ब्रिटिश सांसदों ने दिल्ली हिंसा और CAA को लेकर भारत सरकार की आलोचना की


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उत्तरपूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स में कई सांसदों ने भारत सरकार की आलोचना की और ब्रिटिश सरकार से इस मामले में कड़ा रुख अपनाने की अपील की. इन सांसदों में लेबर पार्टी, स्कॉटिश नेशनल पार्टी और कंजरवेटिव पार्टी के साथ कई भारतीय मूल के सांसद भी शामिल रहे.

स्कॉटिश नेशनल पार्टी के सांसद डेविड लिंडेन ने कहा कि मोदी और ट्रंप दोनों देशों के बीच व्यापार संधि के लिए संघर्ष कर रहे हैं. उन्होंने ब्रिटिश सरकार से अपील करते हुए कहा कि वह यह सुनिश्चित करे कि व्यापार संधि की वजह से मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर ब्रिटेन की प्रतिबद्धता कम नहीं होगी.

उनकी इस अपील पर ब्रिटेन के जूनियर विदेश मंत्री नाइजेल एडम्स ने कहा कि भले ही व्यापार संधि हमारे देश की अर्थव्यवस्था और प्रगति के लिए जरूरी है लेकिन मैं इस बात की गारंटी देता हूं कि मानवाधिकारों की रक्षा को लेकर देश की प्रतिबद्धता को हमेशा व्यापार संधि से ऊपर रखा जाएगा.

वहीं कंजरवेटिव पार्टी के सांसद रिचर्ड ग्राहम ने कहा कि विभिन्न वीडियो में एक समुदाय के खिलाफ प्रायोजित हिंसा दिखी है. उन्होंने ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त को उनके ऑफिस बुलाकर इस हिंसा के प्रति अपनी चिंता प्रकट करने की बात कही.

लेबर पार्टी के सांसद स्टीफेन टिम्स ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून अंबेडकर द्वारा बनाए गए उस संविधान के खिलाफ एक निर्णायक कदम है, जिसे पूरे विश्व में समानता के प्रति प्रतिबद्धता के रूप में पहचाना जाता है.

एक और लेबर सांसद टान धेसी ने कहा कि किसी के विश्वास को लेकर दिल्ली में उकसाई गई हाल की हिंसा ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की दर्दनाक यादें ताजा कर दीं, तब वे भारत में पढ़ रहे थे. उन्होंने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे मुसलमानों का उत्पीड़न पूरी तरह से असहनीय है. उन्होंने कहा कि कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुलिस के ऊपर प्रदर्शनकारियों के उत्पीड़न का आरोप लगाया है, सभी आरोपियों पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.

कई सांसदों ने बीबीसी के 3 मार्च के उस प्रसारण का जिक्र किया, जिसमें बताया गया कि मुसलमानों के खिलाफ हुई हिंसा में पुलिस ने हिस्सा लिया.

एक और सांसद नाडिया व्हिटोम ने कहा कि इस हिंसा को ‘झड़प’ और ‘सांप्रदायिक दंगों’ का नाम देना बंद करना होगा. उन्होंने कहा कि इस हिंसा को उस प्रक्रिया के अगले कदम के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसमें नरेंद्र मोदी की बीजेपी सरकार द्वारा भारत के मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ लगातार हिंदुत्ववादी हिंसा को प्रायोजित किया जा रहा है.


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