प्रस्तावित जनसंख्या विनियमन विधेयक से टूटेगी गरीबों की कमर


Can proposed `Population Regulation Bill, 2019’ solve India’s population growth crisis?

 

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि राज्यसभा में प्रस्तावित जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019 से देश की गरीब आबादी पर बहुत तरह से बुरा प्रभाव पड़ेगा.

यह बिल पिछले हफ्ते राज्य सभा में पेश किया गया था. इस बिल के तहत दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले लोगों को दंडित करने और सभी सरकारी लाभों से भी वंचित करने का प्रस्ताव है.

यह एक प्राइवेट मेम्बर बिल है जिसे राज्य सभा में बीजेपी सांसद राकेश सिंहा ने पेश किया है. बिल में प्रस्ताव है कि दो से ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत मिलने वाले लाभों और सुविधाओं में कटौती की जाए. बिल का प्रस्ताव है कि सभी सरकारी कर्मचारी ये शपथ दें कि वे दो से अधिक बच्चों को जन्म नहीं देंगे.

पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्रेजा ने मिंट से बातचीत में कहा, “पीडीएस के जरिए गरीबों और पिछड़ों को मिलने वाले लाभ छीनने से उन्हें बहुत परेशानी होगी. इससे उनकी हालत और खराब हो जाएगी.” उन्होंने बिल को भ्रमित करने वाला बताते हुए कहा कि यह बिल भारत के जनसांख्यिकीय परिदृश्य को गलत तरह से इस्तेमाल करेगा.

साल 2018 में हुए आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी कि लड़का पैदा करने की चाहत में 2.1 करोड़ लड़कियों ने ज्यादा जन्म लिया है.

मुत्रेजा ने कहा, “दो बच्चे पैदा करने के नियम का बोझ केवल महिलाओं पर पड़ेगा. इससे उन्हें जबरन नसबंदी करने को मजबूर होना पड़ेगा. इससे जनसंख्या स्थिरीकरण में दिक्कत पेश आएगी. जैसा 1970 के मध्य में आपातकाल के वक्त हुआ था. वास्तव में बढ़ती आबादी के समाधान के लिए नीति निर्धारकों, सांसदों और सरकार को परिवार नियोजन की तरफ अधिकार आधारित दृष्टिकोण अपनाना होगा. सरकार को इस मसले पर बजट में आवंटन को बढ़ाना चाहिए जिससे गर्भनिरोधकों के इस्तेमाल को सुनिश्चित किया जा सके. साथ ही बेहतर स्वास्थ्य के लिए लोग बच्चों के जन्म के बीच अंतर रखें.”

उन्होंने कहा, “इन तरीकों से ना सिर्फ स्वास्थ्य बेहतर होगा बल्कि शिक्षा भी बेहतर होगी. इससे क्षमता बढ़ेगी तो कार्यस्थलों में भागीदारी और अंततः घरेलू आय बढ़ेगी जिससे देश को आर्थिक रूप से बढ़ने में मदद मिलेगी.”

इस साल जून में जारी हुई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा.हालांकि 2001 से लेकर 2011 के बीच 10 सालों में भारत में जनसंख्या वृद्धि में तेजी से गिरावट हुई है.

2011 के जनगणना के मुताबिक सभी धार्मिक समूदायों में 1991-2001 और 2001-2011 के बीच जनसंख्या वृद्धि दर में 21.5 फीसदी से 17.7 फीसदी की गिरावट हुई है.

मुत्रेजा ने कहा, “भारत में महिलाएं दो से अधिक बच्चे पैदा करना नहीं चाहती हैं. हम सकल प्रजनन दर (टीएफआर) हासिल करने के करीब हैं. टीएफआर 2005 में 2.9 थी जो 2016 में 2.3 हो गई और अगर हम अब इसकी गणना करें तो यह 2.2 हो चुकी है. अगले ही साल भारत 2.1 के रिप्लेसमेंट लेवल फर्टिलिटी के करीब पहुंच जाएगा, जो अपने आप में एक सकारात्मक संकेत है.”

उन्होंने कहा, “भारत के 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सकल प्रजनन दर 2.1 हो चुकी है. महिलाओं को सशक्त बनाकर और बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं देकर इसे प्राप्त किया गया है. यह वर्ष 2000 की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति के आधार पर सरकार के कार्य के माध्यम से हासिल की गई है. इसमें किसी भी किस्म की सख्ती किए बगैर छोटे परिवारों की वकालत कर गर्भनिरोधकों और स्वास्थ्य सेवाओं की आवश्यक्ता को पूरा करने की कोशिश की गई है.”


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