वेंटिलेटर पर देश का स्वास्थ्य, 82 फीसदी विशेषज्ञों की कमी


82% crisis of specialist in india healthcare sector

 

बिहार के मुजफ्फरपुर में 150 से ज्यादा बच्चों की दिमागी बुखार से हुई मौत के बाद राज्य समेत देश भर के स्वास्थ्य क्षेत्र की लचर व्यवस्था की सच्चाई सबके सामने आ गई है. टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर के मुताबिक़ बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान समेत कई राज्यों में स्वास्थ्य विशेषज्ञों की भारी कमी है.

भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में सर्जन, स्त्री-रोग विशेषज्ञ, फिजिशियन और बाल-रोग विशेषज्ञ की 82 फीसदी तक की कमी है. इतना ही नहीं सामुदायिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों में लेबोरेटरी टेक्नीशियन के 40 फीसदी पद खाली हैं. नर्स और फार्मासिस्ट की संख्या भी आवश्यकता से 12-16 फीसदी तक कम है.

विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट से पता चलता है कि अधिकतर राज्यों में स्थित सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में विशेषज्ञों की कमी 80 से 99 फीसदी तक है.

राज्यों के गांवों, शहरों और मोहल्लों में स्थित ये केंद्र किसी भी स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति में सबसे पहले प्रतिक्रिया करते हैं. यहां विशेषज्ञों और स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले अन्य लोगों की कमी भयावह स्थिति की ओर इशारा कर रही है.

हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, पश्चिम बंगाल और केरल जैसे राज्य फिलहाल विशेषज्ञों की 90 फीसदी की कमी का सामना कर रहे हैं. वहीं बिहार, झारखंड और तमिलनाडु में यह कमी 86 फीसदी तक है.

निजी स्वास्थ्य क्षेत्र के साथ हो तालमेल

इन केंद्रों में विशेषज्ञों और संसाधनों की भारी कमी का मतलब है निजी स्वास्थ्य क्षेत्र का फलता-फूलता बाजार.

साथ ही ये इस ओर भी इशारा करता है कि सरकारी योजनाओं निजी स्वास्थ्य क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत है. इसके अलावा पीएचसी और सीएचसी में कार्यरत लोगों की काम करने की परिस्थितियों में सुधार की आवश्यकता है.

मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार से 150 से ज्यादा लोगों की मौत से स्पष्ट है कि देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार करने के लिए तत्काल रूप से काम करने की जरूरत है.

राष्ट्रीय स्तर पर नर्सों की कमी 12.6 फीसदी है लेकिन राज्यवार आंकड़ें अलग कहानी कह रहे हैं.संसद में दिए गए आंकड़ों से पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, महाराष्ट्र ओडिशा समेत अन्य राज्यों में नर्सों की कमी 45 से 63 फीसदी तक है.

संपूर्ण ढांचागत सुधार पर हो जोर

शुरुआती जांच और बीमारी को जानने में लैब टेक्नीशियन आदि अहम भूमिका निभाते हैं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश में लैब टेक्नीशियनों की भारी कमी है. जबकि मेघालय, मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेशों में इनकी संख्या पर्याप्त है.

देश भर के (सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र) पीएचसी और सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) में 19,434 (62 फीसदी) लेबोरेटरी टेक्नीशियन हैं, जबकि जरूरत लगभग 31,367 की है.

सीएचसी की पहुंच छोटे गांव, सुदूर इलाकों और कस्बों तक होती है. यह जमीनी स्तर पर लोगों की स्वास्थ्य जरूरतें पूरी करते हैं और जरूरत पड़ने पर रोगी को आगे रेफर भी किया जाता है.

स्वास्थ्य सेवाओं के पूर्व अध्यक्ष आरके श्रीवास्तव कहते हैं कि अगर मुजफ्फरपुर में सीएचसी अच्छी स्थिति में होता तो कई जानें बचाई जा सकती थीं.

फिलहाल देश में 25-30 हजार सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्र और 5,624 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं. ये केंद्र गर्भवती महिला, बच्चों और वरिष्ठ जनों के स्वास्थ्य में अहम भूमिका निभाते हैं.

भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मापदंड (आईपीएचएस) के मुताबिक प्रति सीएचसी चार विशेषज्ञ, सात नर्स, एक-एक फ़ार्मसिस्ट और लैब टेक्नीशियन होना चाहिए. वहीं प्रति पीएचसी एक नर्सिंग स्टाफ, एक-एक फ़ार्मसिस्ट और लेब लैब टेक्नीशियन जरूरी है.

इस समय उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और बिहार पांच ऐसे राज्य हैं, जहां अन्य राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा पीएचसी हैं. मई 2019 तक इन सभी राज्यों में पीएचसी की संख्या 2000 से अधिक है.

साल 2018-19 के बीच केंद्र ने सीएचसी और पीएचसी की स्थापना, मजबूती और रंग-रोगन या नवीकरण के लिए 319 और 465 करोड़ रुपये को मंजूरी दी है. बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड समेत दस राज्य को सीएचसी और पीएचसी के लिए 102 करोड़ रुपये मिले. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 के बीच उत्तर प्रदेश में इस फंड को मंजूरी नहीं मिली. एक अधिकारी के मुताबिक बीते साल हुए फंड खर्च और राज्यों के प्रस्ताव अनुसार फंड को मंजूरी दी जाती है.


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