अब तक लंबित राफेल मामले में केंद्र की याचिका


Paris: Spies in the military office engaged in monitoring Rafael production?

 

केंद्र सरकार की राफेल सौदे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संशोधन करने संबंधी याचिका अब तक कोर्ट में लंबित है. केंद्र ने कोर्ट के फैसले के पैरा नंबर 25 के दो वाक्यों में संशोधन करने को लेकर याचिका 15 दिसंबर को दायर की थी.

हालांकि उस दौरान गरमाए इस मामले में केंद्र ने फुर्ती दिखाते हुए फैसले के अगले ही दिन कोर्ट में याचिका दाखिल कर दी थी. लेकिन इसके बाद केंद्र ने याचिका पर जल्दी सुनवाई के लिए अब तक कोर्ट में कोई अर्जी नहीं दी है.

फैसले में संशोधन को लेकर जहां एक ओर विपक्षी पार्टियों ने केंद्र पर यह आरोप लगाए कि सरकार ने कोर्ट में गलत जानकारी दी, जिसके आधार पर गलत फैसला आया, तो वहीं केंद्र इन आरोपों से ये कहते हुए बचता रहा है कि ये केवल ‘व्याकरण की गलती’ का नतीजा था.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले में संशोधन करने संबंधी याचिका में कहा कि कोर्ट ने सीएजी के रेफरेंस की ‘गलत व्याख्या’ कर दी है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 14 दिसंबर को दिए फैसले में कहा था कि केंद्र ने राफेल डील संबंधी जानकारी सीएजी के साथ साझा की है. इस आधार पर सीएजी की ओर से बनाए गई रिपोर्ट को लोक लेखा समिति (पीएसी) के समक्ष जांच के लिए रखा गया. फैसले के पैरा 25 में यह भी कहा गया था कि रिपोर्ट का संक्षिप्त हिस्सा ही संसद में रखा गया.

कोर्ट को दिए गए दस्तावेज से पता चलता है कि सरकार ने आधार मूल्य (बेसिक मूल्य) को छोड़कर राफेल के मूल्य संबंधी जानकारी कोर्ट से साझा नहीं की.

फैसला आने के बाद ये सवाल उठे कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पैरा नंबर 25 में जिस सीएजी रिपोर्ट की बात कही गई है, वास्तव में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है. विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने केंद्र के खिलाफ सवाल खड़े किए कि उन्होंने कोर्ट में गलत जानकारी दी कि सीएजी की रिपोर्ट पीएसी के साथ साझा की गई है.

विपक्षी नेता और संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) के प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह साफ कर दिया कि पीएसी के साथ केंद्र ने सीएजी की कोई रिपोर्ट साझा नहीं की है. खड़गे ने सरकार से कोर्ट में गलत जानकारी देने के लिए माफी की भी मांग की थी.

इस मामले में केंद्र की याचिका के अलावा 14 दिसंबर को आए कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर भी फैसला आना बाकी है. कोर्ट के फैसले के खिलाफ यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, प्रशांत भूषण और आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की है.

याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि कोर्ट अपना फैसला वापस ले क्योंकि यह गलत जानकारी को आधार बनाकर दिया गया. उन्होंने कहा, फैसला सीएजी की रिपोर्ट को आधार बनाकर दिया, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं था.

इसके अलवा राफेल सौदे में फ्रांस सरकार की ओर से संप्रभु गारंटी की जगह से लेटर ऑफ कंफर्ट देने को कोर्ट ने एक मामूली बदलाव करार दिया था. याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट की इस फैसले पर भी सवाल उठाए हैं.

उनके मुताबिक संप्रभु गारंटी के तहत सौदे के नियम और शर्तों के संबंध में गारंटी दी जाती है. यह कानूनी तौर पर मान्य होता है जबकि लेटर ऑफ कंफर्ट के साथ ऐसी कोई बाध्यता नहीं होती.


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