गंगा किनारे बसे 72 शहरों में नहीं है वेस्ट मैनेजमेंट की व्यवस्था : अध्ययन


failure of namami gange project of central government

 

गंगा नदी को साफ और स्वच्छ बनाने के मकसद के साथ शुरू की गई नमामि गंगे परियोजना को साढ़े चार साल पूरे हो गए हैं. मोदी सरकार की प्रमुख परियोजनाओं में से एक नमामि गंगे आखिर कितनी सफल रही, इसका पता लगाने के लिए शहरी विकास मंत्रालय ने क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया (क्यूसीआई) के तहत एक कमिशन का गठन किया.

क्यूसीआई ने अपने सर्वे में पाया कि 66 शहर ऐसे हैं जिनका गंदा पानी और कचरा नालों के जरिये सीधे गंगा नदी में छोड़ा जाता है.

उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के आस-पास बसे करीब 92 शहरों में सर्वे के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की गई है.

द हिंदू में छपी खबर के मुताबिक, ये सर्वे साल 2018 के नवंबर से दिसंबर के बीच किया गया था.

सर्वे के मुताबिक 92 में से केवल 19 शहरों में नगरपालिका का सॉलिड वेस्ट प्लांट है. जबकि 72 शहरों का कचरा घाटों के किनारे फेंक दिया जाता है.

इन शहरों के कुल 242 नाले हैं. लेकिन 37 में ही कचरा रोकने की व्यवस्था की गई है. इसमें भी ज्यादातर नाले कचरा जमने की वजह से बंद हो गए हैं. सर्वे के मुताबिक 205 नालों का गंदा पानी सीधे गंगा में जाकर गिरता है. ऐसे नालों की संख्या पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा है. जहां 100 नालों का गंदा पानी गंगा में जाता है. इसके बाद बिहार का हाल भी काफी बुरा है, जहां 30 नालों का कचरा गंगा में जाकर गिरता है.

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट करने में असफल सरकार

बीते चार साल में नमामि गंगे को लिक्विड वेस्ट मैनेजमेंट और सीवेज ट्रिटमेंट प्लांट पर केंद्रित किया गया, लेकिन अब स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर भी ध्यान दे रही है. तेजी से बढ़ती शहरी जनसंख्या के साथ सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट एक बड़ी समस्या बनती जा रही है.

गंगा के आस पास के शहरों का हाल देखते हुए, बीते हफ्ते इस मुद्दे पर लोगों को जागरूक करने के लिए गंगा के आस-पास के शहरों में वर्कशॉप की गई थीं. लेकिन वर्कशॉप में शामिल हुए लोगों और अधिकारियों की कम संख्या बताती है कि वो गंगा की सफाई और बढ़ते कचरे की समस्या के प्रति गंभीर नहीं हैं.

व्यापक स्तर पर नमामि गंगे परियोजना की असफलता के बाद शहरी विकास मंत्रायल ने इस बारे में नगरपालिका के अधिकारियों को सख्ती से आदेश देते हुए गंभीरता से अपना काम करने को कहा है. मंत्रालय ने कहा है कि स्थिति का जायजा लेने के लिए मार्च में एक बार फिर सर्वे किया जाएगा.

क्यूसीआई, सफाई, कचरे का निपटान, घाट के आस-पास मौजूद कचरे के ढेर, नदी के ऊपर तैरता कचरा, नगरपालिका में मौजूद सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट और डस्टबिन, कूड़ा ना फेंकने के लिए लगाए गए संकेत और नदी के ऊपर तैरने वाले कचरे को हटाने के लिए की गई व्यवस्था के आधार पर अलग-अलग शहरों को ग्रेड देती है.

काउंसिल ने सर्वे के बाद केवल 12 शहरों को ‘ए’ ग्रेड दिया है. इसमें से ज्यादातर शहर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के हैं. जिनकी जनसंख्या एक लाख से कम है. जबकि घनी आबादी वाले चार प्रमुख शहरों- कानपुर, वाराणसी, कलकत्ता और पटना को काफी कम ग्रेड मिले हैं.


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