मनमोहन सिंह का एसपीजी घेरा हटाएगी केंद्र सरकार?
केंद्र सरकार पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को मिलने वाली सरकारी सुरक्षा हटा सकती है. सूत्रों के मुताबिक नरेंद्र मोदी सरकार मनमोहन सिंह को मिलने वाले विशेष सुरक्षा समूह (स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप-एसपीजी) को वापस लेने वाली है.
अखबार द हिंदू के मुताबिक यह फैसला तीन महीने तक समीक्षा करने के बाद आया है. इसकी समीक्षा कैबिनेट सचिवालय और गृह मंत्रालय ने की है. इनके अलावा खुफिया विभाग, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग और इंटेलिजेंस ब्यूरो शामिल है.
सूत्रों के मुताबिक इस फैसले की जानकारी मनमोहन सिंह को लिखित रूप में अभी तक नहीं दी गई है, लेकिन मौखिक रूप से उन्हें इसकी जानकारी मिल चुकी है.
इस फैसले का मतलब है कि अब एसपीजी के 3,000 सुरक्षा अधिकारी जो प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री और उनके परिवार वालों की सुरक्षा के लिए होते थे, अब वे केवल प्रधानमंत्री मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनकी बेटी और बेटा प्रियंका गांधी वाड्रा और राहुल गांधी को मिलेगी.
मामले के जानकार एक अधिकारी ने पहचान ना बताने की शर्त पर अखबार को बताया कि सरकार ने एसपीजी अधिनियम 1988 के प्रावधानों के मुताबिक सिंह की सुरक्षा उनके 2014 में पद से हटने के बाद बढ़ा दी थी. इसके बाद वार्षिक आधार पर सिंह और उनकी पत्नी गुरशरण कौर के सामने आने वाले सुरक्षा खतरों की समीक्षा करने के बाद नए सिरे से यह बढ़ाया गया था. मनमोहन सिंह की बेटी ने वर्ष 2014 में एसपीजी स्वेच्छा से छोड़ दी थी. वह भी एसपीजी के लिए योग्य थीं.
इस वर्ष 25 मई को सरकार ने एसपीजी का नए सिरे से नवीकरण करने के बजाए तीन महीने के लिए समीक्षा करने का फैसला किया, जो रविवार 25 अगस्त को पूरा हो गया है.
सिंह की एसपीजी यूनिट को भी इस फैसले के बारे में जानकारी दे दी गई है, और आखिरी फैसला आने तक के लिए उनसे इंतजार करने को कहा गया है.
मामले के जानकार एक अधिकारी ने बताया, “मैं यह पुष्टि कर सकता हूं कि सरकार ने मनमोहन सिंह को यह जानकारी दे दी है कि वे अब एसपीजी सुरक्षा के लिए योग्य नहीं हैं.” अधिकारी ने बताया कि यह सूचना मनमोहन सिंह तक वरिष्ट खुफिया अधिकारी ने सीधे तौर पर पहुंचाई है.
हालांकि, मामले से संबंधित कोई आदेश नहीं दिया गया है. दिल्ली के मोतीलाल नेहरू प्लेस स्थित मनमोहन सिंह के निवास पर फिलहाल 200 से ज्यादा एसपीजी सुरक्षा बल अब भी तैनात हैं. जिससे माना जा रहा है कि शायद इस फैसले में कोई बदलाव हो.
अखबार ने मामले के संबंध में कई सरकारी एजेंसियों से संपर्क करने की कोशिश की जिसमें कैबिनेट सचिवालय और गृह मंत्रालय और खूफिया विभाग शामिल हैं. लेकिन कोई भी आधिकारिक प्रतिरक्रिया नहीं मिली. इस मामले पर डॉ. मनमोहन सिंह ने भी कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया.
केंद्र सरकार के ऐसे कदम उठाने की योजना के बाद सुरक्षा प्रतिष्ठान के भीतर से भी इसकी आलोचना हो रही है. एक अधिकारी ने कहा कि भले ही मोदी सरकार किसी भी पूर्व प्रधानमंत्री को एसपीजी सुरक्षा वापस लिए जाने के लिए कदम उठा रही है, लेकिन, इसी सरकार ने ऐसा अटल बिहारी वाजपेयी के लिए नहीं किया. वाजपेयी अपने पद से वर्ष 2004 को हटे थे और वर्ष 2018 में उनकी मृत्यु होने तक उन्हें एसपीजी सुरक्षा मिली रही थी.
अधिकारी ने कहा कि लंबी बिमारी के कारण वाजपेयी पिछले एक दशक से घर पर ही रह रहे थे. इसके उलट, मनमोहन सिंह लगातार यात्रा करते रहते हैं. वे राजनीतिक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं, और राज्यसभा के सदस्य के तौर पर वे दोबारा चुने गए हैं.
एक सेवानिवृत्त एसपीजी अधिकारी ने कहा कि एसपीजी सुरक्षा केवल खतरे के आधार पर कम किया जा सकता है. यह 1988 के एसपीजी अधिनियम में परिभाषित किया गया था.
उन्होंने कहा, “कोई भी सरकार खतरे की धारणा का बारीकी से विश्लेषण किए बिना सुरक्षा को कम करने का जोखिम नहीं उठाएगी. कोई भी सरकार विशुद्ध रूप से राजनीतिक विचारों के लिए निर्णय लेकर बदनाम होना नहीं चाहेगी.” उन्होंने बताया कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या होने के बाद वीपी सिंह सरकार की घोर आलोचना हुई थी. वीपी सिंह सरकार ने राजीव गांधी की एसपीजी सुरक्षा वापिस ले ली थी.
एसपीजी का गठन पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद वर्ष 1985 में हुआ था. संसद ने वर्ष 1988 में एसपीजी अधिनियम पारित किया था. इसका मकसद देश के प्रधानमंत्रियों की सुरक्षा करना था. उस वक्त अधिनियम में पूर्व प्रधानमंत्रियों को सुरक्षा देने का प्रावधान नहीं था. वर्ष 1989 में वीपी सिंह की सरकार आने के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकारी सुरक्षा को वापिस ले लिया था. वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या होने के बाद अधिनियम में संशोधन किया गया था. इसमें कम से कम 10 सालों तक के लिए सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके परिवार वालों को एसपीजी सुरक्षा देने की बात कई गई थी.
वर्ष 1999 में वाजपेयी सरकार आने के बाद एसपीजी संचालन को लेकर बड़ी समीक्षा की गई थी. इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव, एचडी देवेगौड़ा और आईके गुजराल की एसपीजी सुरक्षा वापिस ले ली गई थी.
वर्ष 2003 में वाजपेयी सरकार ने भी अधिनियम में संशोधन किया था. इस संशोधन में पद से हटने के बाद 10 सालों तक सुरक्षा मिलने के बजाय एक साल तक सुरक्षा देने का प्रावधान तय किया गया था. इसके अलावा केंद्र सरकार के तय किए गए खतरे के आधार पर एक वर्ष से अधिक सुरक्षा दिए जाने की बात कही गई थी.