देशभर में 57.3 प्रतिशत डॉक्टर अयोग्य


57.3 allopathic practitioners are not qualified health ministry

 

अंग्रेजी अखबार ‘द हिंदू’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक डेटा जारी कर बताया कि वर्तमान में एलोपैथिक चिकित्सा का अभ्यास कर रहे 57.3 प्रतिशत लोगों के पास चिकित्सा योग्यता नहीं है. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में डॉक्टरों का अनुपात 3:8:1 होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कई मरीजों को स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पाता है. इस वजह से उन्हें जान का खतरा बना रहता है. इसके अलावा भारत के गरीब डॉक्टरों का अनुपात विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक 1:1000 के मुकाबले 1:1456 है.

शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य कर रहे डॉक्टरों के अनुपात में काफी अंतर है. केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन कहते हैं “देश की ज्यादातर गरीब और ग्रामीण आबादी को अच्छी स्वास्थ्य सुविधा से दूर रखा जाता है और उन्हें नीम हकीमों के भरोसे छोड़ दिया जाता है.”

मेडिकल कौंसिल कोर्ट, 1956 की धारा 15 के अनुसार मेडिकल प्रैक्टिस करने की इजाजत सिर्फ उन लोगों को हैं जिनके नाम स्टेट मेडिकल रजिस्टर में पंजीकृत हैं. यदि कोई इसका उल्लंघन करता है तो उसे सजा के साथ जुर्माना भी देना पड़ेगा. चूंकि स्वास्थ्य राज्य सरकार का विषय है इसलिए ऐसे मामलों से निपटने की प्राथमिक जिम्मेदारी संबंधित राज्य सरकारों की है.

एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने कहा हमने सभी राज्य के मुख्यमंत्रियों से अपील की है कि नीम हकीमों के खिलाफ कानून के तहत सख्त कदम उठाए. साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसी योजनाएं लाई जाएं ताकि उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मिल सके.

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, 31 दिसंबर, 2018 तक कुल 11,46,044 एलोपैथिक डॉक्टर राज्य मेडिकल कौंसिल/ मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया के तहत रजिस्टर किए गए थे.

इसके अलावा अगर आयुर्वेद, यूनानी और होम्योपैथी (एयूएच) की बात करें तो इसके तहत 7.63 लाख डॉक्टर्स अभी देश में हैं.

मंत्रालय ने कहा कि 80 प्रतिशत उपलब्धता को देखते हुए यह अनुमान है कि लगभग 6.1 लाख एयूएच डॉक्टर वास्तव में सेवा के लिए उपलब्ध हो सकते हैं. अगर एलोपैथिक डॉक्टरों को भी मिला ले उस हिसाब से हमारे पास डॉक्टर-जनसंख्या का अनुपात 1:884 है. जो अभी भी काफी कम है.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रोफेसर के. श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं कि इन व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में लंबे अंतराल को भरने के लिए ऐसे सक्षम मध्य स्तर स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरत है जो पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित, तकनीकी रूप से सक्षम और कानूनी रूप से सशक्त हैं.

स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि अब वह मिड-लेवल स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को लाने पर विचार कर रहा है ताकि विशेषज्ञों के भार को कम किया जा सके.

स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि थाईलैंड, यूनाइटेड किंगडम, चीन और न्यूयॉर्क जैसे देशों ने सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं/नर्स चिकित्सकों को बेहतर स्वास्थ्य परिणामों के साथ मुख्यधारा की स्वास्थ्य सेवाओं में अनुमति दी है और चूंकि हमारे पास डॉक्टरों और विशेषज्ञों की कमी है. उस नजरिए से यह अति महत्वपूर्ण है.


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