अब लोग पढ़ सकेंगे जलियांवाला पर लिखी प्रतिबंधित कविता
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जलियांवाला बाग नरसंहार पर मशहूर पंजाबी लेखक नानक सिंह की लिखी
कविता को अब पढ़ सकना मुमकिन होगा. दरअसल, 1920 में इसके प्रकाशन के बाद अंग्रेजों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था.
13 अप्रैल 1919 को हुई जालियांवाला बाग नरसंहार के वक्त नानक सिंह
वहीं मौजूद थे. उस वक्त वह 22
साल के थे.
उस बाग की घेराबंदी कर ब्रिटिश सैनिकों ने रॉलेट एक्ट का विरोध कर रहे निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाई थी. इसमें सैंकड़ों लोग मारे गए थे. इस विभत्स नरसंहार के दौरान नानक सिंह बेहोश हो गए थे.
इस दर्दनाक अनुभव के बाद सिंह ने ‘खूनी बैसाखी’ नाम की एक लंबी कविता लिखी थी. इसमें नरसंहार और बाद की राजनीतिक घटनाओं का जिक्र है.
कविता में ब्रिटिश हुकूमत की तीखी आलोचना की गई थी. कुछ ही समय बाद अंग्रेजी हुकूमत ने इसे प्रतिबंधित कर दिया था. बाद में इसकी पांडुलिपि भी खो गई.
हालांकि अब यह कविता ढूंढ ली गई है. अब यह कविता अपने मूल रूप के साथ अंग्रेजी अनुवाद में छपेगी. अनुवाद नानक सिंह के पोते और राजनयिक नवदीप सूरी ने किया है.
खास बात यह है कि किताब में कविता के साथ एच एस भाटिया और जस्टिन रॉलेट के लेख भी शामिल हैं. रॉलेट एक्ट का ड्राफ्ट जस्टिन रॉलेट के परदादा सर सिडनी आर्थर टेलर रॉलेट ने ही तैयार किया था.
जलियांवाला बाग नरसंहार के शताब्दी वर्ष पर इसे अगले महीने हार्पर
कॉलिन्स इंडिया की ओर से प्रकाशित किया जाएगा.
नानक सिंह (1897-1971)
को पंजाबी उपन्यास का जनक माना जाता
है. चौथी कक्षा तक की शिक्षा हासिल करने के बावजूद उनके नाम 59 किताबें हैं. 1962 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था.