बोलना क्यों मना है?


 

आखिर बोलना क्यों मना है? ये सवाल इसलिए क्योंकि हाल ही में ऐसे कई कदम उठाए गए हैं जिन्हें चुनावी माहौल में चर्चा पर पहरेदारी के तौर पर देखा जा सकता है. मिसाल के तौर पर चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश कांग्रेस की तरफ से भेजे गए 9 में से 6 विज्ञापनों पर एतराज़ किया है जिनमें राफेल से जुड़ा विज्ञापन भी शामिल है. इसी बीच चेन्नई में राफेल सौदे पर लिखी एक किताब ज़ब्त करके उसकी रिलीज को ढंग से रोक दिया गया. तो क्या चुनाव के माहौल में उन मुद्दों पर बोलना क्यों मना है जिन पर विपक्षी दल चर्चा करना चाहते हैं? क्या आयोग सत्ता पक्ष के साथ भी उतनी ही सख्ती बरत रहा है जितनी वह विपक्ष के साथ बरत रहा है?


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