दुनियाभर में प्रेस की आजादी पर मंडरा रहा है खतरा: रिपोर्ट
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) ने कहा है कि साल 2018 में दुनिया भर में प्रेस की आजादी को कई तरह के खतरे का सामना करना पड़ा. वियना स्थित संपादकों, पत्रकारों और मीडिया कर्मचारियों के वैश्विक संगठन ने अपनी ‘डेथ वाच’ रिपोर्ट में कहा है कि 2018 में 78 पत्रकारों की हत्या हुई.
आईपीआई की कार्यकारी निदेशक बारबरा त्रिओनफी ने कहा कि “लोकतंत्र के संस्थान के तौर पर प्रेस को तबाह करने के मकसद से उन देशों में भी ऐसी गतिविधियां बढ़ी जिसे मौलिक अधिकारों का संरक्षक माना जाता था.”
उन्होंने कहा कि आजाद पत्रकारिता के लिए ऐसे असहिष्णु माहौल से पत्रकारों की जिंदगी और स्वतंत्रता को खतरा पैदा हुआ और लोगों के जानने के अधिकार को नुकसान पहुंचा.
इस साल टारगेट करके किए गए हमलों में 28 पत्रकारों की जान गई जबकि सैन्य संघर्षों की रिपोर्टिंग करने के दौरान 13 पत्रकारों की मौत हुई. इस मामले में मैक्सिको और अफगानिस्तान सबसे खतरनाक रहे जहां 13-13 पत्रकारों की जान गई.
पत्रकारों को जेल की सजा देने में तुर्की सबसे आगे रहा. तुर्की ने इस साल 159 पत्रकारों को जेल में बंद किया और बहुत से पत्रकारों पर मुकदमें चलाए. वहीं अब तक सऊदी सरकार ने कथित तौर पर उनके दूतावास में मारे गए पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.
मिस्र की सरकार ने अदालत के आदेश के बावजूद पुरस्कार विजेता फोटो जर्नलिस्ट शॉनकॉन को रिहा करने से इनकार कर दिया. इसके अलावा सरकार ने अल जज़ीरा के महमूद हुसैन की हिरासत को भी मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिन्हें 700 से ज्यादा दिनों तक जेल में रखा गया. इसके अलावा प्रसिद्ध पत्रकार, इस्माइल अलेक्जेंड्रानी के बारे में भी अब तक कुछ पता नहीं चल सका है.
आईपीआई के हेड ऑफ एडवोकेसी रवि आर प्रसाद ने कहा कि दुनिया भर में सरकारें पत्रकारों की हत्या की जांच कराने में टालमटोल वाला रवैया अपना रही है. उन्होंने कहा, ‘‘बहुत सारे मामलों की जांच धीमी है. कई मामलों में राजनीतिक प्रभाव के कारण हत्यारों और साजिशकर्ताओं को न्याय के कटघरे तक नहीं लाया गया.’’
रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल के मुकाबले इस साल कुछ कम पत्रकारों के जानें गई, लेकिन साल 2018 कुल मिलाकर पत्रकारों और प्रेस की आजादी के लिए एक बड़ा खतरा बनकर सामने आया. इस साल पत्रकारों के शोषण, अत्याचार और प्रेस की आजादी को खत्म करने ज्यादा घटनाएं सामने आई. ये घटनाएं पत्रकारिता में निष्पक्षता को खत्म करने की सोची समझी रणनीति के तहत सामने आई.
रिपोर्ट के मुताबिक भारत में इस साल 7 पत्रकारों की मौत हुई. इनमें अच्युतानंद साहू, नवीन निश्चल, चंदन तिवारी, केके साजी, संदीप शर्मा, शुजात बुख़ारी और विजय सिंह शामिल हैं.