पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का निधन


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पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का निधन हो गया है. वह 67 साल की थीं. उन्हें दिल का दौरा पड़ने के बाद दिल्ली के एम्स में भर्ती करवाया गया था. जहां उन्होंने अंतिम सांस ली.

पीटीआई ने अस्पताल के सूत्रों के हवाले से बताया कि स्वराज को रात 10 बजकर 20 मिनट पर  दिल्ली के एम्स लाया गया और उन्हें सीधे आपातकालीन वॉर्ड में ले जाया गया.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, हर्षवर्धन समेत बीजेपी के वरिष्ठ नेता एम्स पहुंच चुके हैं. बीजेपी नेता प्रकाश जावड़ेकर, शाहनवाज हुसैन, मनोज तिवारी, महेन्द्र नाथ पाण्डेय को एम्स परिसर में देखा गया.

बीजेपी की वरिष्ठ नेता स्वराज का 2016 में गुर्दा प्रतिरोपित किया गया था.

कुछ घंटे पहले ही उन्होंने ट्वीट कर प्रधानमंत्री मोदी को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने पर बधाई दी थी.

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक साथ कई ट्वीट में कहा, “सुषमा स्वराज का जाना व्यक्तिगत क्षति है. उन्होंने जो कुछ भी भारत के लिए किया है इसके लिए वह याद की जाएंगी. मेरी संवेदनाएं उनके परिवार, समर्थक और चाहने वालों के लिए हैं.”

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट किया, “श्रीमती सुषमा स्वराज के निधन से गहरा आघात लगा है. देश ने एक लोकप्रिय नेता को खो दिया है.”

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट किया, “सुषमा स्वराज जी के निधन से मैं गहन पीड़ा में हूं, एक असाधारण राजनीतिज्ञ, एक प्रतिभाशाली वक्ता और एक असाधारण सांसद, पार्टी लाइनों से ऊपर उठकर दोस्ती रखनेवाली, इस दु:ख की घड़ी में उनके परिवार के प्रति मेरी संवेदनाएं हैं.  उनकी आत्मा को शांति मिले.

सुषमा स्वराज नरेन्द्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में विदेश मंत्री थीं.  उन्होंने स्वास्थ्य का हवाला देकर आम चुनाव लड़ने से मना कर दिया था. 16वीं लोकसभा में वह विदिशा से सांसद चुनी गई थीं.

सुषमा स्वराज साल 1977 में पहली बार अंबाला से विधानसभा चुनाव जीतकर सबसे युवा विधायक बनीं. उन्हें हरियाणा की देवीलाल सरकार में मंत्री बनाया गया था. उन्हें देश का सबसे युवा मंत्री बनने का गौरव भी मिला.

वह 1990 में राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरी.  साल 1998 में वह दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं. वह दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं. लेकिन दिल्ली विधान सभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया.

1996 में हुए लोकसभा चुनाव में वह दक्षिण दिल्ली से सांसद चुनी गईं. वाजपेयी सरकार में उन्हें केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई. यह सरकार केवल 13 दिन ही चल पाई. मार्च 1998 में दोबारा वाजपेयी सरकार बनी तो उन्हें एक बार फिर सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया. साल 1999 में उन्होंने बेल्लारी लोकसभा सीट से कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन वह जीत नहीं सकीं.


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