सीबीआई की नाकामी से छूटे सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में आरोपी


CBI  D.G. Vanzara Sohrabuddin Sheikh Tulsiram Prajapati Abdul Rahman CBI Special Court

 

सोहराबुद्दीन शेख-तुलसीराम प्रजापति मुठभेड़ मामले में सीबीआई की विशेष अदालत ने जब सभी 22 आरोपियों को मुक्त किया तो एक जाना-पहचाना सवाल फिर उठा. यह बात सामने आई कि इस मामले में भी आरोपियों को न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताओं का लाभ मिला. यह बात स्वयं मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश एस. जे. शर्मा ने फैसला सुनाते हुए स्वीकार की. उन्होंने कहा कि सीबीआई बहुत से आरोपों की सत्यता को प्रमाणित करने वाले साक्ष्य नहीं पेश कर सकी.

सीबीआई का आरोप था कि इस मामले में साल 2014 में रिहा हुए तत्कालीन डीजीपी डी. जी. वंजारा ने गुजरात  पुलिस के आईपीएस अधिकारी आशीष पांड्या को फर्जी मुठभेड़ करने वाली टीम का हिस्सा बनने के लिए बाध्य किया और उन्हें धमकाया. लेकिन सीबीआई इस बात को साक्ष्यों से प्रमाणित नहीं कर सका कि वंजारा ने आशीष पांड्या पर ऐसा कोई दबाव बनाया था.

ठीक इसी तरह, राजस्थान के सब-इंस्पेक्टर अब्दुल रहमान पर सोहराबुद्दीन पर गोली चलाने का आरोप था. लेकिन अदालत में यह साबित नहीं हो सका कि क्या वास्तव में मुठभेड़ के दिन रहमान के पास गोली चलाने के लिए बन्दूक थी और उसी ने सोहराबुद्दीन पर गोली चलाई.

सीबीआई ने अपने तीसरे आरोप पत्र में कहा था कि हैदराबाद से सांगली जाते समय बस में सोहराबुद्दीन और कौसर बी के साथ एक तीसरा व्यक्ति भी था. लेकिन यह बात भी अदालत में साबित नहीं हो सकी. अदालत ने फैसले में माना कि सबूत और गवाहों के मुताबिक वह बस में नहीं था. उसे 26 नवंबर 2005 को सीधे भीलवाड़ा से गिरफ्तार किया गया था.

इस मामले में गवाहों का पलटना भी अभियोजन की दलीलों के कमजोर होने का कारण रहा. नवंबर 2017 से शुरू हुई सुनवाई में 210 गवाहों की जांच की गई, जिनमें से 92 अपने बयान से पलट गए. नतीजतन, अदालत ने परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को भी पर्याप्त नही माना. उसने कहा कि हत्या गोली लगने हुई है लेकिन यह साबित नहीं हुआ कि 22 आरोपियों में से किसी ने गोली चलाई है.

वर्ष 2005 के इस मामले में 22 लोग मुकदमे का सामना कर रहे हैं, जिनमें ज्यादातर पुलिसकर्मी हैं. यह मामला राजनीतिक तौर पर इसलिए महत्वपूर्ण रहा है क्योंकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह आरोपियों में शामिल थे. हालांकि, उन्हें सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा 2014 में आरोपमुक्त कर दिया गया था. शाह इन घटनाओं के वक्त गुजरात के गृह मंत्री थे.

सीबीआई के मुताबिक आतंकवादियों से संबंध रखने वाला कथित गैंगस्टर सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी प्रजापति को गुजरात पुलिस ने एक बस से उस वक्त अगवा कर लिया था, जब वे लोग 22 और 23 नवंबर 2005  के दौरान रात हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे.

सीबीआई के मुताबिक शेख की 26 नवंबर 2005 को अहमदाबाद के पास कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई. उसकी पत्नी को तीन दिन बाद मार डाला गया और उसके शव को ठिकाने लगा दिया गया. उसके बाद, साल भर बाद 27 दिसंबर 2006 को प्रजापति की गुजरात और राजस्थान पुलिस ने गुजरात-राजस्थान सीमा के पास चापरी में कथित फर्जी मुठभेड़ में गोली मार कर हत्या कर दी.


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