वैज्ञानिकों ने ‘नफरत की राजनीति’ के खिलाफ वोट डालने की अपील की


150 scientists appeals voters to ‘choose wisely’ against politics that divide us

 

लगभग 150 वैज्ञानिकों ने मतदाताओं से हिंसा और नफरत की राजनीति करने वालों के खिलाफ ‘सोच-समझकर’ वोट करने की अपील की है.

देश भर के सरकारी और निजी संस्थानों के वैज्ञानिकों ने ‘इंडियन कल्चर फॉर्म’ के बैनर तले ये अपील की है. वैज्ञानिकों का ये समूह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर), अशोका यूनिवर्सिटी, इंडियन स्टेटिस्टिकल इंस्टीट्यूट (आईएसआई), द नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस (एनसीबीएस) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी (आईआईटी) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से जुड़ा हुआ है.

वैज्ञानिकों ने अपनी अपील में लोकसभा चुनाव को बेहद निर्णायक  बताते हुए कहा कि “हमें आस्था, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे आधारभूत संवैधानिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए मतदान करने की जरुरत है.”

“इन अधिकारों की रक्षा के लिए हमें भीड़ की हिंसा को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने वालों और लोगों में नफरत फैलाने वालों को नकारना होगा. हमें धर्म, जाति, भाषा, लिंग के आधार पर भेदभाव करने वालों के खिलाफ खड़ा होना होगा.”

“समय है कि हम सभी नफरत और भेदभाव करने वाली तकातों का विरोध करें, जो महिला, आदिवासी, धार्मिक अल्पसंख्यक, गरीब और विकलांग जनों को हाशिए पर धकेल देते हैं.”

अपील में किसी राजनीतिक दल का नाम नहीं लिया गया है. लेकिन हस्ताक्षर करने वाले कुछ वैज्ञानिकों ने कहा कि ये अपील वैज्ञानिकों ने बीते पांच साल में सार्वजनिक विमर्श की बदली प्रकृति के आधार पर की है.

बीते लगभग तीन सालों में अलग-अलग वैज्ञानिक समूह उच्च सरकारी पदों पर बैठे अधिकारियों द्वारा दिए गए अतार्किक और अवैज्ञानिक बयानों की आलोचनाएं करते रहे हैं. वहीं इससे पहले भी सरकार शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता खत्म करने के लिए विचारकों के निशाने पर रही है.

आईआईएसईआर, पुणे में सहायक प्रोफेसर सत्यजीत रथ ने कहा कि पिछड़े राजनीतिक विचार और सार्वजनिक विमर्श में गिरती हुई वैज्ञानिक समझ के बीच संबंध है.

वैज्ञानिकों ने कहा, “हम लोगों से अपील करते हैं कि वो तथ्यों के आधार पर, भाषणों और वादों का विश्लेषण करें. हम नागरिकों से अपील करते हैं कि वो वैज्ञानिक समझ के साथ-साथ संवैधानिक मूल्यों को ध्यान में रखें.”

वैज्ञानिकों से कुछ दिन पहले लेखकों के एक समूह ने भी मौजूदा दौर पर ऐसे ही कुछ विचार रखते हुए लोगों से ‘नफरत के खिलाफ’ वोट देने की अपील की थी. अमित चौधरी, आनंद तेलतुंबड़े, रंजीत होसकोटे, अमिताव घोष, अरुंधति रॉय, अनीता नायर, रोमिला थापर, किरन नागरकर, एम मुकुंदन, मंगलेश डबराल, शशि देशपांडे, मुकुल केशवन, टीएम कृष्णा, रुचिरा गुप्ता, गिरीश कर्नाड जैसे तमाम लेखकों ने अपने हस्ताक्षर के साथ नफरत के खिलाफ वोट करने की अपील की.

उन्होंने अपनी अपील में कहा था,  “आज नफरत की राजनीति का इस्तेमाल लोगों में फूट डालने के लिए किया जा रहा है. इस समय हम एक अहम मोड़ पर खड़े हैं, हमें यह सुनिश्चित करने की जरुरत है कि हम किसी भी नफरत, असमानता, हिंसा, डर के माहौल को बढ़ावा देने वालों के खिलाफ वोट करें. यही एक ऐसा तरीका है जिसके जरिए हम संवैधानिक मूल्यों की पुर्नस्थापना कर पाएंगे. इसलिए हम सभी नागरिकों से विविधता और समानता के लिए वोट करने की अपील करते हैं.”


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