भगत सिंह और पाश: विचारों के साथी


pash and bhagat singh death anniversary

 

भगत सिंह के साथ-साथ महान कवि अवतार सिंह संधु ‘पाश’ भी 23 मार्च को ही शहीद हुए थे. भगत सिंह और पाश हिन्दुस्तानी क्रांतिकारियों की एक ही बिरादरी का हिस्सा थे. दोनों में कई और समानताएं हैं. दोनों की मौत एक ही दिन हुई थी. दोनों का जन्म भी सितंबर महीने में हुआ था. और दोनों का ताल्लुक पंजाब की मिट्टी से था. लेकिन दोनों के बीच सबसे बड़ी समानता है उनके विचार.

भगत सिंह को ब्रिटिश शासन ने 23 मार्च 1931 को फांसी दी. वहीं पाश को 23 मार्च 1988 को खालिस्तानी उग्रवादियों ने हत्या कर दी थी.

पढ़िए भगत सिंह पर लिखी पाश दो कविताएं.

भगत सिंह ने पहली बार

भगत सिंह ने पहली बार पंजाब को
जंगलीपन, पहलवानी व जहालत से
बुद्धिवाद की ओर मोड़ा था

जिस दिन फांसी दी गई
उनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली
जिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ था
पंजाब की जवानी को
उसके आख़िरी दिन से
इस मुड़े पन्ने से बढ़ना है आगे, चलना है आगे

23 मार्च

उसकी शहादत के बाद बाक़ी लोग
किसी दृश्य की तरह बचे
ताज़ा मुंदी पलकें देश में सिमटती जा रही झांकी की
देश सारा बच रहा बाक़ी

उसके चले जाने के बाद
उसकी शहादत के बाद
अपने भीतर खुलती खिडकी में
लोगों की आवाज़ें जम गयीं

उसकी शहादत के बाद
देश की सबसे बड़ी पार्टी के लोगों ने
अपने चेहरे से आंसू नहीं, नाक पोंछी
गला साफ़ कर बोलने की
बोलते ही जाने की मशक की

उससे सम्बन्धित अपनी उस शहादत के बाद
लोगों के घरों में, उनके तकियों में छिपे हुए
कपड़े की महक की तरह बिखर गया

शहीद होने की घड़ी में वह अकेला था ईश्वर की तरह
लेकिन ईश्वर की तरह वह निस्तेज न था


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