अमेरिका और तालिबान समझौते के करीब, अफगानिस्तान में शांति का सवाल बरकरार


america and taliban are close to peace agreement but the peace in afghanistan is still remained

 

कतर की राजधानी दोहा से पांच अगस्त को जब अमेरिकी शांति वार्ताकार जालमे खालिजाद वापस लौटे तो उन्होंने इस वार्ता में किसी जटिल गंभीरता की ओर स्पष्ट इशारा नहीं किया. लेकिन उनकी बातों में कुछ जटिलता नजर जरूर आई. उन्होंने कहा कि दोनों पक्ष समझौते के काफी करीब पहुंच गए हैं. इसके बाद अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी का रास्ता साफ हो सकेगा.

इस वार्ता में जो बातें अब भी स्पष्ट नहीं हुई हैं, उनमें कुछ तकनीकी विवरण और वापसी की प्रक्रिया के चरणों को लागू करने से संबंधित बातें है. लेकिन असली दिक्कत उन्हीं तकनीकी समस्याओं में हो सकती है.

इसे समझने के लिए खालिजाद को वो बयान ही काफी है जिसमें उन्होंने कहा है कि सैनिकों की वापसी एक सितंबर से शुरू होगी. जबकि 28 सितंबर को अफगानिस्तान में चुनाव होने हैं. इशारा साफ है, अमेरिका अपने सैनिकों की वापसी के साथ ही तालिबान को उसके युद्ध के सिद्धांत को लागू करने का मौका दे रहा है.

अब बदले में अमेरिका को तालिबान से ये आश्वासन मिलेगा कि उसकी धरती का इस्तेमाल अमेरिका के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं होगा. इसके अलावा तालिबान अलकायदा जैसे संगठनों से अपने रिश्ते तोड़ लेगा.

लेकिन ये सब बाहर से जितना सरल दिखता है उतना है नहीं. सबसे पहला सवाल ये उठता है कि अमेरिका कितने सैनिकों की वापसी करेगा और कितनी जल्दी करेगा. एक और सवाल है कि ये तालिबानी पक्ष की मांगों को कैसे लागू करेगा.

इससे पहले फरवरी में ट्रंप कह चुके हैं कि अगर हालात बहुत बुरे होते हैं तो अमेरिका वहां फिर से वापसी कर सकता है. इस दौरान शेखी बघारते हुए उन्होंने कहा था कि अमेरिका के पास बहुत तेज एयरक्राफ्ट हैं.

लेकिन सच ट्रंप की शेखी से बहुत दूर है. सवाल ये है कि क्या अमेरिका को ये सूचना मिलेगी कि अफगानिस्तान में हो क्या रहा है. थोड़े सैनिकों या जासूसों से आंतरिक हलचलों की जानकारी इकट्ठा करना अमेरिका के लिए आसान नहीं होगा.

खालिजाद का बयान फिर भी थोड़ा सावधानी पूर्वक दिया गया था. लेकिन छह अगस्त को तालिबान की ओर से कहा गया कि मुद्दा सुलझ चुका है. इस बीच वाशिंगटन पोस्ट ने भी रिपोर्ट किया था कि अमेरिका 5,000 से 6,000 सैनिकों को वापस बुला लेगा.

इस समय करीब 14,000 अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में हैं. इसके अलावा करीब 8,500 यूरोपीय सैनिक भी वहीं मौजूद हैं. यूरोपीय सैनिक भी इस समझौते का हिस्सा हैं.

न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक बाकी बचे सैनिकों की वापसी अगले 15 महीनों के दौरान होगी. जबकि खबरें ये भी हैं कि इन सैनिकों की वापसी अफगान सरकार और तालिबान के बीच सफल वार्ता के बाद होगी.

इस वार्ता में अफगानिस्तान का भविष्य तय किया जाएगा. चर्चा में संविधान को लेकर किसी समझौते पर एकमत होना शामिल होगा.

अंतर्राष्ट्रीय संकट समूह से जुड़े लॉरेल मिलर कहते हैं, “इस पूरे मुद्दे में जो सबसे जटिल चरण है वो तालिबान और अफगानिस्तान के बीच की वार्ता है. अमेरिका और तालिबान के बीच वार्ता फिर भी आसान थी.”

तालिबान अकसर काबुल की ये कहकर आलोचना करता रहा है कि ये सरकार अमेरिका की कठपुतली है. तालिबान ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि वो अफगान सरकार से तब तक कोई बातचीत नहीं करेगा जब तक देश से अमेरिकी सैनिकों की वापसी नहीं हो जाती. इस लिहाज से तालिबान अफगान सरकार के साथ वार्ता में भारी पड़ने वाला है.

अमेरिका के अफगानिस्तान से हाथ वापस खींच लेने के बाद अफगानिस्तान किस दिशा में जाएगा, ये अनुमान लगाना फिलहाल काफी कठिन है.


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