हितों के टकराव पर कप्तान हो सकता है तलब
इसे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) में हितों का टकराव खत्म करने और पारदर्शिता लाने के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण खबर माना जा सकता है.
अगर कप्तान के कामों का देख-रेख करने वाली कोई एजेंसी या एजेंट ही टीम के अन्य खिलाड़ियों के कामकाज को भी देखती हो तो ऐसी स्थिति में बोर्ड कप्तान से हितों का टकराव टालने के लिए स्पष्ट घोषणा करने के लिए कह सकता है. हितों के टकराव से जुड़े प्रावधानों को सख्त बनाकर बोर्ड यह कदम उठाने की तैयारी कर रहा है.
बीसीसीआई के अंदर हितों के टकराव को लेकर इस तरह के नियम बनाने पर जोर दिया जा रहा है.
बीसीआई में सुधार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बनी जस्टिस आरएम लोढ़ा समिति ने खिलाड़ियों के हितों की रक्षा और उनका टकराव टालने के लिए एजेंट पंजीकरण प्रणाली को सख्ती से लागू करने की बात कही है.
समिति ने यह भी कहा है कि इसके लिए एजेंट को भ्रष्टाचार-विरोधी इकाई से मंजूरी लेना जरूरी होगा.
जस्टिस लोढ़ा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि समिति ने अपने सुझावों में ये साफ-साफ उल्लेख किया है कि कैसे खिलाड़ी और एजेंट के रिश्ते में हितों का टकराव टाला जा सके. उन्होंने जोड़ा कि अगर सुधारों को खिलाड़ियों के अनुसार किया जाएगा तो उससे कुछ फायदा नहीं होगा. वहीं, सुधारों को थोड़ा-थोड़ा कर के लागू नहीं किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जितने भी लोग खेल से जुड़े हैं उन्हें किसी भी मन-मुटाव से मुक्त होना चाहिए. इसके लिए खेल से जुड़े तमाम हितधारकों जैसे कप्तान, कोच, कमेंटेटर्स, सहायक कर्मचारी, प्रशासक, प्रबंधक, कर्मचारी और एजेंट को अपने-अपने हितों के टकराव की स्पष्ट घोषणा करनी होगी. उन्होंने ये भी कहा कि कोई भी खेल से ऊपर नहीं है.
जानकार मान रहे हैं कि इस मामले में सबसे बेहतर तरीका कप्तान को तलब करना होगा. अगर बाकी खिलाड़ियों के साथ उनके हितों के टकराव को खत्म किया जा सके तो फिर उन्हें चयन समिति में उन खिलाड़ियों के बारे में कुछ बोलने की जरुरत नहीं पड़ेगी.
बीसीसीआई की जनरल बॉडी में कई लोग ऐसी प्रणाली बनाने के इच्छुक हैं जहां कप्तान को खिलाड़ियों के प्रबंधन एजेंसियों से जुड़े सभी प्रकार के हितों की स्पष्ट घोषणा करनी होगी.
कुछ जानकारों का मानना है कि जो एजेंसी भारतीय कप्तान का प्रबंधन करती हो, उसे टीम के किसी अन्य खिलाड़ी का प्रबंध नहीं करना चाहिए.
इससे पहले, बीसीसीआई के कर्मचारियों को भी हितों के टकराव पर एक वचनपत्र देने के लिए कहा गया था. इस मामले में अपने गृह राज्य में कई क्लबों के मालिक रहे एक महाप्रबंधक से भी एजेंसी ने पूछताछ की थी. उन पर तथ्यों को छिपाने की कोशिश के लिए कार्यवाई भी की गई थी. इतना ही नहीं, एक पूर्व कप्तान से भी एजेंसी ने पूछताछ की थी.
बीसीआइ की वेबसाइट पर उपलब्ध और सुप्रीम कोर्ट में जमा किए गए हितों के टकराव नियमों में ये साफ-साफ उल्लेख किया गया है कि किसी भी खिलाड़ी सा बीसीसीआई के सदस्य को ये इजाजत नहीं है कि वे व्यावसायिक हितों के धारक बनें.
हालांकि बीसीसीआई के नए संविधान के मसौदे में खिलाड़ियों से अंडरटेकिंग लेने का प्रावधान नहीं है.
क्रिकेट प्रशासक समिति (सीओए) ने तीन सदस्यीय समिति गठित की थी. इसमें बीसीसीआई के सीईओ राहुल जौहरी, महाराष्ट्र क्रिकेट संघ के पूर्व अध्यक्ष अभय आप्टे और क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के सचिव अभिषेक डालमिया को सदस्यों के रूप में शामिल किया गया था. इन्हें हितों के मुद्दों के टकराव को देखने और सुझाव देने के लिए बैठना था. लेकिन इस मामले के लिए समिति अब तक एक बार भी बैठी नहीं है.
माना जा रहा है कि ये समिति इस समय अस्तित्व में ही नहीं है. हालांकि, बीसीसीआई चुनावों के बाद इन मुद्दों पर चर्चा के लिए बैठक कर सकती है.