मुनाफे में कटौती के बावजूद कैंसर की दवाएं अब भी महंगी
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कैंसर-रोधी 42 दवाओं के दाम में राष्ट्रीय औषधि मूल्य प्राधिकरण (एनपीपीए) के ओर से की गई कटौती का फायदा रोगियों को नहीं हुआ है. रोगी अधिकार समूह ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क (आईडा) के मुताबिक दवाओं के दाम अभी भी काफी ज्यादा बने हुए हैं.
द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक आईडा ने कहा कि एनपीपीए के ओर से विक्रेता के मुनाफे में की गई कटौती कैंसर-रोधी दवाओं के ऊंचे दामों को मान्यता देने जैसा है. समूह ने सरकार से दाम आधारित नियंत्रण लागू करने के लिए कहा है.
समूह के मुताबिक, जाहिर तौर पर इस कदम से दवाओं के दाम कुछ घटे हैं, लेकिन सरकार को इन दवाओं के दामों में सीधे तौर पर कटौती करने की जरुरत है.
एनपीपीए ने फरवरी में 42 कैंसर दवाओं को मूल्य नियंत्रण के दायरे में लाते हुए कहा था कि इन दवाओं पर मुनाफा 30 फीसदी से ज्यादा नहीं लिया जा सकता .
मुनाफे को कम करने का फैसला दवा उद्योग निर्माताओं को होने वाले भारी मुनाफे पर नियंत्रण करने में नाकाम रहा है. समूह ने बताया कि रोगियों को अब भी एक गोली की कीमत 2 हजार से 43 हजार रुपये पड़ रही है.
आईडा के सदस्य सोरीराजन श्रीनिवासन ने कहा, “रोगियों का इलाज कभी एक महीने तो कभी-कभी एक साल तक चलता है, ऐसे में किसी भी आम या गरीब रोगी के लिए इतनी महंगी कैंसर की दवाएं खरीद पाना असंभव है. कई बार वो कर्ज के भारी बोझ में भी दब जाते हैं.”
एनपीपीए के डेटा से पता चलता है कि फैसले के तहत 402 फॉर्मूलेशन (करीब 87 फीसदी दवाओं के फॉर्मूलेशन) के दाम में 10,000 रुपये से कम की कटौती हुई. जबकि केवल 61 फॉर्मूलेशन (लगभग 13 फीसदी) के दाम में ही 10,000 रुपये से ज्यादा की कटौती की गई है.
आईडा ने अलग-अलग कंपनी की एक ही दवा के बीच दाम में भारी अंतर का मुद्दा भी उठाया है. उदाहण के लिए, हड्डियों के कैंसर के लिए दिया जाने वाला 60 एमजी ‘carfilzomib’ इंजेक्शन एक कंपनी 10,000 रुपये में बेच रही है, जबकि दूसरी कंपनी वही इंजेक्शन 47,300 रुपये में बेच रही ही.
श्रीनिवासन ने कहा, मुनाफे में नियंत्रण केवल सप्लाई चैन को प्रभावित करता है, इससे निर्माताओं को होने वाले भारी मुनाफे में कोई कमी नहीं आई है.