हाउसिंग सेक्टर के लिए 25 हजार करोड़ रुपये के कोष को केंद्र की मंजूरी
सरकार ने अटकी आवासीय परियोजनाओं में फंसे मकान खरीदारों और रीयल एस्टेट कंपनियों को बुधवार को बड़ी राहत देने की घोषणा की. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1,600 अटकी पड़ी आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने के लिये 25,000 करोड़ रुपये के कोष को मंजूरी दे दी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इससे संबंधित प्रस्ताव को मंजूरी दी गई. बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार इस कोष के लिए वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) में 10,000 करोड़ रुपये डालेगी जबकि शेष 15,000 करोड़ रुपये का योगदान भारतीय स्टेट बैंक और भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की ओर से किया जाएगा. इससे कोष का समूचा आकार 25,000 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा.
वित्त मंत्री ने कहा कि कई सावरेन कोषों ने भी इसमें रुचि दिखाई है और वह भी बाद में इस योजना में शामिल हो सकते हैं. इस बीच सूत्रों ने बताया है कि रुकी पड़ी 1,600 परियोजनाओं में करीब 3.5 लाख करोड़ रुपये निवेश किए जा चुके हैं और इन्हें पूरा करने के लिए 55,000 से लेकर 80,000 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी.
सीतारमण ने स्पष्ट किया कि इस कोष के तहत केवल रेरा में पंजीकृत परियोजनाओं पर ही विचार किया जाएगा. यह कोष पूंजी बाजार नियामक सेबी में पंजीकृत दूसरी श्रेणी का एआईएफ कोष होगा. इस कोष का प्रबंधन एसबीआईकैप वेंचर्स लिमिटेड करेगी.
वित्त मंत्री ने सबसे पहले 14 सितंबर को इस कोष की घोषणा की थी. यह कोष मध्यम और निम्न आय वर्ग की अधूरी पड़ी 1,600 परियोजनाओं को पूरा करने के लिए एक विशेष खिड़की का काम करेगा. उन्होंने कहा कि मंत्रिमंडल ने आज जिस योजना को मंजूरी दी है वह 14 सितंबर की योजना का ही नया रूप है.
वित्त मंत्री ने कहा, ”सरकार की मंशा अधूरी पड़ी आवासीय परियोजनाओं को पूरा करने की है ताकि लोगों की समस्याओं को दूर किया जा सके.”
सीतारमण ने कहा कि पिछले कुछ महीनों के दौरान घर खरीदारों, संगठनों, बैंकों और रिजर्व बैंक के साथ बैठकें हुई, जिसके बाद योजना में सुधार का फैसला किया गया. योजना में उन परियोजनाओं को भी शामिल करने का फैसला किया गया जिन्हें कर्ज देने वाले बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने गैर- निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया है. उन परियोजनाओं को भी शामिल किया गया है जिन्हें दिवाला प्रक्रिया के तहत घसीट लिया गया है.
सीतारमण ने कोष के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि परियोजना के बिल्डर को सीधे धन नहीं दिया जाएगा बल्कि एक अलग खाते (एस्क्रो) में धन रखा जायेगा जिसपर क्षेत्र के लिए गठित विशेषज्ञ समिति नजर रखेगी. समिति सुनिश्चित करेगी कि यह धन केवल परियोजनाओं को पूरा करने में ही लगे. जैसे जैसे निर्माण कार्य आगे बढ़ेगा वैसे ही राशि जारी की जायेगी.
सीतारमण ने कहा कि एआईएफ का इस्तेमाल ऐसी परियोजनाओं में भी किया जा सकता है जिन्हें गैर- निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) घोषित कर दिया गया है और जिन परियोजनाओं को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) के तहत प्रक्रिया का सामना करना पड़ रहा है.
वित्त मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि यदि किसी परियोजना के लिए बिल्डर ने पूरा पैसा मकान खरीदारों से ले लिया है और उस पर कोई काम शुरू नहीं हुआ है तो ऐसे मामलों का निपटान राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में ही होगा.