई है.
पिछले साल इस योजना के क्रियान्वयन के लिए 2 ,500 लाख बजट जारी हुआ था, जबकि इस बार यह घटकर 523 लाख रुपए रह गया है.
साल 2016 से इस योजना को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है और मौजूदा जानकारी के अनुसार, राज्य सरकारों ने इस योजना के क्रियान्वयन के लिए न तो आवंटित बजट का उपयोग किया है और न ही अगले बजट से संबंधित औपचारिकताएं पूरी की हैं.