दुनियाभर के 11,000 वैज्ञानिकों ने क्लाइमेट इमरजेंसी को लेकर दी चेतावनी
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पिछले कुछ सालों से बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग के कारण पूरी दुनिया को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. धरती को प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से बचाने के लिए विश्व के कई देश एक साथ आगे आए हैं. इन देशों ने पृथ्वी को बचाने के लिए कई देशों ने मिलकर एक जन आंदोलन खड़ा कर दिया है. पिछले 3 सालों के दौरान पूरी दुनिया में इस प्रदूषण विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ा है.
वायु प्रदूषण के बढ़ते प्रकोप और जलवायु पर लगातार बढ़ते इंसानी प्रभाव ने दुनियाभर के लिए खतरे की घंटी बजा दी है. जिसके कारण दुनियाभर के 153 देशों के ग्यारह हजार वैज्ञानिकों ने जलवायु आपातकाल की घोषणा कर चेतावनी दी है कि जलवायु संकट को दूर करने के लिए हमें अपनी जीने की आदत सुधारनी होगी.
इससे निपटने के लिए उन्होंने छह व्यापक नीतिगत लक्ष्य दिए हैं जिन्हें हर देश को लागू करना चाहिए.
बायोसाइंस जनरल में जलवायु संकट को लेकर प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने की बड़ी चुनौती है.
मांग की जा रही है कि सभी देशों की सरकारें शून्य कार्बन उत्सर्जन की एक मियाद तय कर दें ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य बीमारियों से सुरक्षित रहे. अगर इस प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग पर अभी से हम लोग जागरुक नहीं हुए तो आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध हवा और साफ पानी के लिए भी तरस पड़ेगा.
‘ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी में पारिस्थितिकी के प्रोफेसर विलियम रिप्पल ने कहा, पिछले 40 साल की जलवायु वैश्विक वार्ताओं के बावजूद हम इस संकट को दूर करने में असफल रहे हैं. अध्ययन में आसानी से समझने वाले संकेतकों के एक सेट पर निष्कर्षों को दिया गया है जो जलवायु पर मानव प्रभाव को दिखाते हैं. उदारहण के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के 40 साल, जनसंख्या वृद्धि दर, प्रति व्यक्ति मांस उत्पादन, वैश्विक स्तर पर पेड़ों का कम होने का नतीजा है कि वैश्विक तापमान और महासागरों का जल स्तर बढ़ रहा है.’
उर्जा के मामले में कहा गया है कि विश्व को बड़े पैमाने पर उर्जा दक्षता और सरंक्षण करने वाली प्रथाओं को लागू करना होगा. वहीं उर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के इस्तेमाल को भी बढ़ाना होगा, ताकि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल में कमी हो.
जीव विज्ञान के प्रोफेसर की एक हस्ताक्षरकर्ता मारिया अबेट का कहना है,’उन्हें उम्मीद है कि इस अध्ययन से लोगों में जागरुकता बढ़ेगी. उन्होंने कहा कि अन्य जीवों की तरह हम भी अपने आस-पास के वातावरण के दूरगामी पर्यावरणीय खतरों को पहचानने के लिए अनुकूलित नहीं हैं.’