अफस्पा को अधिक मानवीय बनाने के लिए समीक्षा जरूरी: डीएस हुड्डा
सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) पर केंद्र सरकार और कांग्रेस के बीच चल रही ज़ुबानी बहस में अब 2016 सर्जिकल स्ट्राइक के मुख्य रणनीतिकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुड्डा ने हस्तक्षेप किया है.
उन्होंने कहा कि इस कानून को अधिक मानवीय बनाने के लिए इसकी समीक्षा आवश्यक है. हुड्डा के अनुसार, आंतक-निरोधी अभियानों में तैनात सैनिकों को अधिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए भी अफस्पा की समीक्षा करना आवश्यक हो चला है.
हुड्डा ने यह बात अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ़ इंडिया से बातचीत के दौरान कही. बातचीत के दौरान उन्होंने जोर देकर कहा कि आतंक-निरोधी अभियानों में तैनात सैनिकों को भी सुरक्षित महसूस कराने की जरुरत है.
हुड्डा का इशारा जुलाई 2016 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर था. तब कोर्ट ने अफस्पा के तहत सुरक्षा बलों को दिए जाने वाले विशेष सुरक्षा अधिकारों को निरस्त कर दिया था. कोर्ट ने अफस्पा वाले क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान होने वाली मौतों के लिए सैनिकों के खिलाफ एफआईआर को अनिवार्य किया था. हुड्डा ने स्पष्ट किया कि आवश्यकता इस कानून को हटाने या कमजोर बनाने की नहीं, बल्कि उसकी समीक्षा करने की है.
हुड्डा ने यह बात ऐसे वक्त में कही है जब कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) की समीक्षा का वादा कर इस कानून की प्रासंगिकता पर नए सिरे से बहस खड़ी कर दी है. वित्त मंत्री अरुण जेटली से लेकर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कांग्रेस के इस वादे को सुरक्षा बलों का मनोबल तोड़ने वाला बताया है.
वहीं, कांग्रेस ने मोदी सरकार को यह कहते हुए घेरा है कि आम चुनाव से पहले उसने त्रिपुरा, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश के हिस्सों से इस विवादास्पद कानून को वापस क्यों लिया है. वैसे, मोदी सरकार की मुश्किलें केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के उस बयान से भी बढ़ सकती हैं जिसमें उन्होंने हालात सामान्य होने के बाद जम्मू-कश्मीर से इस कानून को हटाने की बात कही है.
हुड्डा ने बातचीत के दौरान स्पष्ट किया कि कुछ दिनों पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को राष्ट्रीय सुरक्षा पर दिए गए विजन दस्तावेज में उन्होंने अफस्पा का कोई जिक्र नहीं किया है. हुड्डा ने कहा कि उनका विजन दस्तावेज राष्ट्रीय सुरक्षा की व्यापक और दीर्घकालिक समझ पर आधारित है जबकि अफस्पा एक रणनीतिक मुद्दा है. इसी वजह से कांग्रेस घोषणा पत्र में किए गए इस कानून की समीक्षा के वादे को राष्ट्रीय सुरक्षा पर सौंपे गए उनके विजन दस्तावेज से जोड़कर देखना सही नहीं है.
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