यूएन महासभा में हुआ वैश्विक शरणार्थी समझौता


 

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शरणार्थियों पर एक व्यापक वैश्विक समझौते को स्वीकार किया है. इस समझौते का उद्देश्य बड़े शरणार्थी आवागमन का प्रबंधन करना है. हालांकि ये समझौता अमेरिका और हंगरी की समर्थन के बगैर हुआ.

इस समझौते पर 181 देशों ने हस्ताक्षर किए. केवल अमेरिका और हंगरी ने इसका विरोध किया. तीन अन्य देश डोमिनिकन गणराज्य, एरिट्रिया और लीबिया मतदान से अनुपस्थित रहे थे.

मध्य यूरोपीय देश हंगरी की दक्षिणपंथी सरकार ने शरणार्थियों को लेकर बहुत सख्त कानून बना रखे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी शरणार्थियों को लेकर सख्त रवैया ही अपनाते रहे हैं.

इस शरणार्थी समझौते में व्यवस्थित, सुरक्षित आवागमन के प्रावधान रखे गए हैं. ये समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होगा.शरणार्थी समझौते की शुरुआत न्यूयॉर्क-घोषणा के बाद से हुई. इसके बाद शरणार्थियों को लेकर दो वैश्विक समझौते हुए.
ये नया समझौता जेनेवा आधारित यूएन शरणार्थी एजेंसी की देखरेख में हुआ है.

सीरिया, यमन, ईराक आदि देशों में युद्ध के चलते यूरोप में शरणार्थियों की बाढ़ सी आ गई है. इसकी वजह से शरणार्थी संकट आ खड़ा हुआ है. यूरोपीय देश इन शरणार्थियों को पनाह देने के लिए एकमत नहीं है. इसको लेकर यूरोप में समय-समय पर विवाद होता रहा है.

हालांकि शरणार्थी समस्या सिर्फ यूरोप की नहीं है. एक जर्मन संस्था ‘ब्रेड फार द वर्ल्ड’ के मुताबिक दुनिया के करीब 90 फीसदी शरणार्थी विकासशील देशों में रहते हैं. एशिया पहले से ही रोहिंग्या शरणार्थी समस्या से जूझ रहा है.


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