भोपाल गैस कांड : 34 साल बाद भी पीड़ितों को न्याय का इंतजार
PTI
भोपाल गैस कांड के 34 साल बाद भी पीड़ित उचित इलाज,पर्याप्त मुआवजे, न्याय और पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति की लड़ाई लड़ रहे हैं. पीड़ितों के इलाज की निगरानी के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित समिति की 80 प्रतिशत से अधिक अनुशंसाओं को अमल में नहीं लाया गया है. भोपाल गैस पीड़ितों के लिए काम करनेवाली विभिन्न संस्थाओं ने एक संयुक्त बयान जारी कर यह आरोप लगाया है.
दो-तीन दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित कारखाने से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट के रिसाव से 3,000 लोगों के मरने के साथ-साथ 1.02 लाख लोग प्रभावित हुए थे. जबकि भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार के मुताबिक वास्तविक संख्या पांच गुनी है.
भोपाल गैस पीड़ित महिला उद्योग संगठन के संयोजक अब्दुल जब्बार ने ‘भाषा’ से कहा, ‘‘हादसे के 34 साल बाद भी न तो मध्यप्रदेश सरकार ने और ना ही केन्द्र सरकार ने इसके नतीजों और प्रभावों का कोई समग्र आकलन करने की कोशिश की है, ना ही उसके लिए कोई उपचारात्मक(समाधान के लिए) कदम उठाए हैं.’’
उन्होंने कहा, ‘‘14-15 फरवरी 1989 को केन्द्र सरकार और अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कारपोरेशन (यूसीसी) के बीच हुआ समझौता पूरी तरह से धोखा था और उसके तहत मिली रकम का हरेक गैस प्रभावित को पांचवें हिस्से से भी कम मिल पाया है. नतीजतन, गैस प्रभावितों को स्वास्थ्य सुविधाओं, राहत और पुनर्वास, मुआवज़ा, पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति और न्याय इन सभी के लिए लगातार लड़ाई लड़नी पड़ी है.’’
उन्होंने कहा कि फरवरी 1989 में भारत सरकार और यूसीसी में समझौता हुआ था, जिसके तहत यूसीसी ने भोपाल गैस पीड़ितों को मुआवजे के तौर पर 470 मिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 715 करोड़ रूपए) दिए थे.
मशाल जुलूस के साथ प्रदर्शन करती भोपाल गैस कांड की पीड़ित महिलाएं(भोपाल)
जब्बार ने कहा कि हमने उसी वक्त इस समझौते पर यह कह कर सवाल उठाया था कि इस समझौते के तहत मृतकों और घायलों की संख्या बहुत कम दिखाई गई है, जबकि वास्तविकता में यह बहुत अधिक है. इस पर तीन अक्टूबर 1991 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि यह संख्या बढ़ती है तो भारत सरकार मुआवजा देगी .
उन्होंने बताया कि इस समझौते में गैस रिसने से 3,000 लोगों के मरने के साथ-साथ 1.02 लाख प्रभावित बताये गये थे . जबकि असलियत में 15,274 मृतक और 5.74 लाख प्रभावित लोग थे. जो इस बात से साबित होता है कि भोपाल में दावा अदालतों की ओर से साल 1990 से 2005 तक त्रासदी के इन 15,274 मृतकों के परिजनों और 5.74 लाख प्रभावितों को 715 करोड़ रूपए मुआवजे के तौर पर दिये गए.
उन्होंने बताया कि इस समझौते में दिए गए मृतकों और घायलों की संख्या हकीकत में करीब पांच गुना अधिक होने पर उच्चतम न्यायालय के समक्ष वर्ष 2010 में अलग-अलग क्यूरेटिव याचिकाएं दायर की गयी थी.
उन्होंने बताया, “याचिका समझौते की शर्तों पर सवाल उठाए गए थे. समझौता में मृतकों और पीड़ितों की बहुत कम संख्या आंकी गई थी. याचिकाओं में मुआवजे में 7,728 करोड़ रुपए की अतिरिक्त बढ़ोतरी की मांग की गयी है, जबकि 1989 की समझौता राशि मात्र 705 करोड़ रुपए की थी. याचिका स्वीकृत हो गई है पर सुनवाई शुरू नहीं हुई है.”
जब्बार ने दावा किया कि 2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड के भोपाल स्थित कारखाने से रिसी जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनाइट से अबतक 20,000 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और लगभग 5.74 लाख लोग प्रभावित हुए हैं.
उन्होंने कहा कि यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल) उस समय यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन (यूसीसी) के नियंत्रण में था जो अमरीका की एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी है, और बाद में डाव केमिकल कम्पनी (यूएसए) के अधीन रहा. अगस्त 2017 से डाव केमिकल कम्पनी (यूएसए) का ईआई डुपोंट डी नीमोर एंड कंपनी के साथ विलय हो जाने के बाद यह अब डाव-डुपोंट के अधीन है.
उन्होंने कहा कि गैस त्रासदी की जहरीली गैस से प्रभावित लोग अब भी कैंसर, ट्यूमर, सांस और फेफड़ों की समस्या जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं. उन्होंने कहा, प्रभावितों के पास पैसा नहीं होने के कारण उन्हें उचित इलाज भी नहीं मिल पा रहा है.
भोपाल गैस पीड़ित महिला स्टेशनरी कर्मचारी संघ की रशीदा बी, भोपाल गैस पीड़ित महिला-पुरूष संघर्ष मोर्चा के नवाब खां, भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन के रचना ढींगरा और चिल्ड्रन अगेन्स्ट डाव कार्बाइड के नौशीन खान ने भोपाल में एक संयुक्त बयान जारी कर आरोप लगाया कि केन्द्र एवं राज्य सरकार गैस-पीड़ितों की उपेक्षा कर रही है.
अपने संयुक्त बयान में उन्होंने कहा कि हाल के वैज्ञानिक अध्ययन यह बताते हैं कि यूनियन कार्बाइड के गैसों की वजह से भोपाल में मौतों और बीमारियों का सिलसिला जारी है.