सरकार ने ‘मुद्रा’ योजना से मिले रोजगार के आंकड़ों को छुपाने का बहाना ढूंढ़ा
आंकड़ों के साथ सरकारी हेराफेरी की खबरों के बीच माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) योजना से जुड़े आंकड़ों को फिर से सत्यापित किए जाने की खबरें आ रही हैं. अंग्रेजी दैनिक टेलीग्राफ लिखता है कि एक केंद्रीय एजेंसी को मुद्रा योजना से पैदा हुए रोजगार के आंकड़ों को फिर से सत्यापित करने के लिए कहा गया है.
दरअसल मुद्रा योजना सरकार की एक फ्लैगशिप योजना थी. जिसे नए रोजगार पैदा करने के लिए जोर शोर से प्रचारित किया गया था. लेकिन जब इसमें पैदा हुए रोजगार के आंकड़े सामने आए तो ये उम्मीद से काफी कम थे. विशेषज्ञों की मानें तो सरकार इसी के चलते इस सर्वे को चुनाव से पहले जारी नहीं करना चाहती थी.
लेकिन खबरों के मुताबिक अब केंद्र सरकार इसे जारी करने से पहले एक बार फिर से जांचना चाहती है. इसको लेकर सरकार की नीयत पर संदेह भी जताया जा रहा है.
एक फरवरी तक के आंकड़ों के मुताबिक इस योजना के तहत 15.73 करोड़ लोन बांटे गए हैं. जिनका कुल मूल्य 7.59 लाख करोड़ है. जबकि कुल रोजगार का सृजन सिर्फ 1.12 करोड़ ही है.
इतनी ज्यादा लागत आने के बावजूद इससे रोजगार का सृजन उम्मीद के मुकाबले बहुत कम हुआ है. विश्लेषकों का मानना है कि बहुत से लेनदारों ने लोन ले लिया है. लेकिन किसी तरह की नौकरी नहीं दी हैं.
मुद्रा एक तरह की नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी है. इसका मकसद सूक्ष्म उद्योगों को धन उपलब्ध कराना है. इसके तहत नए कारोबार शुरु करने के लिए लोन दिए जाते हैं साथ ही पहले से चल रहे उद्योगों को भी आर्थिक सहायता दी जाती है.
वैसे तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपने प्रचार में राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रमुख मुद्दा बना रखा है, लेकिन हाल में रिपब्लिक टीवी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि इस योजना के तहत चार करोड़ लोगों ने लोन लिया है. उन्होंने कहा था कि इन लोगों को दूसरे लोगों को काम देना चाहिए.
अगर प्रधानमंत्री के ये आंकड़े सही हैं तो फिर से डाटा का सत्यापन करने से रोजगार के आंकड़े और नीचे जा सकते हैं. जानकारों का कहना है कि हो सकता है कि जिन लोगों ने लोन लिया उन्होंने पहले से लोगों को काम पर रखा हो.
अगर इस योजना के तहत 16 करोड़ लोन दिए गए हैं तो स्वाभाविक तौर पर 1.12 करोड़ से ज्यादा नौकरियां पैदा होनी चाहिए. नौकरियों के आंकड़े लेबर ब्यूरो के डाटा से सामने आए थे.
लेबर ब्यूरो को मुद्रा योजना के तहत पैदा हुए रोजगार का आकलन करने के लिए अधिकृत किया गया था. इसने बीते जनवरी महीने में अपना काम पूरा कर लिया था.
लेकिन अब खबरें आ रही हैं कि मुख्य श्रम और रोजगार सलाहकार बीएन नंदा की अध्यक्षता में गठित समिति से इन आंकड़ों का फिर से सत्यापन करने को कहा गया है. टेलीग्राफ सूत्रों के हवाले से लिखता है कि पैनल से जल्द से जल्द आंकड़ों का सत्यापन करने को कहा गया है. लेकिन कोई अंतिम तिथि निर्धारित नहीं की गई है.
इस समिति की शिमला में एक बैठक भी हो चुकी है और इसमें रिपोर्ट की मुख्य बातों पर चर्चा हुई. लेकिन समिति ने रिपोर्ट जारी करने की अनुमति नहीं दी. अब लेबर ब्यूरो इसे फिर से जांच रहा है. लेकिन इस बात की कोई पुष्टि नहीं हो पाई है कि चुनाव से पहले इसे जारी किया जाएगा या नहीं.
टेलीग्राफ राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व चेयरमैन पीसी मोहनान के हवाले से लिखता है, “सरकार इस तरह के किसी आंकड़े को प्रकाशित नहीं करना चाहती जिसमें उसके कथन की पुष्टि ना हो रही हो.”
जेएनयू में लेबर स्टडीज सेंटर के अध्यक्ष संतोष मेहरोत्रा कहते हैं कि उनको इस बात का संदेह है कि सरकार अपने समर्थन में आंकड़े चाहती है.
सरकार अपने समर्थन में ना आने वाले आंकड़ों को लगातार छिपाने का प्रयास करती रही है. नेशनल सैंपल सर्वे की “पेरिओडिक लेबर फोर्स सर्वे” रिपोर्ट को जारी नहीं किया गया. इस रिपोर्ट में देश में नौकरियों की स्थिति का आकलन किया गया है. इसी के चलते पीसी मोहनान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.
सरकार ने रोजगार और बेरोजगारी सर्वे 2016-17 को भी जारी नहीं किया है, जबकि लेबर ब्यूरो इसे छह महीने पहले ही तैयार कर चुका है.