पिछले चार साल में केंद्र ने विज्ञापन पर खर्च किए 5,200 करोड़


 

केन्द्र सरकार ने पिछले चार साल में 5,200 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किया है. केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्य मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर ने 13 दिसंबर को संसद में बताया कि 5,200 करोड़ रुपए इस मद में खर्च किए गए हैं.

केन्द्रीय मंत्री बताया कि 2014-15 में 979.78 करोड़, 2015-16 में 1160.16 करोड़, 2016-17 में 1264.26 करोड़ और 2017-18 के बीच  1,313.57 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं.  इस साल की शुरुआत से सात दिसंबर 2018 तक 527.96 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं.  साल 2014-2018 तक कुल 5,245.73 करोड़ रुपए विज्ञापन में खर्च हुए हैं.

फैक्टली के मुताबिक यूपीए ने दस साल में औसतन हर साल 504 करोड़ रुपए विज्ञापन पर खर्च किए. वहीं मोदी सरकार ने अपने शासनकाल के पहले साल को छोड़कर(993 करोड़) सालाना 1,000 करोड़ से अधिक खर्च किए हैं.  यह रकम कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए शासन काल के मुकाबले दोगुनी है.

विज्ञापन का यह खर्च ब्यूरो ऑफ आउटरिच एंड कम्युनिकेशन (बीओसी) के माध्यम से किया गया है.

ये विज्ञापन इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट सहित सहित अन्य माध्यमों में खर्च किए गए हैं. पिछले चार साल में प्रिंट माध्यम में 2,282 करोड़ रुपया, ऑडियो-विजुअल में 2,312.59 करोड़ रुपया और आउटडोर पब्लिसिटी में 651.14  करोड़ रुपए खर्च हुए.

फैक्टली ने डीएवीपी की ओर से जारी डाटा के विश्लेषण से बताया है कि सरकारी विज्ञापनों का खर्च साल-दर-साल बढ़ता रहा है. खासकर चुनावी साल में इसमें बड़ी बढ़ोत्तरी देखने को मिलती है. अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने हर साल केवल 47 करोड़ रुपए खर्च किए. यूपीए-1 में जहां विज्ञापन पर हर साल औसतन 312 करोड़ रुपए खर्च किए गए वहीं यूपीए-2 में यह रकम बढ़कर इसी समय अंतराल के लिए 696 करोड़ हो गए.

अनुमान के मुताबिक एक आईआईएम को बनाने में करीब एक हजार करोड़ रुपए का खर्च आता है. इस हिसाब से सरकार विज्ञापनों में हुए खर्च से देश में पांच आईआईएम बना सकती थी. भारतीय प्रबंधन संस्थान(आईआईएम) को देश के सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में गिना जाता है.

 


देश