आर्थिक आधार पर आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
आर्थिक आधार पर आरक्षण देने संबंधी संविधान संशोधन बिल के दोनों सदनों में पास होने के कुछ ही घंटों के अंदर इस बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है.
याचिका में कहा गया है कि यह आर्थिक आधार पर आरक्षण देना संविधान की ‘मूल संरचना’ के खिलाफ है.
याचिका में 1992 के इंदिरा साहनी मामले में दिए गए नौ जजों की पीठ के फैसले के हवाले से कहा गया है कि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं हो सकता है. यह याचिका ‘यूथ फॉर इक्वलिटी’ नाम के संगठन ने दायर की है.
याचिका में कहा गया है, “मौजूदा संविधान संशोधन पूरी तरह से संविधान के उस सिद्धांत के खिलाफ है कि आर्थिक आधार पर सिर्फ आरक्षण नहीं दिया जा सकता है. नौ जजों की पीठ ने इंदिरा साहनी मामले में इसका उल्लेख करते हुए फैसदा दिया था.”
याचिका में आगे कहा गया है कि मौजूदा आरक्षण की सीमा में 10 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी करने से यह 50 फ़ीसदी की तय सीमा को पार कर जाती है जो कि इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा तय की गई सीमा का उल्लंघन करती है.
एक और आधार पर इस याचिका में मौजूदा संशोधन को चुनौती दी गई है. याचिका में पूछा गया है कि अगर आरक्षण का यह प्रावधान आर्थिक आधार पर है तो सिर्फ गरीब सवर्णों के लिए क्यों है. पिछड़ों और दलितों में जो गरीब हैं उन्हें क्यों इस श्रेणी में नहीं रखा गया है? यह संविधान के अनुच्छेद 14 में कहे गए बराबरी के हक़ के विपरीत है.