भावनाओं पर भारी असली मुद्दे


 

चुनावी मौसम में सियासतदान ध्रुवीकरण के हंसिये से वोटों की फसल काटने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन जनता अपने असली मुद्दों को भूलने को तैयार नहीं। जनता पूछ रही है -हर साल 2 करोड़ रोजगार के वादे का क्या हुआ, किसानों के लिए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें क्यों लागू नहीं की। नोटबंदी ने लाखों लोगों को सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। जीएसटी के टैक्स स्लैब के जाल में कारोबारी फंसकर बेहाल हैं। सवाल है कि असली मुद्दों पर बात करने की जगह भावनाओं को भड़काने की कोशिश करना आखिर कैसी राजनीति है।


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