अमल में देरी से रेल परियोजनाओं की लागत 132 फीसदी बढ़ी


railways on track to get private players on track

 

भारतीय रेलवे की बड़ी 205 परियोजनाओं की लागत उनके क्रियान्वयन में देरी के चलते 2.21 लाख करोड़ रुपये तक बढ़ गई है. यह ताजा आंकड़ा सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के दिसंबर 2018 की रिपोर्ट में सामने आया है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय केंद्रीय क्षेत्र की 150 करोड़ या उससे ज्यादा लागत की परियोजनाओं पर निगरानी रखता है.

रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2018 तक इन 205 परियोजनाओं की कुल मूल लागत लगभग 1 लाख 68 हजार करोड़ रुपये थी.  परियोजनाओं में देर होने की वजह से अब अनुमानित लागत लगभग 3 लाख 90 हजार करोड़ रुपये हो गई है. इसका मतलब है कि कुल लागत में लगभग 132 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है.

मंत्रालय ने दिसंबर 2018 में भारतीय रेलवे की कुल 367 परियोजनाओं की निगरानी की थी.  रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि कुल परियोजनाओँ में से 94 परियोजनाएं ऐसी थी जो एक महीने से लेकर 324 महीने की देरी से चल रही थीं.

रेलवे के बाद बिजली क्षेत्र दूसरे नंबर पर है, जहां कुल मूल लागत में भारी बढ़ोत्तरी हुई है. मंत्रालय ने बिजली क्षेत्र के 95 परियोजनाओं की निगरानी की जिसमें से 40 परियोजनाओं की कुल लागत लगभग 64 हजार करोड़ रुपये बढ़ गई.

इन 40 परियोजनाओं का कुल मूल लागत लगभग 1 लाख 73 हजार करोड़ थी. देर होने की वजह से इसका अनुमानित लागत लगभग 2 लाख 36 हजार करोड़ रुपये हो गई. रिपोर्ट में बताया गया है कि बिजली क्षेत्र की कुल 95 परियोजनाओं में से 56 परियोजनाओं को पूरा होने में दो महीने  से लेकर 147 महीने तक का समय लग सकता है.

अनुमानित लागत में तीसरे स्थान पर सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी सड़क परिवहन और राजमार्ग क्षेत्र में हुई है. यहां कुल 605 परियोजनाओं में से 49 परियोजनाओं की लागत में इजाफा हुआ है.

 


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